"मानो या ना मानो"
"मानो या ना मानो"
भीषण सर्दी की रात थी ।१ बज रहे थे। मैं और मेरे पति शादी समारोह से लौट रहे थे।अचानक एक स्थान पर हमारी स्कूटी रुक गई। कोशिश करने पर भी चालू नहीं हो रही थी ,तभी वहाँ से एक अजनबी जिसका आधा मुंह ढका हुआ था ,ने अपनी बाइक हमारे पास रोकी और पूछा "कोई दिक्कत है क्या?" हम डरे हुए थे हमने मदद लेने से मना कर दिया वो आगे बढ़ गया । काफी देर हो गयी कोई प्रयास काम न आया ,तभी दो लड़के बाइक पर वहाँ से गुजरे। थोड़ी ही देर बाद वो फिर से मुड़ कर वापस आये फिर थोड़ी देर में वो नकाब वाला आदमी भी उनके पीछे आया। हम काफी डर गए ,ये सब अचानक एक साथ हमारी तरफ ही क्यों आ रहे हैं? कुछ समझ में नहीं आ रहा था किसे मदद के लिए आवाज लगाएं। अब वो हमारे एक दम सामने थे, तीनो जो बाइक पर थे उनने हमसे आग्रह की हमें मदद करने दें, हममे से एक आपकी स्कूटी को धकेल लेगा। मेरे पति ने मुझे नकाब वाले आदमी के पीछे बिठा दिया और वो उनमें से एक लड़के के पीछे बैठ गए मुझे डर भी लग रहा था पर उस अजनबी की आँखों में सच्चाई झलक रही थी । रास्ते में उसने मुझे बताया कि मैं काफी दूर निकल गया था पर मेरा मन नहीं माना। मुझे लगा कि मुझे वापस जाकर आप लोगों की मदद करनी चाहिए यहाँ आकर देखा तो लगा कि कहीं ये लड़के आपको परेशान तो नहीं कर रहे, पर वो भी आपकी मदद करने की भावना से आपके पास आये थे ।अजनबी की उन बातों ने मेरा इंसानियत पर भरोसा बढ़ा दिया ।मुझे ये कहानी लिखने को प्रेरित भी किया ताकि मैं अपनी इस कहानी के माध्यम से उनको धन्यवाद दे पाऊं।आज के समय में जहां कोई किसी की मदद के लिए नहीं आता वहां इन लोगो ने हमारी मदद कर ये साबित कर दिया था कि मानो या ना मानो आज के कलयुग में भी मानवता ज़िंदा है। हर आदमी बुरा नहीं होता, ऐसे ही लोगो से धरती थमी है।
