Prerna Sharma

Action Inspirational

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Prerna Sharma

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मास्क बना दिखावा

मास्क बना दिखावा

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                       वक्त वक्त की बात है कभी दिखावे से परहेज था अब दिखावे से ही सभी की आन बान शान है। वैसे तो हम सभी किसी भी प्रकार का दिखावा करने से नहीं कतराते परंतु अगर बात किसी महामारी और बीमारी में दिखावे करने की हो तो शायद ऐसा करने से हम बेवकूफी का खिताब ही पा सकते है। आज बात करते हैं एक ऐसे दिखावे की जो शायद करना तो दूर सोचा भी नहीं जा सकता परंतु अपनी जिंदगी के साथ खिलवाड़ करके हम दिखावे की आड़ पर खड़े है। कोरोना जैसी महामारी को कुछ पल के लिए याद करके हम डरते तो है परंतु उससे बचने के लिए मास्क पहन कर रखना महज अब दिखावा ही है।

 अक्सर हम मास्क को हॉस्पिटल में डॉक्टर के मुख पर ही देख पाते थे जिसे देख कर हमारे मन में न जाने कितने अनगिनत प्रश्न आते थे कि डॉक्टर आखिर यह मास्क पहनते क्यों है,  क्या यह मास्क पहनना उनकी मजबूरी है या खुद को अलग पहचान देने की वजह।  हमें पता नहीं था कि वह यह सब खुद को बीमारी से बचने के लिए प्रयोग करते थे इस बात से अनजान हम सभी मास्क पहन कर रखने वालों पर हंसते थे या उनसे डरते थे।

 वैसे भी मास्क एक डर और वहम का प्रतीक लगता था।  डॉक्टर द्वारा या किसी बीमारी से पीड़ित व्यक्ति द्वारा लगाए मास्क उनकी सेहत को बाहरी बीमारियों से बचाने के लिए मुख पर एक पर्दा था लेकिन यह बात हमने कोरोना काल में ही समझा, समझ आया कि आखिर मास्क पहनना क्यों आवश्यक है और इस मास्क का क्या कार्य है।

धुप और प्रदूषण से बचने के लिए अक्सर हम कपड़े और दुपट्टे से चेहरे को कवर कर दिया करते थे धीरे-धीरे वह एक पहरावा ही बन गया।  यह किसी कार्यक्रम का परिधान नहीं बल्कि एक महामारी से बचने के लिए हमारे लिए पोशाक बना जिसको पहने बिना बीमारी से बचने की कल्पना नहीं की जा सकती थी।   कोविड-19 का आना और करोड़ों लोगों की जान चली जाना कोई आम बात नहीं थी दुनिया खत्म होती नजर आ रही थी और चारों तरफ खौफ और डर का प्रतीक चिन्ह बना कोरोना मंडरा रहा था।

 कोरोना जैसी बीमारी से भयभीत होकर और सरकार द्वारा लागू किए गए मास्क और सैनिटाइजर का प्रयोग करना हर किसी के लिए अनिवार्य हो गया था। हर जगह, हर वर्ग के लोग सिंगल मास्क और डबल मास्क का प्रयोग करने लगे । साल भर तक सभी ने कोरोना की पहली लहर से लेकर दूसरी लहर तक मास्क का प्रयोग किया क्योंकि महामारी से बचना सभी की मजबूरी भी थी और जरूरत भी। 

 धीरे धीरे मास्क सभी का सच्चा साथी बन चुका था बिना मास्क का प्रयोग या पहने कहीं बाहर जाना बिना किसी अपराध के सजा भुगतने के बराबर था। 

छोटे-बड़े, बच्च, नौजवान और हर वर्ग के लोगों के लिए किसी भी रंग का भेदभाव ना करते हुए एक जैसा और एक ही रंग का मास्क अनिवार्य हो गया था।

 समय अपनी रफ्तार के हिसाब से आगे बढ़ता चला गया  जब तक लोगों के दिल और दिमाग में कोरोना का डर था तब तक ही एक ही रंग का मास्क सभी ने अपनाया लेकिन जैसे-जैसे कोरोना जैसे महामारी का डर लोगों के मन से जाता रहा उसी तरह मास्क पहनने और उसका चयन करने का तरीका भी लोगों का बदलता रहा।  

 मास्क पहने तो जा रहे थे लेकिन अब मास्क का चयन बाहरी बीमारी से बचने के हिसाब से नहीं मास्क की डिजाइन, रंग और बनावट के हिसाब से होने लगा।  लोगों के मन में महामारी का डर भी था तो दूसरी तरफ एक दूसरे के सम्मुख तरह-तरह के बनावटी मास्क को पहन कर दिखाने का क्रेज़ भी होने लगा।

 फिर क्या था चंद दिनों का डर मिनटों में खत्म हो गया एक तरफ कहने को कोरोना का डर तो दूसरी तरफ फैशनेबल और प्रिंटेड मास्क का चलन बढ़ता चला गया हर कोई अब सर्जिकल मास्क का प्रयोग करने की बजाय अपने अपने कपड़ों की मैचिंग को ध्यान में रखते हुए मास्क का प्रयोग करने लगे।

 अचानक फिर से एक वक्त आया जब कोरोना कि दूसरी लहर का आवागमन हुआ लेकिन यह खबर केवल कुछ दिन ही लोगों को डरा पाई।   

कोरोना को लेकर अब चंद लोगों में ही डर रह गया मास्क पहनना केवल एक मात्र दिखावा बन गया बाजार में लोगों की भीड़, मॉल में रौनक, जूस शॉप में हो या गोलगप्पे की रेडी, कार्यालय में हो या किसी सामाजिक समूह में मास्क केवल लोगो के मुख से ज्यादा गले पर ही लटकता नज़र आ रहा था।

 मास्क ना पहनने पर लगे जुर्माना से बचने और रास्ते पर पुलिसकर्मियों द्वारा चेकिंग के डर से ही उनको दिखाने के लिए दो सेकंड तक ही मास्क मुख पर लगाना लोगों का नियम बन गया था।  मास्क की क्वालिटी, उसका प्रयोग, रंग, बनावट उल्टा या सीधा इन सभी चीजों की जानकारी को ध्यान ना देते हुए केवल दूसरों के सामने दिखावे के लिए मास्क पहना जा रहा था अब मास्क लोगों के लिए मजबूरी नहीं महज एक दिखावा बन गया था ।



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