सिसक रहे आज होली के रंग
सिसक रहे आज होली के रंग


सिसक रहे आज होली के रंग।
महंगाई ने करदिया रंग बदरंग।
लाल रंग अब लहू बनके बह रहा
पीत वर्ण कायर बन छुपकर रोरहा
हरी-भरी वसुंधरा अब कहाँ रही ?
ऊंची-ऊंची इमारतें आस्माँ छू रही।
रह गया बस अब होली का हुड़दंग
महंगाई ने कर दिया रंग बदरंग।
बच्चों की पिचकारी औंधे मुंह पड़ी,
बिन पानी - रंग टंकी शुष्क सी पड़ी।
महंगाई - मार रंग फुहार फीकी पड़ी,
फागुनी बयार मन्द - शांत चल पड़ी।
बिन पानी कैसी होली पिउया के संग।
महंगाई ने कर दिया रंग - बदरंग
पावन पर्व अस्त - व्यस्त हो रहे,
पर्वों की गरिमा क्षत-विक्षत रो रहे।
वन- उपवन टेसू के फूल मुरझा रहे
खाद्य पदार्थ - भाव आस्माँ छू रहे।
मथुरा भी गाये बिन होली सूने अंग
महंगाई ने कर दिया रंग - बदरंग।