ख़त.,,

ख़त.,,

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"आज कितने बरसों बाद तुम्हें ख़त लिख रहा हूँ पता नहीं तुम क्या सोचोगी? इतने सालों बाद तुम्हारी याद आयी मुझे, लेकिन आज सच में तुम बहुत याद आ रही हो शायद मैं बहुत ख़ुदगर्ज़ हूँ ।आज जब अकेलापन महसूस हुआ तो एहसास हुआ की तुम मेरे लिए एक दोस्त ही नहीं ,एक कंधा भी थीं जिस का सहारा बिन माँगे हर पल मेरे साथ था


बरसों बीत गए हमें अलग हुए तुम्हारे खतों का पुलिंदा मेरे सामने रखा आज मुझे चिढ़ा रहा हो मानो ! वो ख़त जो ना मैंने कभी खोले और ना कभी उनका जवाब दिया हाँ बस फेंक या फाड़ नहीं सका कभी, मगर फिर भी तुमने लिखना बंद नहीं किया बादस्तूर तुम्हारे ख़त हर महीने मुझ तक आते रहे और सिलसिला आज तक जारी है मैं अपनी दुनिया अपने परिवार में रम कर शायद तुम्हें बिलकुल भूल ही चुका होता अगर ये ख़त ना होते आज तक नहीं समझ पाया तुम्हारे इस जुनून को आख़िर ऐसा क्यों करती रही तुम? तुम्हारी अपनी एक अलग ज़िंदगी होते हुए भी तुम्हें हर पल मेरा ख्याल रहा?”


"आज तुमने पूछा है तो बताती हूँ तुमको तुम ने कभी मेरे खतों का जवाब नहीं दिया शुरू शुरू में बहुत बुरा लगता था मुझे जिस इंसान ने मुझ से कहा था की मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, आज उसे मेरे ख़त पढ़ने की भी फ़ुर्सत नहीं, जवाब देना तो दूर मगर फिर मुझे लगा यही वादा तो मैंने भी तुमसे किया था कि "आई विल ऑलवेज बी देयर..." अगर मैं भी भूल जाऊँ तो क्या फ़र्क़ रह गया तुम्हें ख़त लिखने में मेरी ख़ुदगर्ज़ी छिपी थी


मुझे यह एहसास रहता था की तुम आज भी मेरे साथ हो, चाहे सामने नहीं हमेशा ये सोचती थी की आज तुम्हारी ज़रूरतें तुम्हारे ख़्वाब अलग है तुम्हारे आस पास लोगों की सहारों की बहुत भीड़ है पर शायद कभी ऐसा दिन आए जब तुम अकेला महसूस करो और मैं कहीं ना दिखूँ बस यही सोच कर मैंने तुम्हें इन खतों की डोर से बांधे रखा आज जो अफ़सोस तुम्हें हो रहा है कम से कम मुझे नहीं है कि मैंने वादा निभाया और देखो ना आज जब तुम्हें मेरी ज़रूरत महसूस हुई मैं तुम्हें फिर पास ही मिली एक बार फिर अपना कांधो का सहारा लिए हुए


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