Ira Johri

Inspirational

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Ira Johri

Inspirational

माँ

माँ

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  चढ़ती रात के साथ विचार भी मन को आन्दोलित कर रहे थे ।ऐसे में नींद कोसों दूर जा चुकी थी। कमरे में ही टहलते हुये वो खिड़की तक जा पँहुची। बाहर खुला आसमान और चाँदनी रात में खाली पड़े झूले को देख खुद को उस पर बैठने से रोक नहीं पाई ।अकेली ही जा कर झूले पर बैठ यादों के झोंको से खुद को झुलाने लगी।  माता पिता की इकलौती औलाद होने के कारण नाजों से पली थी वो। पर वक्त नें ऐसा खेल रचा कि अनुपयुक्त जीवनसाथी पा एक दिन थक हार कर उसको वापस माँ के आँचल में पनाह लेनी पड़ी । बूढ़े किन्तु मजबूत कंधों का सहारा पा वह फिर से सुख दुःख के झूले पर झूलते हुये पेंग बढ़ा खुशियों का दामन छूने की कोशिश करने लगी। 

तभी उसे पता चला कि कोई अपनी अजन्मी कन्या सन्तान के लिये उचित आश्रय ढूंढ रही है। अपना वरद हस्त आगे कर वह नवजात की माँ बन उसकी रक्षक बन गयी । जिस कन्या के जीवन पर ही एक समय प्रश्नचिन्ह लग चुका था ।आज वही उच्च शिक्षा प्राप्त कर उसकी जिन्दगी के सूनापन को दूर कर कभी अकेले होने का एहसास ही नहीं होने देती ।उसे वह बेटी बना कर लाई थी पर अब वह उसकी माँ बन हर पल उसका ख्याल रखती है ।उसके विषय में सोचते ही अनायास एक मीठी सी मुस्कान उसके होठों पर फैल गयी । तभी "माँ यहाँ अकेले में क्यूँ बैठी हो" सुन कर उसकी तन्द्रा भंग हो गयी और वह उसके प्यार भरे एहसास के साथ वापस घर की ओर चल दी।


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