माँ
माँ


हाथों में लाठी डंडे लिए गांव के लोग उसके घर के सामने खड़े थे। वो भी अपने घर में दुबकी हुई भगवान से मदद की गुहार लगा रही थी। उसकी गोद में उसका छोटा सा बच्चा डरा सहमा रो रहा था। अपने बच्चे को चुप कराने की हर मुमकिन कोशिश करती वो कभी दूध की बोतल, तो कभी अपनी थपकी सहारा लेती। वो इंतजार कर रही थी लोगों के वहाँ से जाने का इंतजार कर रही थी।
“देख पूरो, अगर तू बाहर नहीं आईं तो हम इस घर को आग लगा कर तुम दोनों की चिता यही जला देंगे।” कोई बाहर से चिल्ला रहा था।
“अगर मेरे बच्चे को एक चिंगारी भी छुई तो मेरी बद्दुआ से तुम लोगों के घर जल कर राख हो जायेंगे।” पूरो बच्चे को अपने आँचल में समेट कर बोली।
लोगो के बीच खुसुर-पुसुर शुरू हो गई। कुछ विचार विमर्श के बाद कोई बुजुर्ग नरम लहजे में बोला- “देख पूरो मैं समझता हूँ, तू एक माँ है। तेरे लिए आसान नहीं है यह सब लेकिन हम सब भी तो तेरे भले के लिए ही ये सब कर रहे है।”
पूरो बोली- “देखिए सरपंच जी, आप हमारे अन्नदाता है लेकिन किसी माँ का अपने बच्चे से दूर रहकर क्या भला हुआ है कभी?”
सरपंच बोले- “पूरो मेरी बात समझने की कोशिश करो। अगर यह बच्चा यहां रुक गया तो इसे भी तकलीफ होगी और तुम्हें भी। समाज में जिंदगी जीना आसान नहीं होगा इसके लिए।”
पूरो ने जोश में कहा- “सरपंच जी शायद आप भूल रहे है, इस देश के संविधान ने सबको बराबरी से जीने का हक दिया है और अगर आपने मेरे बच्चे को मुझसे दूर करने की कोशिश की तो.......”
सरपंच बीच में ही बोले- “तुम्हारी बात बिल्कुल ठीक है लेकिन समाज कानून पर नहीं अपनी सोच पर चलता है। उससे कैसे लड़ोगी, बताओ?
काफी देर तक कोई जवाब नहीं आया। सभी लोगों को अपनी जीत नजर आ रही थी। कुछ देर बाद पूरो की आवाज आई और किसी के पास कोई जवाब नहीं था। पूरो ने कहा था-
“देखिए सरपंच जी, किन्नर होना ना तो मेरे बच्चे की इच्छा है और ना ही इसकी मजबूरी। यह इसका अस्तित्व है और माँ होने के नाते मैं इसकी और इसके अधिकारों की रक्षा करूँगी। यदि आप मुझसे यह बच्चा लेना चाहते है तो आप मेरे मरने के बाद ही मुझसे ले सकते है।”