मामी चुराकर खाती है
मामी चुराकर खाती है
आज मॉम्स्प्रेस्सो ने रसोई के खट्टे मीठे अनुभव की याद दिलाकर मुझे फिर से उन दिनों की याद दिला दी, ज़ब मैं ब्याहकर नई नई ससुराल आई थी।ससुराल में भरा पूरा परिवार था। दो बड़ी ननदें, दोनों के दो दो बच्चे, जेठानी जी के एक प्यारी सी बिटिया। कुल मिलाकर घर में रमन चमन लगा ही रहता था। सबसे बढ़कर घर में सबसे छोटे होने की वजह से पतिदेव की हरकतें भी किसी बच्चे से कम नहीं थी।मेरी पहली रसोई में तो मैंने अपने मायके में कई बार प्रैक्टिस की हुई मखाने की खीर बनाई थी। जिसे सबने बहुत पसंद किया था और मुझे उसके नेग में सासुमाँ एक बेहद खूबसूरत गले का चंद्रहार दे चुकी थी।माँ ने शादी से पहले मुझे ससुराल की रसोई के लिए एक महत्वपूर्ण सीख दी थी। वह यह कि.....ससुराल में जो कुछ भी बनाओ, छोटा सा एक चम्मच टेस्ट कर लो। जो भी कमी बेसी होगी सब ठीक कर लोगी फिर सबको एक साथ परोसना। इससे सबको तुम्हारे हाथ का खाना भी पसंद आएगा और धीरे धीरे तू एक्सपर्ट भी हो जाएगी!"माँ की यह बात मैंने गांठ बाँध ली। और ससुराल में ज़ब भी कुछ बनाना होता मैं बनाने के बाद रसोई के किनारे जाकर थोड़ा सा थोड़ा सा चख लेती, नमक मिर्च जो कुछ भी कम होता उसमें डालकर सही कर देती थी।परिणाम स्वरुप मेरे बनाए खाने में किसीको कोई कमी नहीं मिलती और मेरे पाककला की बहुत प्रशंसा होती थी। एक बार बड़े ननदोई की फरमाइश हुई थी मखाने की खीर बनाने की, जो मैंने अपनी पहली रसोई पर बनाई थी।
मैं बड़े ही उत्साह के साथ बनाने लगी क्यूँकि सब बड़े दिल खोलकर मेरी तारीफ करते थे। इसी से मैंने मखाने की खीर बड़े ही शौक से बनाई। ज़ब खीर बनकर तैयार हो गई तो एक छोटी सी कटोरी और चम्मच में लेकर रसोई के कोने में जाकर चखने लगी कि तभी छोटा भांजा अंशु किसी काम से रसोई में आया। मुझे यूँ कोने में छुपके खाते हुए देखकर पहले तो सकपकाया फिर वहीँ से चिल्लाकर बोला,"नानी,देखो नई मामी तो किचन में चुराकर खाती है "उसकी बात सुनकर कुछ तो दौड़कर किचन तक आए और कुछ बाहर से ही जायजा लेने लगे।मेरा तो बुरा हाल था। एक हाथ में कटोरी तो दूसरे हाथ में चम्मच और होंठों पर दूध से रेखा बनी हुई।जो मुझे देखता, वही हँस पड़ता। मज़ाक़ में सबने कहा, अरे चुराकर खाने की क्या ज़रूरत थी। तुमने खुद ही बनाया है तो बाद में आराम से खा लेती। बाद में उन सबको मुझे अपना खाने से पहले टेस्ट करने का सीक्रेट बताना पड़ा पर फिर भी वो लोग मुझे चिढ़ाने से बाज़ नहीं आए। तबसे आजतक ज़ब कभी मखाने की खीर बनती है यह घटना ज़रूर याद आती है।