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Sonal Bhatia Randhawa

Drama

4  

Sonal Bhatia Randhawa

Drama

छोटी छोटी कहानियां

छोटी छोटी कहानियां

3 mins
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रेशम का दिल...


अरे ये रेशमी कपड़े का दिल कहाँ से ले आयीं।”

“ख़रीद कर नहीं लायी इसे अपने हाथों से सिला है।“

“वाह सुंदर है।“

“है ना।”

“ हाँ पर मुझे पता है तुम इतनी लापरवाह हो की इससे यूँ ही इसे इधर उधर पटकोगी और कुछ दिन में इसके धागे अलग होने लगेंगे फिर आँसू बहाओगी।“

“क्या हुआ।”

“देखो ना सब रुएँ निकलने लगे इसके।“

“कहा था ना मैंने पर तुम नहीं मानी।“

“और अब ये लोहे का डिब्बा क्यूँ ले आयी।“

“इसमें इस दिल को बंद करूँगी फिर और तार नहीं निकलेंगे।“

“ अरे पगली फिर इस को कौन देख पाएगा।“

“हुँये भी है तो क्या करूँ।“

“कुछ नहीं इसे ऐसे ही रहने दो।“

“ये जैसा भी है ख़ूबसूरत है और रेशम तार तार भी हो जाए तो भी आसानी से नहीं टूटता मत बंद करो इसे डिब्बे में “

“हा हा चलो तुम कहते हो तो मान लेती हूँ।”


एहसास...


"अरे यार तुम जानती हो मैं तुम से कितना प्यार करता हूँ फिर बार बार जताना क्या ज़रूरी है ?"

"हाँ बहुत ज़रूरी है "

"लेकिन क्यूँ "

"हम सब जानते हैं की हवा है हमारे आसपास ना हो तो साँस भी ना ले पाएँ पर महसूस तभी होती है जब मंद मंद बयार सी चलती है हवा का होना एक तथ्य है और बयार की तरह उसका महसूस होना एक ख़ूबसूरत एहसास


लाइफ इज टू वे स्ट्रीट....


“ये सड़क पर दौड़ती हुई गाड़ियाँ देखो ऐसा नहीं लगता हम को रौंदती हुई चली जाएँगी कभी “

“एक जगह थम कर खड़ी रहोगी तो वाक़ई ये लगेगा की ये दौड़ती हुई गाड़ियाँ कुचल देंगी मगर जब चलने लगोगी तो महसूस होगा कुछ तुम्हारी तरफ़ आ रही हैं कुछ तुमसे दूर जा रही हैं कुछ साथ चल रही हैं”

“सच कह रहे हो और कुछ हैं जो जा कर फिर लौट कर तुम्हारी ओर आ रही हैंऔर कुछ ऐसी भी हैं जो वापिस नहीं आतीं और आप उनके इंतज़ार में खड़े रह जाते हो ”

“तभी तो कह रहा हूँ खड़ी ना रहोजिस को आना है वो लौट कर आएगी जिस को नहीं आना उसका इंतज़ार क्यूँ चलो अब


पिंजरा.....


“ये पिंजरा देख रहे हो ना इसमें जो पंछी हैं ना ये यादें हैं और वो कोने में देखो एक रुई का छोटा सा दिल लटका है ये पिंजरा हर वक़्त खुला रखती हूँ की ये पंछी कही उड़ जाएँ दूर आकाश में और कभी लौट कर ना आएँ पर ये कमबख़्त जाते ही नहीं दिन में तो फिर भी उड़ जाते हैं मगर रात में फिर यहीं शोर मचाते हैं इस रुई के दिल पर चोंच मार मार कर उसके बखिए उदेड देते हैं फिर कुछ पैबंद लगा कर सिल देती हूँ इसको मगर कुछ दिन में फिर वही हालशायद यहीं इनका रैन बसेरा है और कहीं पनाह नहीं मिलती इनको ”“इस पिंजरे को कही दूर फेंक क्यूँ नहीं देती तुम।“ 

“कैसे फेंकू इसी में तो दिल बंद है।” 

“तुमको समझना बहुत मुश्किल है।” 

“हूँ।


छलनी.....


"ये अचानक गेहूँ बीनते क्या सोचने लगीं तुम ?"

”सोच रही हूँ काश दिल में भी एक छलनी होती जिस में से छन जाते चुभती हुई यादों के तिनके ,अपनो की कही कुछ किरकिरी सी बातें ,कुछ अध पकी सी ख़्वाहिशें ,टूटे दानों से ख़्वाब और कुछ घुन लगे पल ,छान कर फेंक देते कूड़े दान में में तो कितनी साफ़ हो जाती ज़िंदगी फिर से है ना।


काँच के टुकड़े....,,


"फिर ग्लास तोड़ दिया तुमने ! कैसे काम करती होअब ध्यान से समेटो टूटे काँच के टुकड़े ,चुभ ना जाएँ कहीं अरे क्या सोच रही हो उठाओ ना सब "

"सोच रही हूँ काँच टूटता है तो आवाज़ कितनी करता है और चुभने का डर भी लगता है मगर जब इंसान टूटता है तो ना आवाज़ होती है और ना किसी को चुभन पता चलती है और ग्लास तो नया आ सकता है मगर इंसान नहींहां बस ये है कि इंसान टुकड़े समेट कर वापिस खड़ा हो जाता है मगर ग्लास नहीं "

"ओहो छोड़ ये सब फ़ालतू बातटुकड़े समेटो जल्दी"

"वही तो कर रही हूँ टुकड़े ही समेट रही हूँ "ये सोचते हुए वो फ़र्श पर पड़े काँच के टुकड़ों की ओर चल दी।


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