Saroj Verma

Romance

4.5  

Saroj Verma

Romance

लव फोरएवर....

लव फोरएवर....

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फेरों का समय हो गया, दुल्हन को बुलाइए,

पंडित जी बोले।

अभी लेकर आया, पंडित जी

स्वाभिमान बोला, और दुल्हन के कमरे की तरफ बढ़ गया, और दरवाजा नॉक किया।

अन्दर आ जाओ, कमरे से आवाज़ आई।

और जैसे ही स्वाभिमान ने ओजस्विनी को दुल्हन के रुप में देखा तो बोला, आज तो आधे से ज्यादा बराती घायल होने वाले हैं और, दूल्हे की तो खैर नहीं।

आज बहुत खूबसूरत लग रही है, लाल जोड़े में, मेरा वर्षों का अरमान पूरा हो गया। आपको ऐसे देखने का।

और तू भी तो हैंडसम लग रहा है, इस शेरवानी में, स्वाभिमान का कान खींचते हुए, ओजस्विनी बोली।

अच्छा चलिए फेरों के लिए पंडित जी बुला रहे हैं, स्वाभिमान बोला, और आपको तो मैं ही लेकर चलूंगा, मण्डप तक। दूल्हे के बाद मेरा जो हक है आप पर। स्वाभिमान ने ओजस्विनी को गोद में उठाया और ले गया, मण्डप तक। बहुत खुश था, आज वो, पिछले एक हफ्ते से वो और उसके दोस्त लगे हुए थे, शादी की तैयारी में।

कविश, स्वाभिमान के पास आया, और बोला।

आज आंटी कितनी खूबसूरत लग रही है, आंटी आज भी तेरी मां नहीं, बड़ी बहन लगती है।

थैंक्स यार, तू और ये सब नहीं होते तो ये सब अरेंजमेंट्स मैं अकेले कभी ना कर पाता, मैं, मां और पापा की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह को यादगार बनाना चाहता था। और हां, कविश, अंकल-आंटी नहीं आए।

हां, यार बताना भूल गया, पापा की जरूरी मीटिंग थी, और मां अकेले नहीं आना चाहती थी, वो सन्डे को साथ में आएंगे तेरे घर।

कविश और स्वाभिमान की दोस्ती अभी दो तीन महीने पहले ही हुई थी, कविश उस समय अपने परिवार के साथ शहर में नया-नया शिफ्ट हुआ था। एक दिन कविश का एक्सिडेंट हो गया, पैर में चोट आई, लेकिन कोई मदद करने वाला नहीं था, इतने में स्वाभिमान ने देखा और हॉस्पिटल ले गया, तबसे दोनों दोस्त हैं, वैसे कविश, स्वाभिमान से पांच साल छोटा है। और स्वाभिमान भी कविश को छोटे भाई जैसे ही मानता है।

शादी की सारी रस्में पूरी होने के बाद सब खाना खा रहे थे, तो ओजस्विनी की भाभी बोली, जीजी आप बिल्कुल भी चवालीस साल की नहीं दिखती, कोई भी नहीं कहेगा कि आपका तेईस साल का बेटा है। अब तो बहु लाने की तैयारी करो।

अरे स्वर्णा, उन्नीस साल में शादी हो गई और इक्कीस के होते सुभु हो गया। हां अब बहु भी आ जाएगी, अब सब लड़की ढूंढ के रखो, हम लोग तैयारी करते हैं, और सब हँस पड़े।

इतने में कविश भी आ गया, congrulation आंटी, आज आप बहुत beautiful लग रही है,

thanku बेटा, और तुम्हारे मां पापा नहीं आए, मैं तो अभी तक मिली भी नहीं उनसे। और सुना तुम लोग, अगले महीने Dubai shift हो रहे हो।

आंटी कुछ काम आ गया, इसलिए नहीं आ पाए। Sunday को आयेंगे, आपसे मिलने। हां, पापा चाहते हैं कि Dubai shift हो जाए।

अच्छा बेटा, ओजस्विनी बोली।

Sunday के दिन कविश अपने mummy-papa के साथ जा पहुंचा स्वाभिमान के घर। सबका परिचय हुआ, एक-दूसरे से।

स्वाभिमान ने देखा कि ओजस्विनी, कविश के पापा को अपनी बनाई हुई paintings दिखा रही हैं, और सबकी नजरें बचाकर कुछ बातें कर रही है, जैसे उन्हें पहले से जानती हो।

ओजस्विनी और कविश के पापा के बीच की बातें सुनने स्वाभिमान खिड़की के पीछे जाकर खड़ा हो गया। और उसने सुना।

तुम तो बिल्कुल नहीं बदली, इतने साल हो गये।

लेकिन तुम तो बदल गये, बाल सफेद हो गये और मूंछें भी रख ली।

इतनी ही बातें सुन पाया स्वाभिमान।

सबने बातें की, खासकर धानी ने, कविश की बारह साल की छोटी बहन, बहुत बातें करती है, दोनों बहन भाई लड़ते ही रहे, फिर सबने dinner किया और कविश, अपने परिवार के साथ वापस चला गया।

लेकिन स्वाभिमान उसे नींद नहीं आ रही थीं, तो वो ओजस्विनी के कमरे के पास गया और बोला, मां आपके पास बाम है, क्या?

अर ,ओजी सो गयी, क्या?

तुम्हारा लाडला आवाज दे रहा है, ओजस्विनी के पति सार्थक बोले।

हां आई,

दरवाजा खोला, और बोली, क्या बात है,

बाम चाहिए, सर दर्द हो रहा है।

रूक अभी लाती हूं, ले

लगा दूं क्या?

हां, आप लगा दोगी तो नींद आ जाएगी।

अच्छा चल,

स्वाभिमान लेट गया, और ओजस्वीनी सर में बाम लगाने लगी।

अच्छा सुभु सर दर्द हो रहा है, या फिर कोई और बात है। मैंने देख लिया था, तू जब खिड़की के पीछे खड़ा था।

तो बताओ क्या बात है, सुभु बोला।

कुछ नहीं, कुछ बातें कही नहीं जाती, उनको कहने के लिए शब्दों की ज़रूरत नहीं होती, जो सिर्फ मन और आंखों की भाषा जानती है, जो शायद इस दुनिया से परे होती है।

जिसमें संवेदनात्मक, भावात्मक, आवेगात्मक, और विवराणात्मक, कुछ भी नहीं होता, वो तो सच्चा और पवित्र प्रेम होता है जिसकी ना तो कोई परिभाषा थी, ना है और ना होगी, वो तो सिर्फ feel किया जा सकता है, जो हमेशा बना रहता है, जिसे love forever कहते हैं।

हां मैं कविश के पापा शाश्र्वत को जानती हूं, लेकिन उतना ही जितना कि तू और तेरे पापा,

बात उस समय की है, जब मैं बारहवीं की science की student थी। मुझे physics में tuition की जरूरत महसूस हुई, क्योंकि पापा भी science के Student नहीं थे, जो मेरी help कर पाते, वो एक government school में teacher थे, तो मैं physics का tuition जाने लगी, उस समय सारे school में हम सिर्फ दो लड़कियां ही थी, जो science से पढ़ाई कर रहे थे। मेरी सहेली तो ग्यारहवीं से tuition पढ़ रही थी। उसे अच्छा लगा कि अब वो अकेली नहीं रहेगी, अब दोनों साथ जाएंगे।

मैं tuition जाने लगी, वहां एक लड़का भी पढ़ता था, हमने कभी बात नहीं की इसी तरह साल बीत गया, exam का समय आने वाला था।

फिर एक दिन मैं सीढ़ियां चढ़ के ऊपर जाने लगी, तो उसने कहा, रुको और मेरे पास आकर जैसे ही कुछ कहने वाला था, मुझे डर के मारे कुछ नहीं सूझा और एक जोर का थप्पड़ उसके गाल पे रसीद दिया और वापस घर चली गई। उस दिन मैंने tuition नहीं पढ़ा।

मार तो दिया, लेकिन डर लग रहा था कि कहीं वो गुस्से में आकर मेरी बदनामी ना फैला दे, मेरी पढ़ाई ना न बन्द हो जाए, और वैसे भी दादी मेरी पढ़ाई के खिलाफ थी। रात भर सो ना सकी, आखिर सुन लेती कि क्या कहने वाला था, लेकिन कोई देख लेता तो क्या सोचता, हे! भगवान, वो कहीं, गुस्से में आकर मेरे बारे में किसी से कुछ उल्टा सीधा ना कह दे, यही सोचती रही, रात-भर।

tuition का समय भी change कर दिया मैंने, सहेली को भी बहुत बाद में बताया। वो बोली कोई बात नहीं डर मत कुछ नहीं होगा, और सच में उसने कुछ नहीं किया, और कभी मेरे सामने भी नहीं पड़ा, शायद सच्चा प्यार करता था, मेरे मन में भी उसके लिए थोड़ी हमदर्दी जाग गई, और उससे कभी माफ़ी मांगने का मौका भी नहीं मिला। और उस दिन के बाद आज मिली, उससे। पहली बार बात की।

हम औरतों को बहुत कुछ सोचना पड़ता है, सबके बारे में, मेरे मां-बाप, भाई-भाभियां इसलिए इज्जत करते हैं कि उन लोगों की मर्जी के खिलाफ हमने कोई काम नहीं किया, अपने पापा को देखो, तेरी बुआ को अब तक दिल से नहीं अपना पाए, बुआ ने अपनी पसंद की शादी जो की थी। ये पुरुष प्रधान देश है और हमेशा रहेगा।

अच्छा तो ये था आपका love forever स्वाभिमान बोला और पापा से।

वो मेरे जीवन साथी है, उनके साथ मेरा तन, मन और धन का रिश्ता है, तुम्हारे पापा से जितना प्यार मैंने किया है, वो बयां नहीं किया जा सकता, उनसे मेरा छुअन और दैहिक वाला प्यार है, लेकिन वो प्यार इन सब चीजों से परे था, जैसे बांसुरी से निकले स्वर की तरह, जो बांसुरी को फूंकने पे निकलते हैं, और मीठा सा राग सुनाकर गायब हो जाते हैं, जो कि अनछुए है, जिन्हें सिर्फ महसूस कर सकते हैं।

और आपकी सहेली, सुभु बोला।

कविश की मां, वो school समय से ही शाश्वत को पसंद करती थी।

चल सो जा, ओजी बोली।

sorry मां, मैं ने आपको गलत समझा।

कोई बात नहीं, लेकिन आज ये पता चल गया कि मां की दोस्त बेटियां ही नहीं, बेटे भी होते हैं, ओजी ने कहा।



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