माँ
माँ


बूंद बूंद करके श्रवण की रगों में भारती का लहू समा रहा था.... भारती हसरत भरी नज़रों से श्रवण को निहार रही थी।
आँखों के सामने चलचित्र की भाँति पिछले पंद्रह साल का एक एक लम्हा गुज़र रहा था।
कई सुनहरे सपने आँखों में लिए भारती केशव से ब्याह कर आई थी।केशव का ये दूसरा विवाह था।पहली पत्नी का देहांत हो चुका था... दो छोटे छोटे बच्चों की माँ के रूप में भारती का गृहप्रवेश हुआ था।केशव ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि भारती इन्हीं बच्चों को अपने बच्चों की तरह अपनाएगी.... अर्थात वो स्वयं कभी माँ बनने की ज़िद नही करेगी।
भारती ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था... तन से माँ नही बनेगी , पर मन से माँ बन कर इन्हीं पर अपनी ममता लुटाऊंगी।लेकिन ऐसा कभी हो न सका....उसकी हर गतिविधि को शक के दायरे में रखा गया.... बच्चों को डाँटने या चपत लगाने की सख्त मनाही थी... शिकायत करना ...तो सीधे सौतेलापन की उपाधि से नवाज़ दिया जाता।बच्चों की ग़लत बातों पर एक माँ का मन उन्हें समझाईश देने का होता , तो...."तुम ज़्यादा समझदार मत बनो"...कहकर झिड़क दिया जाता।भारती एक सच्ची माँ बनने के लिए तड़पती रही पर सौतेली ही मानी गई। गाहे बगाहे रिश्तेदारों द्वारा "सौतेली" शब्द का नश्तर चुभा ही दिया जाता था उसे। बच्चों को सीने से चिपकाने के लिए कसकती रही..पर उसकी ममता प्यासी ही रही।
श्रवण को सत्रहवें जन्मदिन पर मोटरसाइकिल दिलवा दी गई...भारती ने दबी आवाज़ में केशव को समझाने की कोशिश भी की...कि इतनी छोटी आयु में उसको गाड़ी हाथ मे मत दो...किंतु "हर बात मे टांग मत अड़ाया करो"...कहकर झिड़क दी गई।
आज श्रवण हॉस्पिटल में मौत से लड़ रहा था... भयंकर एक्सीडेंट मे उसका सिर फट गया... बचाने के लिए खून की ज़रूरत... खून मैच हुआ भारती का।
"ये अब खतरे से बाहर है.. कुछ ही देर में होश आ जाएगा"..डॉक्टर ने कहा।
श्रवण ने आँखें खोली... बाजू के बैड पर भारती लेटी थी....खून अभी चढाया ही जा रहा था।
"माँ.....'...श्रवण की आवाज़ से भारती के कानों में जैसे शहनाईयाँ बज उठी।
उसने श्रवण को देखा... जिसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
भारती की कोख में हलचल हुई... आज वह माँ बन गई.... श्रवण की रगों में उसकी ममता प्रवाहित हो रही थी।
सौतेला शब्द कहीं खो चुका था।