Bhawna Kukreti

Drama

4.7  

Bhawna Kukreti

Drama

मार ..छुटकी,छुटकी,छुटकी

मार ..छुटकी,छुटकी,छुटकी

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दमयंती, अब रोज दिन गिन रहीं थी। पिछले 7 महीनों से तीनो बहुओं से खट्टी मीठी होते हुए उनके कामो में मीन मेख निकालते दिन निकल रहे थे।लेकिन जिस ध्येय से वह शहर अपनी कोठी पर आईं थी वह अन्ततः पूरा होने जा रहा था। बस अब 4 दिन रह गए थे।वैष्णो माता के लिए ट्रैन का टिकट फाइनल हो गया था। सो बीते 4-5 दिनों से न उनके शरीर में कोई दर्द था न ही क्रोध की प्रत्यंचा चढ़ रही थी। माता के भजन से अब सुबह की शुरुआत होती और रात में हरी ॐ के जाप से समाप्ति।

पहले ब्याह कर आयी दोनो बड़ी बहुएं उनका व्यवहार और स्वभाव अच्छी तरह जानती थीं। दोनो ने शहर में कोठी बनने से पहले उसके साथ 7-5 साल कस्बे में बिताए थे। पोते पोतियों की पढ़ाई की चिंता में दमयंती ने तीनों बेटों के लिए शहर में आलीशान ,सुख सुविधाओं से पूर्ण कोठी बना दी थी ,जहां खासोआम मेहमानों का तांता लगा रहता।लेकिन इतनी बड़ी कोठी की साफ सफाई के लिए कोई दाई नहीं रखी गयी थी। दमयंती का मानना था कि जब घर मे तीन तीन बहुएं हैं तो व्यर्थ में दाई को तीन हजार देना मूर्खता है,घर की देखरेख घर का व्यक्ति ही अच्छे से कर पायेगा।अतिथियों के लिए उसका एक ही मंत्र रहता, 'आतिथ्य सत्कार सबके भाग्य में नहीं होता।"

लेकिन पति बच्चों ,मेहमानों की जिम्मेदारी के साथ साथ कोठी की साफ सफाई का काम दमयंती के आशा अनुरुप करने में उसकी पसंद और ठोक बजा कर लायी गयी दोनो बहुऐं और छुटके की पसन्द की छुटकी, हमेशा असफल ही रहती। नतीजा, अगर दमयंती वहां है तो हफ्ते में 5 दिन कोठी में वेवजह का क्लेश ही मचा रहता। दमयंती अक्सर अपना उदाहरण दे कर बहुओं को बेटो के सामने निकम्मी,कामचोर और बेढंगी सिद्ध कर देती। बहुओं की सांस में सांस तब आती जब वे अपने मायके होतीं या जब दमयंती गांव में होती।

अब दमयंती 70 पार हो गयी थी। इस लोक के कष्टों को याद कर अब वह तीर्थ घूम घूम कर अपना परलोक साध लेना चाहती थी। इसलिए वह हर साल कुछ महीने शहर आती जहां से उसके बेटे उसकी तीर्थयात्रा का प्रबंध कर देते। इस बार कोरोना प्रकोप की वजह से वह शहर के घर मे फंसी पड़ी 7 महीनों से किलस रही थी। लेकिन अब उसके मन की मुराद पूरी हो रही थी। वैष्णो धाम के लिए रास्ता बन गया था। सो बड़ी बहुएं अच्छे से समझ रही थी कि दमयंती की ये शांति और बहुओं को चैन बरतना "टिकट की कृपा है"। अपने पूर्व के अनुभवों से दोनों, 5 साल पुरानी छोटी बहू 'छुटकी' को दमयंती के साथ उलझा कर दाएं बाएं निकल लेतीं ।छुटकी, शहर के नामी रईस परिवार की इकलौती ,नाजों से पली बिटिया , दमयंती और जेठानियों की जली कटी सुन कर दिन भर गंगा जमुना में डुबकियां लगाती रहती।जिस पर उसको घर मे सब से दबी आवाज में मनहूसियत फैलाने को उलाहने मिलते।

दमयंती को सालों से कुछ समझाने या कहने की हिमाकत कोई नहीं कर सकता था।होने को वह भी अपने घर की सबसे छोटी और 4 भाइयों की लाडली बहन थी। जिस पर 14 साल की उमर में ही बहुत बड़े संयुक्त परिवार में बड़ी बहू होने की जिम्मेदारी पड़ी। तीन तीन चचिया सास , छः देवर ,पांच ननदों और बुजुर्ग अजिया (दादा ) ससुर के बीच निभाते हुए 21की उम्र में पति का साया उठ गया। निष्ठुर दुनिया के छल प्रपंचों से जूझते हुए , जायदाद में अपना हक लेते, अनुकम्पा पर छोटी सरकारी नौकरी से तीन बेटे और दो बेटियों की पढ़ाई लिखाई से लेकर शादी कराना, रिश्ते नातेदारों की अपेक्षाएं पूरी करना,समाज मे सम्मान बनाये रखने की जद्दोजहद ने उसके स्वभाव को बेहद रूखा बना दिया था। बहुओं के प्रति उसके बेमतलब के रूखे व्यवहार को जानते हुए भी कोई कुछ नहीं कहता था।

दोनो बहू-बेटों से अलग छोटी बहू पर उसका बेटा जान छिडकता था।दोनो बड़े भाई भाभी के वैवाहिक सुख में, माँ के असुरक्षा के भाव से उपजे, हस्तक्षेप को देख वह सयाना हो गया था। उसे मां और पत्नी के बीच एक संतुलन बनाये रखने में महारथ हसिल थी।दमयंती ,छोटे बेटे के पत्नी प्रेम को खूब समझती सो उसके सामने छुटकी बहु को सीधे कुछ न कहती।चलते फिरते छोटे बेटे को जताते रहती की छुटकी भी बड़कियों से कम नहीं, बहुत तेज और चालू है। बेटा सुनता रहता लेकिन प्रतिक्रिया नहीं करता। इससे दमयंती अंदर ही अंदर और कुढ़ कर रह जाती। अपनी कुढ़न वह चतुराई से बड़की बहुओ के बीच उतार देती और दोनों बड़की उसे छुटकी पर सरका देतीं। कुल मिला कर अब दमयंती के जीवन की कटुता का विष छुटकी के जीवन पर असर कर रहा था।छुटकी जिसे अभी तक दमयंती का 'नरम गरम' स्वभाव समझ नहीं आ पा रहा था। कभी उसे दमयंती बहुत सताई हुई लगती कभी बहुत आततायी।

इन दिनों छुटकी पेट से थी। दमयंती को दोनो बहुओं की तरह छुटकी से भी पोते की आशा थी।छुटके ने आज वज्रपात से कर दिया था, "अम्मा ,डॉक्टर से पूछे थे , भवानी आ रहीं हैं।" दमयंती ने कहा, "तुम्हारे डॉक्टर पर हमको भरोसा नहीं है, हम अपने वाले से दिखवाएंगे।" छुटके ने हंसते हुए कहा ,"अम्मा का तोहार डॉक्टर बदल दई लईकी के? तू रहे द, आपन तीरथ के तैयारी करा।"

लेकिन दमयंती अपनी जिद की पक्की थी। छुटके के टूर पर जाते ही वह छुटकी को ले कर अपने भरोसे के क्लिनिक चल दी। घर पर दोनो बहुओं के चेहरे पर मातम पसर गया था। उन्हें छुटकी पर दया आने लगी थी। पूरे तीन महीने से वह उल्टी पर उल्टी किये जा रही थी। उसपर से घर के काम और दमयंती का नियम कानून जिसमे उसके लिए किसी हालात में कोई ढिलाई नहीं थी। दमयंती के मुहँ से वह कई बार सुन चुकी थी की वो जचगी के दिन तक घर की सारी जिम्मेदारियां बिना किसी नखरे के निभाती रही है। वे दोनों चाह कर भी उसके काम मे कोई मदद नहीं कर पाती थीं।

छुटकी किसी अनहोनी की आशंका से चुप्पी लगा रिक्शे में उसके साथ बैठी थी। रिक्शे वाला बहुत बेकार रास्ते से उन्हें लिए जा रहा था।जगह जगह गहरे गड्ढों में रिक्शे का पहिया पड़ता ,छुटकी अपना पेट पकड़ लेती। जोर जोर के झटके पर दमयंती उसको कहती "अच्छे से रिक्शा पकडीहा नहीं त औरे काम लाग जाई।" छुटकी की आंखें आंसूओ से छलक पड़ी। " काहे डीरामा करतिया, छुटका नई खे हियाँ।" छुटकी को रोता देख दमयंती बुरी तरह चिढ़ गयी। "अम्मा पेट दुखाता" छुटकी ने रोते हुए कहा, दमयंती बोली " अपने बाबू जी से कही रहतीं एगो कार भिजवा द...अब सोनवा के दांत त नई खे हमरे लगे।"

रिक्शा वाला सब सुन रहा था।वो बोला "बिटिया रह रह, अभी सही सड़क पर ले चलत हई।" ," ए बूढा सीधा चला, हम सब समझत हईं, जेतना बांधे है पइसा उतना ही देब हम।" ," ओतना ही लेब माई, हम राछस नाही।"," के राक्षस बा?" रिक्शे वाले का ऐसा जवाब सुन दमयंती का पारा अचानक चढ़ गया। "रोक ,रोक हियाँ" दमयन्ती जोर से बोली।"अम्मा जाय द, पेट बहुत दुखाता।"," तू चुप रह ,सास के आगे बोलबू, यही सिखाइले बाड़ी तोहार माई.." ," काहे खातिर रीस्याता माई ,चलत त बानी।" रिक्शे वाले ने छुटकी की करुण आवाज सुन कर कहा, " त चुप्पे ऐही रास्ता चला।"

दमयंती और बहुएं जानती थी की छुटकी को किसलिए ले जाया जा रहा है।लेकिन छुटकी ,दमयंती के "सताई और आततायी" के बीच अब अपनी किस्मत पर भी संशय में पड़ गयी थी। क्लीनिक पहुंचते पहुंचते उसे रिक्शे पर ही बेहोशी छाने लगी।दमयंती इसे उसका नाटक समझ रही थी।वह बार बार खुद पर लुढ़कती छुटकी को कोहनी से मार कर सीधा बैठने को कहती, दर्द से कराहती छुटकी कुछ पल को होश में आती सीधा होती और फिर कुछ देर बाद उसी हाल में।

रिक्शा जैसे ही क्लीनिक के बाहर रुका ,दमयंती ने अपने बटुए से 20 रुपये निकाले और उतर गई। "माई 25 के बात रहल ह " ,"हेतना ही देब तोहरा के "," माई काहे पाप करता.."," तू हमनी के राक्षस कहब त हम तोहरा के पैसा लुटाई, रखा... न त हई भी ना देब" दमयंती के बहस के दौरान छुटकी औंधे मुहँ रिक्शे से लुढ़क कर जमीन पर गिर पड़ी। "रे मैया रे...बिटियाsss" रिक्शा वाला छुटकी की तरफ लपका लेकिन अब सब तरफ खून ही खून था।

दोपहर से शाम हो गयी। कोठी में सन्नाटा पसरा था। छुटके का फोन आया "अम्मा तोहार वैष्णो देवी का टिकट कैंसिल ..", "ए राम काहे कैंसिल .... मजाक करता नू?" अभी तक दमयंती या किसी ने भी छुटकी के साथ हुई दुर्घटना के बारे में छुटके को सूचित नहीं किया था।"काहे मजाक करब हम, कैंसिल त कैसिल, तू छुटकी के फोन पर देख लिहा , हम मेसेज फारवर्ड कर देब ",

  "मार...छुटकी, छूटकी , छुटकी.." दमयंती बुरी तरह झल्ला गयी। छुटका उसके ऐसे बोलने पर चौंका, दोनो बहुएं एक दूसरे को कनखियों से देखने लगी।दमयंती की छुटके के सामने छुटकी के प्रति गहरे दबी घृणा एकाएक बाहर निकल आयी। दमयंती ने तुरंत बात संभालने की कोशिश करी "..त ..त..अब कैंसिल हो गइल त हो गइल , हम आपन घर मे न बानी" ," अम्मा तू चिंता न करा हम आगे की डेट में करा देब", " ठीक बा ..ठीक बा अब फोन रखा।","छुटकी कहाँ बा ,उकर फोन नइखे लगता?!", " अउर कहाँ होइहें बहु रानी ,आपन कमरा मा होइ।", "ठीक बा, प्रणाम।" छुटके के सामने माँ की छुटकी को लेकर कटुता अंंतत: सामने आ चुकी थी।

"छुटकी के मायके से ,ओकर बाऊ जी के बुला ल और कहिया ...कुछ दिन आपन माई के लगे रहियें छुटकी।" दमयंती ने दोनों बहुओं को फरमान सुनाते हुए कहा।

"माई के जी...जनातानि ...छुटकी की माई कलपत रहली छुटकी के साथ रहल खातिर" दमयंती कहते हुए पूजा घर में चली गयी। दमयन्ती ने अपना भार छुटकी के मायके पर डालने का मन बना लिया था।

  रात मे दोनो बहुएं अपने सामने बिस्तर पर लेटी छुटकी के साथ हुए दुर्व्यवहार पर सिसकता देख सुन्न खड़ी थीं। छुटकी, जिसने कभी पलट कर न दमयंती, न इन दोनों को कभी कुछ कहा वह आज भी चुप थी और... दीवार की ओर मुहँ किये धीमे धीमे कराह रही थी। छुटकी के गर्भ गिरने के बाद अम्मा ने तुरंत उसी क्लिनिक पॉर डॉक्टर से सफाई करवा दी थी। उस रात छुटकी की कराह दोनों के दिल मे पसर गई।

सुबह दमयंती ने सुबह की सैर से घर लौटते ही , सारा घर सर पर उठा लिया था।वह दालान में खड़ी थी, दीवार घड़ी पर 8 बज गए थे ,घर अभी तक पूरा झाड़ा बुहारा नहीं गया था,लेकिन रसोई में आंच सुलगा दी गयी थी। दोनो बहुओं ने अपने पतियों को ऑफिस और बच्चों को खेलने भेज दिया था। दमयंती का हल्ला सुनकर छुटकी थर-थर कांपते बाहर आई , दमयंती ने उसकी ओर झाडू फेंक कर उसे सफाई के लिए कहा।बड़की बहू ने उसके हाथ से झाडू लिया और उसे कहा"छुटकी जब तक बाऊ जी नही आते तुम कुछ नहीं करोगी, जाओ आराम करो" , "ह्नssss बड़ा गोतनी के प्रेम उमड़ता ...चला तू ही करब अब से " दमयंती ने चढ़ते गुस्से में ,आंखें नचाते कहा।मझली भी शोर सुन रसोई से बाहर चली आयी।"अम्मा कमवा त ...न बड़की न छुटकी और न ...हम करब.."," काssss हमरा से जबान लड़ाव..." इससे पहिले दमयंती अपनी बात पूरी करती बड़की बोली, "आपकी समझ मे अब भी नहीं न आया न ...कहाँ जाइयेगा हेतना बिस लिए... दुनिया ने आपको सताया तो ..उसका बदला हम लोगिन से लेंगी? ","देखी नहीं...वैष्णो मैया भी इसबार दुत्कार दीं इनको, इनके करम देख कर " मझली भी कमर पर हाथ धर बोल पड़ी। दमयंती के लिए ये अपमान उसकी सहन शक्ति से बहुत परे था। वह झाडू उठा के बड़की को मारने चली, बड़की ने उसके हाथ से झाड़ू ले लिया। छुटकी ने गुस्से से कांपती दमयंती के पैर पकड़ लिए "अम्मा जौन हुआ तौन हुआ, आप शांत ही जाइये, अपना मान संभालिये।" दमयंती को अपने गुस्से पर काबू नहीं रहा, छुटकी की हालत भूल कर उसे जोर से लात मार कर परे किया। छुटकी के मुह से बहुत दारुण चीख निकली "अम्माsssss री "। दमयंती के उफान पर जैसे किसी ने अचानक पानी का छींटा दे मारा हो। दोनो बहुएं दमयंती को जाने क्या-क्या कहते हुए छुटकी की ओर दौड़ी। इधर छुटकी की चीख से दमयंती की सोई हुई ममता जागी और वह तुरंत छुटकी को गोद में ले लेने को बेचैन हो गयी।लेकिन दोनों बहुओं ने उसे छुटकी को हाथ भी न लगाने दिया।उसे उठा कर वह उसे उसके कमरे में ले गयी।

दालान में खड़े खड़े दमयंती के दिलो दिमाग मे खलबली सी मच गई थी। ये उसे क्या कह गयीं दोनो बहुएं?! क्या वही सच है?! और छुटकी जो उसे उसका मान बचाये रखने को उसके पैरों में पड़ी थी। उसे क्यों उसने लात मारी? जबकि उसने कुछ गलत न कहा, न किया।

दमयंती वहीं दालान में बैठ गयी। उसको छूटकी का दर्द में "माई" न कह कर अम्मा कहना सालने लगा। इतने वर्षों में वह "अम्मा" कहाँ रह पाई है।किसी योद्धा की तरह निर्दयी दुनिया से अपनी दुनिया को बचाने के लिए लड़ते लड़ते ,कब ये उसका स्वभाव बन गया और कब वह बाहरी दुनिया से जीतने के बाद भी अपनी ही दुनिया से लड़ने लगी थी,पता ही न चला। क्या कमी है आज उसके पास? सब कुछ तो है? उसे अचानक छुटके का ख्याल आया। वो छूटकी के साथ हुआ कृत्य जानेगा तो चुप न रहेगा, कहीं उसकी दुनिया बिखर न जाये?! यह ख्याल आते ही दमयंती बुरी तरह रो पड़ी।

कुछ देर में डॉक्टर घर पर थे, छुटके को कुछ अनहोनी का आभास हो रहा था सो वो भी भागा चला आया था।छूटकी के गर्भ गिरने की बात सुन कर वह दुखी हुआ लेकिन छूटकी सही सलामत है इससे उसे सुकून था। दमयंती, मूक खड़ी थी। लेकिन आश्चर्य किसी ने गर्भ गिरने के पीछे उसकी दुष्टता को नही उजागर किया था। छूटकी के स्वभाव से वह परिचित थी कि वह खुद कभी नहीं बताएगी लेकिन जिस तरह से बड़कियों ने आज रंग दिखाए उसे यकीन नहीं हो रहा था की वे दोनों चुप रहेंगी।

"अम्मा, हम दोनों अब कोठी में ना रहेंगी"

"जी अम्मा, आज जो हुआ वो न आप भूल पाएगी न हम "

"रही छुटकी, ओ ही आपसे निबाह कर सके है।"

" छुटकी कसम दे दी है ,इसलिए नही बताए आपकी लीला भैया जी को।"

वृद्धा दमयंती, बैठक में तख्त पर बैठी , बड़की- मझली के चबाए हुए दंश सुन रही थी। छुटके ने आकर कहा "अम्मा हमको लगता है छूटकी को दिल्ली दिखाना पड़ेगा।उसे साथ लिए जाते हैं, वहां कम्पनी की तरफ से फ्लैट भी मिल ही चुका है।"

"कब जाना है?" दमयंती ने पूछा।

"काल भोरे निकलब"

"ठीक बा, हई कोठी के तीन चबिया बना ली ह।"

"काहे खातिर"

"अब हम पुरनका घर मे रहब जहां बियाह के अइनी ह, ओहे मनाइब रूठल माता रानी के।" कह कर दमयन्ती उठ कर अपने कमरे में चली गयी।


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