मोड़....
मोड़....
सायशा:ये सड़क देख रहे हो ना...याद है इस मोड़ तक तुम ही मुझे ले कर आये थे और फिर अचानक रूक गए और कहा " सायशा इस मोड़ से आगे बहुत अंधेरा है...आगे जाना मुनासिब नहीं"और तुम वापिस मुड़ गए..पर मैं..मैं आज तक इस अंधेरे मोड़ पर खड़ी तुम्हे पुकारती रहती हूँ....
राहुल:जानती हो सायशा हम दोनो रास्ते में मिले हुए हमसफ़र हैं...जब मैं तुमसे मिला उस समय तक मेरा हमराही कोई और बन चुका था और तुम्हारा सफर भी किसी और के साथ अच्छा कट राहा था...किस्मत ने पता नहीं कैसे कब हम दोनों की राहें जोड़ दीं........मगर हम हमराही हो कर भी साथ नहीं क्योंकि हम जिन के साथ यहाँ तक पहुँचें ....इस राह तक जहाँ हम मिले हैं ....उनका साथ कैसे छोढ़ सकते हैं....वो जो हमेशा हर राह पर हमारे साथ रहे हैं आजतक......इसलिये मैने कहा था ये अंधेरा मोड़ है.....मैं वापिस कभी नहीं मुड़ सका...अगर ऐसा होता तो हर बार यहाँ तुम्से मिलने क्यों आता...मैं भी आज तक यहीं खड़ा हूँ...बस चुप हूँ..!
सायशा:ह्म्म्म..राहुल लेकिन क्या तुम्हारा दिल नहीं करता कभी इस अंधेरे मोड़ को पार कर के आगे देखें ...शायद उजाळा मिल जाये....
राहुल:और अगर अंधेरा हुआ तो... सायशा... इस मोड़ पर कम से कम हम मिल तो लेते हैं...एक दूसरे को देख तो पा रहे हैं ...दूर दूर चल कर भी साथ तो हैं....उस पार जा कर तो कुछ भी हो सकता है...सब कुछ अगर अंधेरे में गुम हो गया तो ?
सायशा:सच कहते हो राहुल...इस अस्थिरता में ही हमें स्थिरता ढूढ़नी होगी....नदी के दो किनारों कि तरह जो अस्थिर नदी के साथ साथ चलते हैं मगर फिर भी स्थिर हैं और दूर रह कर भी साथ हैं .....