मानो या न मानो
मानो या न मानो
आज श्यामा को देखने लड़के वाले आ रहे हैं। सांवले रंग की सतरह साल की श्यामा तीन बहनों में सबसे बड़ी है। पढ़ाई में बहुत होशियार, अपने कस्बे की मेधावी छात्रा है। अगले ही महीने बारहवीं पास हो जाएगी। वह आगे पढ़ना चाहती है किन्तु पिता उसकी शादी कर देना चाहते हैं क्यों कि श्यामा का रंग पक्का, नैन नक़्श साधारण हैं। जो भी उसे पसंद कर ले, उस से ब्याह कर गंगा नहा लें। ऊपर से, दो लड़कियाँ और हैं। ये लड़का अच्छा मिल गया है।सरकारी दफ्तर में चपरासी है। ज़रा उम्र में बड़ा है, पर क्या फर्क पड़ता है। पिता कहते है कि लड़कों की उम्र नहीं तनख्वाह देखनी चाहिए। सबसे अच्छी बात है कि बिना दहेज के शादी करने को तैयार है वह। ऐसा रिश्ता हाथ से कैसे जाने दें।
श्यामा की सबसे अच्छी सहेली है गीता। गीता के पिता किसान हैं लेकिन चाहते हैं उनकी बेटी पढ़ लिख कर अपने पाँव पर खड़ी हो जाये। वह श्यामा को भी आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते है।
श्यामा भाग कर गीता के पिता के पास खेत में जा पहुंची। उन्होंने उसे वहीं अनाज के ढेर के पीछे छुपे रहने को कहा।
शाम होते ही श्यामा घर वापिस चली गयी। माहौल गर्म था। लड़के वाले जा चुके थे। पिता श्यामा को घर से ग़ायब देख परेशान थे, ऊपर से जो अपमान हुआ वह अलग। वह दुखी थे कि इतना अच्छा रिश्ता हाथ से निकल गया। बात बन जाती तो श्यामा को गहनों से लाद देते वे लोग।
श्यामा चुप चाप सिर झुका कर डाँट सुनती रही। फिर धीरे से बोली," आप निश्चिंत रहिये पिता जी। आपका नाम रौशन करूँगी। बस मुझे पढ़ने दीजिए।"
माँ के मन में दबी सी इच्छा थी कि बेटी पढ़ लिख जाए किन्तु पति के विरुद्ध बोलने की हिम्मत नहीं थी।
उस दिन के बाद पिता ने श्यामा से बात नहीं की। बाहरवीं की परीक्षा का परिणाम आने वाला था। आज पिता घर लौटे तो घर में लोगों का जमावड़ा लगा था।अखबार वाले, टी वी वाले , स्कूल के प्रिंसिपल और नाते रिश्तेदार। पता चला श्यामा ने पूरे हरियाणा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। सुबह अखबार में श्यामा और उसके माता पिता की फ़ोटो छपी थी। माँ के पाँव ज़मीन पर नहीं थे। सुबह से सब आस पड़ोस में दिखा आई थी। पिता भी प्रसन्न थे किंतु खुशी प्रदर्शित नहीं करना चाहते थे। अहम जो आड़े आ रहा था। मुहँ बना कर यूँ ही बैठे रहे। माँ एक बड़ा सा लड्डू ले कर आई। आज पहली बार पति के सामने मुँह खोलने की जुर्रत की। बोली," लो जी, आप भी मुँह मीठा कर लो। आप मानो या न मानो, इंसान का असली गहना तो पढ़ाई ही है। आप देखना हमारी बिटिया डॉक्टर बनेगी। और ये जो दिन भर खों खों करते रहते हो न, देखना आपका इलाज भी यही करेगी।"
श्यामा झट पिता के समीप बैठ गई। पूछा," पिता जी, आप अब भी मुझ से नाराज़ हैं?"
पिता जी हँसते हुए बोले," भाई मानो या न मानो।नाराज़ होना तो श्यामा का बनता है। अगर उस बुड्ढे खूसट से शादी कर ली होती तो आज ये दिन देखना नसीब न होता। शाबास बिटिया ... खूब पढ़..अपना हर सपना पूरा कर!"
श्यामा खुशी से आगे बढ़ कर पिता के गले लग गयी।