माँ
माँ
माँ के लिए सिर्फ माँ लिखना काफी है और कुछ भी नहीं।
कही न कही ये बात भी शत-प्रतिशत सत्य है कि ईश्वर ने अपने रूप में माता-पिता को हमारे लिए दिया
और दोनों ही विधाता बन के हमारे जन्म और कर्मयोगी बनाने का निर्माता है। माँ वो पाठशाला है,
जहाँ हम अपने शिष्टाचार की, हमारे संस्कृति की और हमारे परिवार से परिचय कराती है।
माँ, अपने बेटा हो या बेटी सबके साथ एक व्यवहार करती उनके ख़ुशी के बदले अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती।
एक माँ सब कुछ अपने बच्चों को दे सकती लेकिन कोई माँ अपने बच्चों का भाग्य नहीं बदल सकती लेकिन फिर भी वो ईश्वर से अपने बच्चों के ख़ुशी के बदले अपना सब कुछ देने के लिए एक पल भी नहीं सोचती।
माँ एक शक्ति है, जिसके आँचल तले हम आज भी कमजोर नहीं और कभी मायूस भी हुए तो एक माँ जिसके सामने हम रो सकते, एक यथार्थ और निर्मम सत्य है।
मोह के धागे से बंधे माँ के साथ बच्चे का रिश्ता जन्म से लेकर अपनी आखिर सांस तक ऋणी है।
अपनी माँ की परछाई हूँ और मेरी दोनों माँ के कारण ही मैंने अपना अस्तित्व पाया है,
कितना शब्दों में ढलूँ …
और जितना….
ढलूँ अपनी माँ से मिलूं…!!
माँ के हर आदर्श रूप को मैंने अपनाया है, उनका प्यार , उनका सत्कार, उनका संस्कार और उनसे ही सीखा स्वयं के आत्मसम्मान की
सुरक्षा करना। माँ होना ही आसान नहीं, यही समझा और जाना है।
मेरी दोनों माँ की अच्छाइयाँ उनकी सीख आज भी मुझे अपने जीवन में पथ-प्रदर्शक बन कर मेरे साथ चल रहा।
माँ तो सबकी एक सी होती है लेकिन रूप में सब अलग और मन से सब एक सी ममता की मूरत माँ होती है।
