माँ का हृदय
माँ का हृदय
सरला बेटे के पत्र को पढ़कर खुश हो रही थी कि अगले माह बेटा अपनी बिटिया की शादी के लिए उसे लेने आ रहा है ।पत्र पढ़कर सरला सब कुछ भूल गई कि दस साल से बेघर होकर भटक रही है। बेटे ने मकान बेचने के बाद एक पल को भी नहीं सोचा कि माँ अब उसके बिना कैसे रहेगी?
अगर मैं बेटियों की शरण नहीं लेती तो कहाँ जाती? पति मरने से पहले समझा गए थे कि देखो मेरे जाने के बाद मकान मत बेचना लेकिन बेटे बहू की खुशी के लिए उसने मकान भी बेच दिया अन्त में ।जब भी बेटे के यहाँ जाती थी तो बहू कुछ दिन तक तो ठीक रहती पर कुछ दिन के बाद फिर चिक -चिक करने लगती कभी मकान को लेकरऔर कभी बैंक बैलेंस के कारण ।जब तक उसके भाई वहाँ रहे तब तक बेटे की मकान बेचने की हिम्मत नहीं हुई और भाई के रिटायर होते ही वहाँ से चले जाने के बाद बेटे ने 2 महीने में मकान बेच दिया।
मकान बेचने के बाद भी बहू का वही कटु व्यवहार बैंक बैलेंस के कारण झगड़ना ।तंग आकर बेटे के घर से आ गई ।।बस तब से आज तक से बेटी के शहर में अलग मकान लेकर रह रही है । दस साल तक कोई खबर नहीं आज अचानक पत्र कैसे?
उसके मस्तिष्क में स्मृति की बिजली चमकी कि पोती के नाम की दो लाख की एफडी उसके पास है।ओह! उसकी आंखों में आँसू उमड़ आए पर पोती का कन्यादान तो करूंगी उसका क्या दोष ?