मै तितली💕
मै तितली💕
" तितली के पंखो पर उसका नाम " हाँ यही तो वो किताब थी, जो मुझे अंकल ने उपहार में दी थी, अंकल विख्यात उनुवादक, लेखक...... और मैं उनके सामने कुछ नहीं, उनके सामने क्या, मैं तो किसी के सामने कुछ नहीं थी, पर ऐसा मानती कहाँ थी भला, क्युकी मैं तो खुदको तितली मानती थी, उड़ती फिरती, सभी क़ो अपने रंगों से आकर्षित करती, पर किसी के पकड़ में कहाँ आती थी, मेरा तो बस एक ही काम था, बस मुझे देख कर उदासी किसी के भी चेहरे पर टिकी ना रह सके, बस खिल जाये चेहरे पर उनके एक खूबसूरत सी हंसी| वो हंसी जो कतई बनावटी ना हो, वो हंसी जो होंठो पर खिले तो आँखों में नूरानी चमक आ जाये, जल सी निर्मल मुस्कुराहट हर किसी के चेहरे पर खिली रहे, बस यही तो थी मेरी आरजू। और इसी प्रयास में निस दिन लगी रहती थी मैं, बिना इस बात की चिंता के, की बहुत छोटा सा जीवन मिला है मुझे, तितली सा........
पर भला तितली क़ो कहाँ परवाह होती है इस बात की, वो तो बस जीना जानती है, फूलो से मकरंद चूसना जानती है, वो फूल जो खिले तो हर एक मन भाये, उन फूलो क़ो खिलाना जानती है, हाँ ऐसी ही तितली तो थी मैं.......
और एक दिन पता है क्या हुआ, उड़ते उड़ते जा टकराई एक ऐसे फूल से, जिसने कभी बहुत लुभाया था सभी क़ो अपने खिले यौवन से। खूब महक बिखेरी थी चमन में| पर अब मुरझाने क़ो लेकर चिंतित थे....... सो उन्होंने एक उदासी की चादर ओढ़ लीं जिससे वो बाहर निकलना ही नहीं चाहते थे।
वो अंकल हिंदी के प्रख्यात लेखक और अनुवादक थे,उनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी थी, काफ़ी सम्मान भी पाए थे उन्होंने, पर अब जब बढ़ती उम्र के साथ, स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें होने लगी, जिनके चलते लेखन छूटने लगा तो चिड़चिड़े से होने लगे, कोई उन्हें लेखन के बारे में कुछ भी पूछना चाहता, तो उन्हें यही लगता की उनका उपहास उड़ाया जा रहा है, बस वे सभी क़ो फटकारने लगे, और धीरे धीरे सनकी लेखक ही जैसे उनका नाम हो गया।सभी ने उनसे दुरी बना लीं।
उनके पास सस्मरणों का अथाह सागर था, पर जो अछूता छूट रहा था जैसे। किताबों का बेहतरीन कलेक्शन जो ताको में सिमट कर रह गया था।
परिवार वाले उन्हें उबारने का भरसक प्रयास कर थकने लगे थे जैसे.......
फिर उन्होंने मुझे चुना, अपनी मदद क़ो, मैं तितली, किस बात का घमंड रखती, की मुरझाते फूल क़ो खिला दूंगी, ना ना अगर आप ऐसा सोच रहे हो तो आप इसलिए गलत हो की मैं इससे दुगना कर सकती थी।
"वो कैसे ", अरे भाई, मैं फूल खिला नहीं सकती, पर उदास चेहरे क़ो खिलखिला सकती हूं, तो हुआ ना दुगना काम।
तो बस अपने इसी आत्मविश्वास के साथ पहुंच गयी, अंकल के घर, वो अपने study room में किताबों से घिरे उदास बैठे थे, ना मेरे आने पर कोई हलचल हुई, ना उनके चेहरे पर कोई भाव ही आये|
अंकल, मैं, तितली, मैंने परिचय देते हुए अभिवादन किया।
बेमन से जवाब दिया उन्होंने, " मैं मुरझाता फूल ", तुम्हारे किसी काम का, नहीं, तुम उड़ो, ताज़ा फूलो से मिलो, तुम क्या समझोगी मुरझाते फूल की व्यथा, मुझे अकेला छोड़ दो, मुरझाने दो, जब मुरझा जाऊंगा,तो फेंक दिया जाऊंगा कचरे में, और फिर भुला देंगे सभी मुझे, भूल जायेगे मैंने उनकी आँखों क़ो अपने चटक रंग से कितना सुकून दिया था, अपनी पंखुरी के कोमल अहसास से कितना सुखद स्पर्श दिया था, अपनी महक से कितना तारोंताज़ा किया था, अपने लेखन में सबके मन की बात लिख कर कितना अपनापन दिया था, भूल जायेंगे, सब भूल जायेंगे,
" तुम चली जाओ तितली " तुम मेरा दर्द नहीं समझ सकती, मैं किस पल पूरा मुरझा जाऊंगा, मुझे नहीं पता, किस पल शाख से टूट जाऊंगा, मुझे नहीं पता, कैसे खुश रहूं मैं तितली, कैसे, जिसके जीवन की डोर छूट रही हो उसके हाथ से, वो क्या खुश हो पायेगा, कभी...... और क्या तुम मेरा दर्द समझोगी तितली, चली जाओ "|
चली जाउंगी, अंकल, पर आपकी महक क़ो हमेशा के लिए इन फिज़ाओ में घोल कर, लेकर जाउंगी आपसे ऐसा उपहार जो सदियों तक बताएगा, सभी क़ो, मुरझाने के डर से फूल खिलना नहीं छोड़ते,
चली जाउंगी अंकल, इस दुनिया से, शायद आपसे पहले, क्युकी मुझे कैंसर है, लास्ट स्टेज है, तितली जो हूं मैं, छोटा सा जीवन दिया ईश्वर ने मुझे, पर रंगों से भरा.......
और फिर सबने देखा मुरझाते हुए फूलो की कोमल पंखुरियों से मकरंद पाते तितली क़ो......
मेरे हाथो में थी उनकी सबसे प्रिय किताब "तितली के पंखो में उसका नाम " उपहार स्वरुप, उनके चेहरे पर थी खिलखिलाहट, और परिजनो के चेहरों पर आश्चर्य, मेरे हाथो में उनकी प्रिय किताब देखकर, जिसे वो उन्हें भी हाथ नहीं लगाने देते थे, और आश्चर्य से चौड़ी हुई आँखे अंकल क़ो खिलखिलाते देख कर........
मैं तो उड़ गयी, हमेशा के लिए, तितली जो थी, पर आप क्यूँ उदास होते हो, आपके आस पास भी होंगी तितलियाँ, बस उन्हें देखने क़ो मन की आँखे खुली रखना। अलविदा