मानवता भरे सुकून के पल
मानवता भरे सुकून के पल
विनीता कुछ ही दिन पहले कोरोना नेगेटिव हुई, पर उस अंतराल में वो हर रोज़ तिल तिल तड़पी, अपने पति अपने बच्चों से मिलने के लिए। डॉक्टर के कहे मुताबिक खाना भी सही नहीं मिल पा रहा था। अकेला पति क्या क्या कर सकता था, पर ईश्वर ने साथ दिया और जैसे तैसे, 14 दिनों का वनवास ख़तम हुआ। पर विनीता को हर दिन अपनी और आस पास की सोसाइटीज़ में अकेले इस बीमारी से झूझते परिवारों की खबरें मिलती रहतीं, वो विचलित हो उठती। कुछ करना चाहती थी, मदद...मदद करना चाहती थी।
उसने निश्चय कर लिया कि वो कोरोना पॉजिटिव लोगों को खाना भिजवाया करेगी, और सभी को कपूर, अजवाइं और लौंग की पोटली भी दिया करेगी, बिना कोई पैसा लिए, उसका साथ देने के लिए सोसाइटी के गार्ड्स भी शामिल हो गए, उन्होंने भी बिना पैसा लिए टिफिन पहुँचाने का काम हाथ में ले लिया।
सब कुछ तय होने के बाद विनीता ने आपने सोशल मिडिया के ज़रिये नि:शुल्क टिफिन पहुँचाने की बात हर जगह प्रसारित कर दी।
जल्द ही उसको खूब ऑर्डर मिलने लगे, गार्ड्स भी पूरी शिद्दत के साथ उसका साथ दे रहे थे। उधर कोरोना मरीज़ स्वादिष्ट, पौष्टिक व कपूर की पोटली पा कर विनीता को खूब दुआएं देते। रोज़ तारीफ़ और दुआओं के वीडियो लोग उसे भेजते जिन्हें पाकर वो जोश और उमंग से भर जाती।
विनीता भी पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी, कोरोना तो चला गया था पर छोड़ गया था अथाह कमज़ोरी। पर विनीता हार मानने वालों में से नहीं थी, जब थक जाती तो थोड़ी देर बैठ जाती, और राधे का नाम ले फिर जुट जाती।
पतिदेव के लाख मना करने पर भी नहीं मानती और बहुत सौम्यता से बस यही कह देती " मानवता के लिए ये मेरा बहुत छोटा सा योगदान है, जिससे मुझे सुकून के कुछ पल मिलते हैं... प्लीज़ ये मत छीनो मुझसे "
पति देव निः शब्द हो उसे ठंडी शिकंजी अपने हाथों से बना कर पिला दिया करते और प्रेम से कहते " आज तक कभी तुम्हें किसी चीज़ के लिए रोका है? जो अब रोकूँगा, तुम दूसरों का ध्यान रखो मैं तुम्हारा ध्यान रखूँगा"।
