meghna bhardwaj

Romance

4.0  

meghna bhardwaj

Romance

दुल्हन का आशिक़

दुल्हन का आशिक़

12 mins
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ये कहानी है, अनिल और सरोज की है, सरोज एक बेहद सुंदर और सुलझी हुई लड़की थी वो जिससे प्यार करती उसके लिए हमेशा कुछ भी करने को तत्पर रहती। लेकिन अनिल उसका बिल्कुल विपरीत था, अनिल के लिए प्यार, सम्मान feelings की कोई जगह नहीं थी, वो बस अपने मतलब तक साथ रहता है।


सरोज महज 25 साल की थी। जब उसे अनिल से पहले प्यार का एहसास हुआ। पर अनिल सरोज को सिर्फ अपनी हवसी दुनिया का एक खिलौना समझता था। धीरे धीरे सरोज और अनिल में नजदीकियां बढ़ती जा रही थी। सरोज जिसे प्यार समझ रही असल में वो प्यार नहीं था। बस अनिल की हवस थी

सरोज अनिल को ज्यादा लंबे समय से नहीं जानती थी, मगर अनिल के लिये उसका प्यार बेहद गहरा रहा। सरोज एक सुंदर लड़की थी, और बेहद समझदार भी मगर अनिल को चाहने से पहले उसने उसने एक बार भी सोचा कि अनिल पर इतनी जल्दी भरोसा करना ठीक नहीं है। और अनिल वो सब अच्छे से जानता था कि वो उससे बहुत प्यार करती है। उसे फ़साना मुश्किल नहीं होगा। एक दिन सरोज जब कॉलेज छूटने के बाद घर जा रही थी।

अनिल उसे पीछे से आवाज़ देता है।

"सरोज रुको" और उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी बाइक पर बैठाता है, और उससे कसके लिपट जाता है।

"छोड़ो मुझे अनिल कोई देख लेगा मुझे जाने दो".....सरोज अपने आप को अनिल की पकड़ से छुड़ाते हुए बोलती है।

अनिल सरोज को इतना कसके पकड़े होता है सरोज की धड़कन तेज हो जाती।  "क्या यही है तुम्हारा प्यार , थोड़ा सा तुम्हें छू लिया तो मर तो नहीं जाओगी, तुम्हें पता नहीं प्यार में ये सब होता है, अगर तुम्हें ये मेरा नजदीक आना पसंद ना हो तो ठीक है, मैं चला जाता हूँ"

ऐसा बोल अनिल गुस्से में वहां से चला जाता है। "नहीं नहीं अनिल मेरा वो मतलब नहीं था"

सरोज हिचकिचाते बोलती है। अनिल सुनो अभी ये सब करने की हमारी उम्र नहीं है। और मैं माँ बापू को धोखा नहीं दे सकती।।

बस उस दिन के बाद से अनिल सरोज से नहीं मिलता था, काफी दिनों तक वो सरोज को नज़र अंदाज़ करता रहा।

सरोज को लगता था, कि शायद अनिल को उस दिन की बात का बुरा लगा है

"मैं उससे दूर नहीं रह सकती, अनिल ठीक ही कह रहा था, मुझे उसे मना नहीं करना चाहिए और वैसे भी हम एक दूसरे से प्यार करते है, ये सब तो नार्मल है" सरोज मन में सोचती है। अब से अनिल बोलेगा वैसा ही होगा, फिर वो मुझसे नाराज़ नहीं होगा। अगले दिन सरोज अनिल को रोकती है।

"तुम मुझसे बात क्यों नहीं कर रहे, देखो मैं अबसे जैसा और जो तुम चाहोगे वैसा करूँगी, मुझे उस दिन के लिए माफ करदो अनिल"....सरोज भावुक हो बोलती है।

"तुम मुझसे अलग मत रहो"

अनिल फिर थोड़ा मुस्कुराता है।।और सरोज को अपने घर मिलने बुलाता है

अनिल घर मे अकेला रहता था। उसके माता पिता गाँव में खेती बाड़ी करते थे। अनिल इकलौता बेटा था।

अपनी पढ़ाई के लिए वो सहर में रहता था।

सरोज ने अनिल को हाँ तो कह दिया था पर मन ही मन सरोज को डर रहता है कि वो अपने परिवार को धोखा दे रही है, अनिल उसके साथ बाद में उसे छोडतो नहीं जाएगा,

ऐसे तमाम सवाल उसे डरा रहे थे, और अनिल से मिलने को रोक रहे थे।

"वो मुझे प्यार करता है, मेरे साथ कुछ गलत नहीं कर सकता। अनिल मुझे धोका नहीं देगा, मैं ही पागल हूँ जो ये सोच रही हूँ" सरोज सोचती है।

आखिर में अनिल के पास जाने को राजी हो जाती है।

अनिल का घर ज्यादा बड़ा नहीं था।

बस एक कमरा और एक हॉल था। सरोज अंदर जाती है तो देखती है.

कि अनिल उसके इंतज़ार में हॉल में ही बैठा था। और शराब पी रहा था।

अनिल बहुत ज्यादा नशे में था, उसे सोफे पर से उठा भी नहीं जा रहा था।

सरोज को यह देख बड़ी हैरानी होती है।और वो डर भी जाती है।

अनिल कहता है .."अरे सरोज इतना शर्मा क्यों रही हो, मुझे पहली बार देख रही हो क्या?"

"न न न नहीं मैं वो" सरोज हिचकिचाते हुए कहती है।

तभी अनिल अपने लड़खड़ाए कदमों से खड़ा होता है ,और उसका हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ बैठने को कहता है।

सरोज बैठ जाती है, डरी और घबराई हुई।

"ऐसे मज़ा नहीं आएगा सरोज, तभी अनिल शराब से भरा ग्लास लेकर कहता है, लो तुम भी पियो तभी तो तुम्हें ज्यादा मज़ा आएगा"

सरोज साफ मना कर देती है। नहीं अनिल ये सब नहीं पीती तुम रहने दो।

"अरे मेरी प्यारी सरोज इससे कुछ नहीं होता ,मैं भी तो पी रहा हूँ। इससे तुम्हें अच्छा लगेगा। कुछ नहीं होगा मैं हूँ ना तुम मुझसे प्यार करती हो ना मेरे लिये इतना नहीं करोगी" ...नशे में धुत अनिल सरोज से बोलता है।

एक बार फिर सरोज अनिल की बात मानती जाती है।।

सरोज थोड़ी शराब पी लेती है।

उसके बाद उसे नशा चढ़ने लगता है और वो अनिल की गोद में जा गिरती है।

और फिर वही होता है जिसका अनिल को इंतज़ार था।

अनिल सरोज को उठाकर अंदर कमरे में ले जाता है। अपने बेड पे लिटाकर उसे चूमने लगता है।

सरोज बेहोश थी। धीरे धीरे करके वो सरोज के साथ जबरदस्ती करने लगता है।

सरोज को जब होश आता है ,तो वो अपने आप को बहुत खराब हालत में पाती है।

वो देखती है अनिल कमरे में नहीं था।

वो छटपटा के उठती है, और बाहर हॉल में देखती है तो अनिल शराब के नशे में धुत वहाँ बेहोश पड़ा होता है।

और उसने कपड़े भी नहीं पहने होते।

सरोज सब कुछ समझ जाती और रोते हुए वहाँ से चली जाती है। उसे अब महसूस हो गया था कि उससे बहुत बड़ी गलती हो गयी है। अब

माँ बाप को बताऊँ कैसे की मेरे साथ क्या हुआ है।


"अनिल ने मेरे साथ ऐसा किया मैंने कभी सोचा भी नहीं था, मुझे वहाँ जाना ही नहीं चाहिए था"....सरोज अपनी गलती पे पछतावा करते हुए कहती है।


इस हादसे के बाद सरोज इतना डर गई थी की सरोज बहुत दिनों तक फिर कॉलेज भी नहीं जाती थी। धीरे धीरे करके उसने पढ़ाई ही छोड़ दी।

2 महीने बीत गए, अनिल का भी कुछ पता नहीं था वही दूसरी ओर गाँव में उसके पिता ने उसके शादी के लिए एक अच्छा रिश्ता ढूंढ लिया।

मगर सरोज अभी भी अनिल के उसके साथ किये दुर्व्यवहार से डरी हुई थी। वो किसी को बता भी नहीं सकती थी। उसकी माँ उसे समझाती है " बेटा रिश्ता अच्छा है, लड़का शहर में रहता है। अच्छा कमाता है तुम खुश रहोगी। और वैसे अभी जवान लड़की ज्यादा समय घर में बैठी अच्छी नहीं लगती".

सरोज फिर तय करती है, कि वो अपनी जिन्दगी की एक नई शुरुआत करेगी। बीती बाते भूलकर। अब आने वाले कल के बारे में सोचेगी।


वो रिश्ते को हाँ कह देती है। अगले 1 हफ्ते एक अंदर उसकी शादी हो जाती है। सरोज बहुत खुशी होती है। की अब वो एक नई जिंदगी की शुरुआत करेगी। पर उसे क्या पता था कि अतीत उसका पीछा नहीं छोड़ेगा। शादी के 15 दिन बाद ही सरोज को पता चलता है कि वो माँ बनने वाली है।

और उसे पता था कि ये बच्चा अनिल का ही है। सरोज बहुत घबरा जाती है। उसे समझ नहीं आता अब वो क्या करे। जाहिर था शादी को अभी सिर्फ 15 दिन हुए है और इतनी जल्दी गर्भ धारण करना सम्भव नहीं है। वही सरोज का पति राघव उससे बहुत प्यार करता था। राघव, सरोज को बहुत प्यार करता था, वह सरोज को सिर आंखों पे बिठा के रखता था लेकिन उस बेचारे को भनक तक नहीं थी कि सरोज उससे कितना बड़ा सच छिपा रही है।

सरोज राघव को कभी अपने करीब नहीं आने देती थी, कोई ना कोई बहाना बनाकर राघव को समझा देती।

लेकिन एक दिन.....

राघव एक दिन आफिस से घर आकर रसोई में काम रही सरोज से जाकर लिपट जाता है। सरोज भी राघव से बहुत प्यार करती है

उस समय सरोज ने भी राघव को नहीं रोका था, वो भी राघव के बदन से चिपकी रही।


राघव सरोज को गोद में उठाकर रूम में ले जाता है। सरोज भी मदहोश रहती है और राघव को निहारती है।


तभी एक दम से सरोज राघव को दूर कर खड़ी होती है। और राघव से दूर होने को कहती है। "राघव हटो, अभी नहीं मुझे थोड़ा वक्त चाहिए "धीमी आवाज़ में सरोज राघव से बोलती है। "वक़्त? सरोज हमारी शादी को 3 महीने हो गए, मैं जब भी तुम्हारे पास आता हूं, तुम्हें इतनी घिन क्यों होने लगती है मुझसे" राघव गुस्से में बोलता है। सरोज बिना कुछ जवाब दिए, चली जाती है। राघव हैरानी में था एकदम से इसे क्या हो जाता है। सरोज ये भूल गयी थी कि वो गर्भवती है। ऐसे ही करते करते 1 महीना बीत जाता है। फिर एक दिन सरोज चक्कर खाके नीचे गिर जाती है। राघव उसे फ़ौरन उठ के हॉस्पिटल ले जाता है, डॉक्टर तुरंत सरोज की कुछ टेस्ट करने को कहते है।


"मुबारक को, आप बाप बनने वाले है"..डॉक्टर राघव से कहते है। लेकिन ये खबर सुन के राघव को खुशी नहीं बल्कि बहुत बड़ा झटका लगा। राघव बड़ी हैरत मैं था। कि शादी को अभी इतना समय नहीं हुआ और सरोज ने मुझे अपने नज़दीक नहीं आने दिया। फिर ये सब कैसे?

राघव फिर सरोज से इस बारे में बात करता है। सरोज को यकीन था कि राघव उसकी बात समझेगा।।  सरोज राघव को सब कुछ बताती है। की अतीत में उसके साथ जो कुछ भी हुआ, और उसके बाद राघव का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच जाता है।

 "अगर मुझे पता होता कि तू इतनी बदचलन है, तो तुझसे कभी शादी ना करता। पता नहीं किसका पाप मेरे माथे मंडने जा रही थी। बहुत बड़ी गलती कर दी तुझसे शादी करके" राघव गुस्से से चिल्लाते हुए कहता है। अब या तो तू इस बच्चे को मरवा दे या फिर मुझे भूल जा। आखिर फैसला, अब यही होगा।।

सरोज बहुत रोती है। भला किसी एक को कैसे चुनती हो। कोख में पल रहा बच्चा भी उसका अंश था। और वो राघव से भी बहुत प्यार करती थी।

आखिर में फिर सरोज ये निर्णय लेती है कि वो इस बच्चे को नहीं रखेगी, जब अनिल को भुलाकर अपने नए जीवन की शुरुआत कर दी है तो इस बच्चे को भला रख के कैसे कर पाऊंगी और अगर राघव मुझसे दूर चले गए तो वैसे ही मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगी।। सरोज राघव से बात करती है औऱ उसे बताती है।

"कल ही ये बच्चा को अबो्र्ट करा दो" राघव अगले की दिन सरोज को हॉस्पिटल लेकर जाता है अबोर्शन के लिए। वो दोनों हॉस्पिटल पहुँचने ही वाले होते है तभी सरोज को कुछ ऐसा दिखता है, जिसे देख वो चौक जाती है।


वो वहाँ पर अनिल को देखती है। अनिल की अब शादी हो चुकी थी। और वह भी वही शहर में रहता था जहाँ सरोज है। इतने समय बाद इनका मिलना किसी संजोग से कम नहीं था। सरोज राघव से गाड़ी रोकने को कहती है।। "राघव, गाड़ी रोको आज सारी बातों का फैसला यही होगा"..सरोज कहती है।

 

गाड़ी रुकते ही जल्दी से भागते हुए अनिल की गाड़ी के पास जाती है।। अनिल अपनी बीवी के साथ था। सरोज को एकदम से देखकर अनिल भी चौक गया। सरोज को देख वो अपनी बीवी से बहाना बनाकर उसके पास जाता है। अनिल और सरोज काफी देर तक एक दूसरे को ऐसे ही देखते रहते है।

उन्हें समझ नहीं आता कि शुरू कहा से करे। सरोज को लगता था कि अनिल को अब अपनी गलती का एहसास हो गया होगा। मगर अनिल अभी भी वैसा ही था। "अनिल मेरी ज़िंदगी बर्बाद करके अपनी लाइफ में मज़े से रह रहो, अपनी बीवी को भी को बताओ ज़रा तुम किस तरह के इंसान हो और उसने कैसे इंसान से शादी की है। अनिल मैंने प्यार किया था तुमसे और तुमने मेरे साथ इतना गलत किया। आज तुम्हारी निशानी मेरे पेट में पल रही है। बताओ कैसे बताऊंगी मैं उसको उसका बाप कौन है?

 

मैं एबॉर्शन कराने जा रही हूँ अनिल, फिर हमेशा के लिए तुमसे और तुम्हारी परछाई से आज़ाद हो जाऊंगी। अनिल को शायद सरोज से ना सही मगर शायद बच्चे से हमदर्दी थी। वो कहता है रुको तुम ऐसा कैसे कर सकती हो। एक माँ हो के, अपने ही बच्चे के साथ छी।

पर एक बात याद रखना....इस बच्चे को तुम नहीं मारोगी, ये मेरा बच्चा है। अगर तुमने कुछ ऐसा किया तो अच्छा नहीं होगा।

और हाँ वो जिसे तुम मेरी बीवी बता रही हो। वो बस एक contract तक मेरे साथ। उसके बाद मेरे कुछ रिश्ता नहीं रहेगा उससे।

"भला उस बच्चे से आज इतनी हमदर्दी कैसे, पहले तो कभी ये ख्याल नहीं आया, क्यों छोड़ गए थे मुझे

जब मेरा जिस्म मिल गया तो मेरी कोई जगह नहीं रही"..सरोज दुख भरे में स्वर में बोलती है।

सरोज हैरत में थी, आखिर जिस अनिल को कभी मुझे लगाव नहीं हुआ उसे इस बच्चे से इतना मोह आखिर ये सब क्या है।

तभी राघव वहाँ आ जाता है और सरोज को ले जाता है।

"अभी भी तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई जगह नहीं है,

तभी इससे मिल रही हो" राघव सरोज से कहता है। और अनिल भी वापिस चला जाता है। ।

सरोज अपना विचार बदल लेती है। वो राघव से कहती है कि उसे ये बच्चा अबो्र्ट नहीं कराना चाहती राघव- पर क्यों अभी तक तो तुम तैयार थी। फिर एक दम से बदल कैसे गयी। और तुम जिससे मिल रही थी वो वही अनिल हैं ना जिसका पाप तुम ले के घूम रही हो।

तुम अनिल को कैसे जानते हो? क्योंकि अनिल मेरा दोस्त है। ये सुन के मानो सरोज के पैरों तले जमीन खिसक जाती है।

"जरूर तेरी ही कोई साज़िश रही होगी, मैं अनिल को सालो से जानता हूं। वो बहुत अच्छा है। तू जाने किसका पाप पर मेरे भोले दोस्त पर इल्ज़ाम लगा रही थी"..राघव सरोज को बोलता है। पर अब बहुत हुआ, और अब और नहीं। मैं अब तेरे साथ नहीं रह सकता है। तुझे अपने जिस आशिक़ के साथ रहना है शौक से रह। सरोज को राघव की बाते सुन के बहुत ठेस पहुँचती है। अगले ही दिन सरोज फिर घर छोड़ के चली जाती है। और राघव अनिल से मिलने उसके घर जाता है। अनिल को अपनी गलती का एहसास होता है,  उसे महसूस होता है की उसकी गलत जिद और हवस के कारण सरोज की पूरी ज़िंदगी खराब हो गयी। वो न तो शादी के बाद खुश रह पाई ना ही उससे पहले ये सब मेरी वजह से ही हुआ हैं। तभी राघव सोचता है कि उसने सरोज को कितना भला बुरा सुनाया और उसका अपमान किया, वो अनिल को बताता है कि अनिल मैंने सरोज के साथ बहुत गलत किया उसे घर से निकाल दिया, और अब वो कभी वापिस नहीं आएगी।

"लेकिन मैं उसे ढूंढ के रहूँगा" राघव कहता है। और उससे माफी मांगूँगा।

"नहीं राघव अब नहीं, अब सरोज मेरी है मेरी वजह से उसे ये सब झेलना पड़ा अब मैं उसे अपनाऊंगा उसका पहला प्यार मैं हूँ और उसे उसका पहला प्यार मिल के रहेगा। और अब उसके पेट में पल रहे बच्चे को भी मेरा ही नाम मिलेगा".....अनिल राघव से कहता है।

15 दिन बाद मेरा मैरिज कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो जाएगा। फिर मैं सरोज से शादी कर उसे अपनी बीवी का दर्ज़ा दूंगा। अनिल बहुत ढूंढता है हर जगह जाके सरोज की तलाश करता है। और उसे पता चलता है कि सरोज किसी अनाथालय में रह रही है। अनिल सरोज को वहाँ से ले आता है।

और वो दोनों पूरे रीति रिवाज के साथ शादी करते है। शादी कि पहली रात अनिल और सरोज एक दूसरे में खो गए, बीती बातें छोड़कर अपनी आने वाली ज़िन्दगी के सपने संजोने लगे। कुछ ही महीनों के बाद सरोज को बेटा पैदा हुआ। सरोज और अनिल बहुत खुश थे। वहीं राघव ने अनिल की कॉन्ट्रैक्ट वाइफ से शादी कर ली सरोज का उसका पहला प्यार मिल गया। अनिल को अपनी गलती का एहसास हुआ उसने सरोज को अपना लिया।

राघव को भी हमसफर मिल गया मगर सरोज की याद उसे आज भी सताती है। सरोज अनिल को पाकर अपने आप को बहुत खुशनसीब मानती है।

प्यार सच्चा होना चाहिए, फिर हमसफर चाहे कहीं हो। आखिर लौट ही आता है।

 


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