बोलती आँखें ...
बोलती आँखें ...
कमरे के पास से गुज़रते हुए समीर ने अधखुले दरवाज़े से यूँ ही अंदर झाँका तो हल्की रोशनी में सायशा का चेहरा टेबल पर झुका दिखायी दिया .शायद कुछ लिख रही थी वो .
दो मिनट यूँ ही देखता रहा ...सोचने लगा आज भी सायशा के चेहरे पर लिखते वक़्त वो ही सुकून है जो आज से बरसों पहले था ...
शादी की पचीसवीं सालगिरह अभी कल ही गुज़री थी राहुल और सायशा की ....उसी की पार्टी के लिए समीर आया था ...समीर सायशा और राहुल ..कॉलेज की literary society के तीन ख़ास पन्ने थे...
लाल साड़ी में लिपटी सायशा ने जब बड़ी बड़ी आँखों से उसे देख कर कहा “बहुत अच्छा लगा समीर तुम इतनी दूर से आए ....” तो एक पल को आज भी दिल हुआ उससे कह दे...”सायशा मैं तो कभी तुमसे दूर गया ही नहीं ...पर हँस कर बोला “आप बुलाएँ और हम ना आएँ ...ऐसे तो हालात नहीं ....
सायशा खिलखिला उठी ..उसकी हँसी आज भी उसकी आँखों तक पहुँचती महसूस होती थी “उधार के शेर मारने की आदत आज भी बरक़रार है तुम्हारी”.... समीर के जी में आया क़ह दे ” मेरी हर आदत बरक़रार है सायशा आजतक और तुम भी मेरी इन आदतों में शामिल हो” ...मगर ....
ख़यालों के बाँध तोड़ ...समीर का ध्यान फिर टेबल पर झुकी सायशा की ओर चला गया ..उम्र और वक़्त ने उसके चेहरे पर लकीरों का जाल ज़रूर बना दिया था पर उसकी मासूमियत आज भी आज़ाद थी ...
सायशा की आवाज़ से समीर सकपका गया ...” क्या हुआ समीर कुछ प्रॉब्लम तो नहीं ना रूम में ...कुछ चाहिए तो मैं भिजवा देती हूँ ...”
“काश मैं ये कभी बोल पाया होता तुमसे सायशा की मुझे क्या चाहिए ..”
सायशा ने हैरान हो कर उसकी ओर देखा ..”मतलब?”
“अरे मतलब कुछ नहीं ...बस यूँ ही बोल दिया ...शायर हैं यार ...तो हर चीज़ उसी अन्दाज़ में होनी चाहिए ना ....ख़ैर ...पानी नहीं है मेरे रूम में ....भिजवा देना किसी से ...कह कर समीर तेज़ क़दमों से आगे निकल गया ...नहीं चाहता था जो उसकी आँखों में आज तक सायशा नहीं देख पायी थी वो अब उसे दिखे....
...और उसे जाते देखती सायशा सोच रही थी “आज भी तुम्हारी आँखें वो बोलती हैं समीर जो तुम कभी नहीं बोल पाए ...”!
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