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Prerna Sharma

Others

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Prerna Sharma

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कुछ खोया और कुछ पाया

कुछ खोया और कुछ पाया

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 जीवन में कुछ खोने और पाने का कोई समय निश्चित नहीं है । जिस चीज की उम्मीद होती है वह मिलती नहीं और जो मिलता है उस चीज की कभी कोई कल्पना नहीं होती । समय बदला और समय के हिसाब से दुनिया का रंग- ढंग, रहन-सहन और हर चीज बदली । कुछ अच्छे के लिए बदला तो कुछ बदला ही बुरे वक्त के लिए, ऐसे ही बुरे वक्त का सफर हम सभी ने ना चाह कर भी तय किया है उस बुरे वक्त की कोई खास वजह ना होकर भी उसकी बहुत खास वजह बन गई है । लोगों के दिल और दिमाग में राज करने वाला कोविड-19 ही वह बुरा वक्तका साया है जिसने हमारी जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया है, जिसने हमें सब कुछ खोने में मजबूर कर दिया है जैसे कि शरीर से सांसों का थम जाना, रिश्तो का दूर होना, नौकरी होकर भी बेरोजगार रहना, पाठशाला होकर भी शिक्षा से दूर रहना और दो वक्त की रोटी के लिए तिल तिल कर मरना आदि ऐसे ना जाने कितनी कठिनाइयों सामना हम सभी ने मिलकर किया है । इसके अलावा ऐसी बहुत सी परिस्थितियों का सामना हुआ जिसमें हमारे शरीर में सांसे तो थी लेकिन जिंदगी को जीने की उम्मीद नहीं बची थी ।

 सुबह सवेरे मंदिर, गुरुद्वारों में भक्तों की हलचल थम सी गई थी ।भगवान के द्वार में एक समान सभी भक्त दूरियों पर खड़े मुख पर लगे मास्क के साथ ही जयकारा लगा रहे थे । सभी के नजरों में सच्ची आस्था और अभिलाषा नजर आ रही थी शायद पहली बार सभी ने भगवान से खुद के लिए मोटर-गाड़ी,बंगला, सुंदर काया, अपना भला जैसे कुछ ना मांगा हो और सभी की मन्नत एक ही रही हो कि  भगवान करोना जैसी महामारी से हम को बचाया जाए ।

 प्रतिदिन दो दो रुपैया के हिसाब से पैसा कमाने वाले मजदूर भाइयो को कोरोना का डर और काम ना मिलने से चिंतित होकर वह मानसिक रूप से ही मरे जा रहे थे उनके पास खोने को कुछ भी नहीं और जीवन भर पाया उन्होंने कुछ भी नहीं था ।

 चम चमकती गाड़ियों में घूमते लोग जो अपनी अमीरी का दिखावा करके दूसरों को खुद से कम आंकते आ रहे थे  वे सभी लॉक डाउन की वजह से घरों में बैठकर अपनी गाड़ियों को कवर करके लॉक डाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे थे और अपनी अमीरता पर घमंड करके शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे ।

 एक दूसरे के काम को महत्व ना देने वालों को अब ऑनलाइन वर्क के जरिए एक दूसरे के काम और थकान की अहमियत पता चल रही थी ।

 महंगी इत्र और परफ्यूम पर्स में रखने वाले अब केवल सैनिटाइजर को प्राथमिकता दे रहे थे । सुंदरता का घमंड करने और ना करने वालो सभी का चेहरा मास्क के परदे से ढका हुआ था ।

 बाजार और गली में चाट पकौड़ी के दिन रात चटकारे लेने वाले आप शाम को अपनी छत से चाट पकौड़ी बेचने वालों की आवाज सुनने के लिए तरस रहे थे

 घर पर काम करने वाले नौकरों की निंदा और उनका सम्मान ना करने वाले उनके काम करने की अहमियत समझ चुके थे । अपनी उच्च नौकरी और पद का घमंड रखने वाले एक ऐसी दुविधा में आकर फस गए की नौकरी होकर भी वह घर पर बेरोजगार की तरह परेशान नजर आ रहे थे नई नौकरी और वैकेंसी की उम्मीद खत्म होती नजर आ रही थी और पढ़े लिखे हो कर भी वह अनपढ़ महसूस कर रहे थे।


गली और पार्क में खेलते बच्चों की आवाज अब कहीं कमरों में दब सी गई थी । सुबह और दोपहर स्कूल आते जाते बच्चे अब ऑनलाइन पढ़ाई के बंधन में बंध गए थे,जिस वजह से पढ़ाई लिखाई तो नहीं रुकी परंतु आंखों की रोशनी कम होने वाली दिक्कतें बढ़ती जा रही थी । कक्षा में अध्यापकों से मिलती शिक्षा अब केवल ऑनलाइन किताबों तक ही सीमित रह गई ।  

जिस स्कूल और कॉलेज में जाने के लिए बहाने,आनाकानी करने वाले विद्यार्थी अब स्कूल खुलने का इंतजार कर रहे हैं । परीक्षा देने को बोझ समझने वाले विद्यार्थी अब परीक्षा देने को तरस रहे हैं । अब तो कॉपी पर चलते स्याही और कलम का रिश्ता  शून्य  की गति पर आ गया है ।


 बगीचे में पेड़- पौधे और हरियाली को हटाकर महंगे मार्बल और स्विमिंग पूल बनवाने वाले आज घरों की दीवारों खिड़कियों पर हरे-भरे पौधे लगा रहे हैं ताकि ऑक्सीजन की पूर्ति हो सके ।

 वेस्टर्न कल्चर को अपनाते और  हेलो, हाय के साथ करते वार्तालाप अब दूर से ही हाथों को नमस्कार मुद्रा में करके दूसरों को संबोधित करते नजर आ रहे हैं वैसे यह बात अच्छी भी है ऐसा करने से लोगों को अपनी संस्कृति और सभ्यता याद आ रही है । बड़े बुजुर्गों के हाथ जो सिर पर आशीर्वाद के लिए उठते थे अब वहां आशीर्वाद 2 फीट की दूरी से मिल पाना ही संभव हो पा रहा है।


 कोरोना काल में चाहे हम सभी ने बहुत कुछ खोया हो परंतु जो इंसानियत की चादर ओढ़ना हम सब भूल गए थे वह आज एक लिबास बन चुका है हम सभी को जीवन का सत्य समझ आ गया है । अपना घर अपना मकान हर किसी के लिए एक कैद खाना बन गया है प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप में और बड़ी महामारी के आगमन की वजह से दंड के रूप में अपने घरों में कैद लोग घर से बाहर ना निकलने की सजा भुगत रहे हैं । 

 इसीलिए हमने बहुत कुछ खोया और बहुत कुछ पाया है करोना काल में जिसे भूल पाना नामुमकिन है ।



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