माँ की सतरंगी साड़ी
माँ की सतरंगी साड़ी
"अरि बन्नो ये क्या.. " माँ ने हँसते हुए कहा.
" मम्मी देखो मैं मम्मी बन गई " मैं माँ की सतरंगी साड़ी उल्टी सीधी पहन बहुत खुश थी.बहुत पसंद थी माँ को वो साड़ी और मुझे भी एक बार ही पहनी थी बस माँ ने.
" बेटा मम्मी बाद मे बनना पहले पढ़ लिख कर रानी बिटिया बन जा, फिर हम तेरी राजकुमार से शादी करेंगे." माँ ने मुझे गले लगाते हुए कहा.
" मम्मी जब मेरी शादी होगी तब मैं आपकी यही साड़ी पहनूँगी " मैं खुश होते हुए बोली.
" अरि लाडो तब तो तेरे लिए सुंदर सुंदर नई साडियां लेंगे "
" नही मैं यही साड़ी पहनूँगी वर्ना शादी नही करूँगी " मैने तुनक कर कहा.
"ठीक है ठीक है तू यही पहनना बस "
" मेरी प्यारी मम्मी " और मैं माँ के गले लग गई.
उस दिन जो माँ ने वो साड़ी संदूक मे रखी कभी नही पहनी.. वक़्त के साथ मेरी भी पसंद बदलती गई... और शादी मे जैसा माँ ने कहा मुझे ढेरों साडियां मिली.
" दीदी माँ चली गई हमे छोड़ के " अचानक भाई के फोन ने झकझोड़ दिया मुझे.पति और बच्चों को ले रोती बिलखती मायके पहुंची... और लिपट गई माँ से...
"ला लाडो माँ की कोई नई साड़ी ला उन्हे नहलाने का वक़्त हो गया " चाची ने रोते हुए कहा.
मैं माँ की साडियां टटोलने लगी.. तभी हाथ लगी वो सतरंगी साड़ी जो माँ ने बहुत अच्छे से रख रखी थी.. साड़ी को हाथ मे ले बिलख पड़ी मैं कितने चाव से लाई थी माँ इसे और मेरी खुशी के लिए कभी नही पहना इसे... आँसू रुकने का नाम नही ले रहे थे..
" दीदी जल्दी करो सब बोल रहे.. " छोटी बहन की आवाज़ से मुझे ध्यान आया मैं यहाँ क्यो आई थी..
" चल छोटी "
" अरे ये कबकी साड़ी निकाल लाई कोई नई साड़ी लाती.. " ताई बोली.
" नही ताई माँ यही साड़ी पहनेंगी " मैने रोते हुए कहा.
कितनी अच्छी लग रही थी माँ उस सतरंगी साड़ी मे सोलह श्रृंगार किये.. "एक बार उठ जाओ ना माँ एक बार अपनी लाडो को गले लगा लो " मैं खुद पर काबू ना पा सकी.
सबने मुझे माँ से अलग किया और ले गए माँ को दूर बहुत दूर...
आज भी जब भी कोई रंग बिरंगी साड़ी देखती हूँ तो माँ की साड़ी याद आ जाती है साथ ही याद आ जाती है माँ के उस आखिरी रूप की...।