meghna bhardwaj

Abstract

4.5  

meghna bhardwaj

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माँ तो हर किरदार निभाना जानती थी

माँ तो हर किरदार निभाना जानती थी

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कभी कभी घर की याद सिर्फ़ इसीलिए ही नहीं

आती की वहाँ सुकून है

बल्कि इसलिए भी आती है

क्योंकि वहाँ माँ है


उसके बारे जितना कहो लिखो कम ही लगता है

उसके प्यार को शब्दों में बयान तो नहीं कर पाऊँगी

मगर फिर भी।

घर में वाशिंग मशीन था हमारे

मगर वो फिर भी अपने हाथों से मेरे कपड़े धोती थीं।

ख़ाना तो Swiggy और zomato पर भी मिलता था

वो फिर भी रात के 1 बजे मुझे गरम गरम रोटियाँ बनाकर खिलाती थी।


स्कूल में एनुअल फंक्शन हो या पीटीएम 

वो हमेशा वक़्त से पहले पहुँच जाती थी

मेरी तारीफ़ें होती तो मुस्कुराती थी

कोई शिकायत करता अगर 

तो कहती

“तू डर मत मैं पापा को नहीं बताऊँगी”


कभी डॉक्टर, कभी दोस्त तो कभी कुक बन जाती 

माँ तो हर किरदार निभाना जानती थी।


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