मातृत्व
मातृत्व
टक टकी लगाए बिपाशा अपनी बालकनी में बैठी सामने दिख रहे पेड़ पर बैठे एक पंक्षी को देख रही थी और सोच रही थी कि वो पंक्षी कैसे अपने बच्चे को दाना खिला रही थी। एक एक दाना दूर से चुन कर लाती और चूजे के मूँह में डाल देती। उसकी ये क्रिया तब तक जारी रही जब तक बच्चे का पेट नही भर गया। मानव मे ही नही सभी प्राणियों में ममता का निवास है। सभी जीव चाहे वो पशु हो पक्षी हो कोई भी हो, सभी मातृत्व के भाव से सराबोर है। कोई और ज्ञान हो या न हो पशु पक्षी में पर अपने बच्चे को कैसे रखना है, उसका लालन पालन कैसे करना है, कौन उसके दोस्त है, कौन दुश्मन ये वो भली भांती जानते है। ये वो अच्छे से जानते है कि ये व्यक्ती या दूसरे जीव मेरे बच्चे को नुकसान पहुंचाएंगे या उसका हित करेंगे।पल भर को भी मादा अपने बच्चे से दुर नही होती है। हमेशा उसके इर्द-गिर्द रहती है। बस यही सब सोचते सोचते उसकी आँखे भर आई थी।
बचपन में ही माँ छोड़ कर चली गई थी। पापा की मौसी ने ही पाला था जब तक में 10 साल की हुई। फिर पापा ने मुझे हॉस्टल में डाल दिया। पढ़ाई पुरी होने के बाद ही घर लौट कर आई थी। ममता के एहसास से अंजान मैं बिपाशा। बचपन में माँ के सुख से वंचित रही। शादी के बाद मातृत्व के सुख से। कैसी कलम से मेरी किस्मत लिखी है विधाता ने। नही जानती मैं माँ कैसे लाड़ लड़ाती है अपनी औलाद के। नही जानती कैसे कैसे एहसास जागते है मन में माँ बनने के बाद।
शायद इस चिड़ियाँ जैसी होती है माँ। नही नही उस हथिनी जैसी जो अपने बच्चे का हाथ पकड़ कर कही दूर घुमाने ले जा रही थी। वही हथनी जिसको मैने कल नेशनल जियोग्राफिक चैनल पर देखा था। अरे अरे बंदर भी तो था वहाँ , कैसे अपने बच्चे को पेट से चिपका कर इस पेड़ से उस पेड़ कभी इस डाली से उस डाली फुदक रहा था। सभी अपनी औलाद को पालते है अपने अपने ढ़ंग से।
तभी फोन की घंटी ने बिपाशा को उसके शोक के समंदर से बाहर निकाला। कॉल रिसिव किया, “हेलो पापा”
पापा की आवाज सुनकर वो अपना दर्द भुल गई थी और पापा से बातें करने लगी। शाम को जब उसका पति राजीव घर आया तब उसके हाथ में एक निमंत्रण कार्ड था। कुँआ- पुजन का उसके किसी दोस्त के घर जुड़वाँ बेटी हुई थी। उनके घर भी वर्षो बाद किलकारी गुंजी थी। उनकी शादी को 12 साल हुए थे। अब जाकर उनको ये खूशी मिली थी। जानती थी बिपाशा भी उन लोगो को, बहुत अच्छे संस्कारी लोग है वो। चलो देर से ही सही खुशी तो आई घर में।
दो दिन बाद जब राजीव और बिपाशा पार्टी में पहुँचे। तो देखा चारो तरफ रौनक थी। काफी मेहमान आए हुए थे। चहल -पहल अच्छी थी। जाते ही बिपाशा और राजीव फंक्शन की जान दोनो नन्ही मुन्नी के पास गए। पालने में ही उसे पुचकारने लगे। तभी नई नई माँ बनी सुरभी ने एक बेबी को उठा कर बिपाशा की गोद में देते हुए कहा, “लो संभालो अपनी बेटी, मुझसे दो दो नही संभाली जाएगी। तुम तो जानती ही हो मेरी शारीरीक परेशानी”
उसकी ये बात अटपटी सी लगी बिपाशा को। वो कुछ कहती, इसले पहले ही सुरभी और प्रशांत ने कहा “आज से ये गुड़िया आपकी हुई”
ये सुनते ही दोनो की खुशी का ठिकाना नही रहा। आंसुओं ने तो जैसे आज ही बहना था। बिपाशा ने तो उसे ऐसे कलेजे से लगा लिया जैसे खुद ने ही जन्म दिया हो। अब तो पार्टी की रौनक और भी बढ़ गई थी।
एक माँ ने एक माँ के दर्द को जाना था। आज बिपाशा पूर्ण रुप से मातृत्व के आनंद से सराबोर हो गई थी। भूल गई वो अपना बचपन, अपनी सूनी गोद का इतिहास। सभी सुखो में सर्वोपरी है सुख मातृत्व का। अधूरी है औरत, अधूरी है ममता बिना संतान के।
चाहे वो स्व: कोख की जाई हो।
या कोख उसने पराई अपनाई हो
