लॉकडाउन में समय का सदुपयोग
लॉकडाउन में समय का सदुपयोग


मैं तो बोरियत जैसे शब्द को नहीं जानती हूँ । ईशकृपा स मेरे पास सकारात्मक सोच , विधायक भाव सर्जनात्मकता की ऊर्जा है। जिससे मैं परिवार , समाज देश हित में अपना योगदान देती हूँ ।
रचनाकार, लेखिका होने के कारण रचनाधर्मिता मेरा धर्म है । हर दिन कलम प्रेरणात्मक , सकारात्मक चिन्तन को गढ़ती है ।
स्टोरी मिरर , प्रतिलिपि , मातृ भारती , फेस बुक , ब्लाग , पत्र पत्रिकाओं में हर दिन रचनात्मक लेखन प्रकाशित होता है । यही खुशी मिलती है कि सकारात्मक दिशा में काम कर रही हूँ । मेरी रचना से प्रभावित हो के प्रकाशक किताब प्रकाशित कर रहे हैं । मेरे लिए गौरव की बात है ।
यहाँ से समय मिलता है । तो मेरा टेरस गार्डन है । पेड़-पौधों से मुलाकात संवाद रोज कर लेती हूँ । अपना दुख , सुख उनका दुख , सुख मालूम कर लेती हूँ ।
आप को लगेगा अनबोल सजीव स्थावर पेड़ पौधों को क्या दुख है ? जी वे भी दुखी हो जाते हैं । जब कोई कीट उनके अंग को चट कर खा जाता है ।कई दिन से देख रही थी । कढ़ी पत्ता की सुंगध से तितलियाँ की तरह मॉथ उड़ती हुई पौध पर आयी । मेरे देखते ही कुछ पत्तियाँ चट कर डाली । कुछ पर अपने अंडे भी प्रजनन कर दिए । हरी पत्तियाँ सफेद सी दानेदार हो गयी । कुछ दिनों में लार्वा बन गए । उन्हीं पत्तियों को खाने में जुट गए ।
संसार का यह एकमात्र प्राणी है जो अपनी सन्तान को तितली पैदा होते ही आत्मनिर्भर बना देती है । यह कढ़ी पत्ता की पत्ती खाकर इतनी तेजी से बढ़ते हैं । हरे रंग के 1 इंच लंबे आकृति के सूंड जैसे जीव बन जाते हैं । तितली जरा भी इन पर अपनी ममता न्योछावर नहीं करती है ।
बगीचे से मैं पर्यावरणीय समस्या में रामसेतु वाली गिलहरी जितना योगदान दे देती हूँ । मैं तो प्रकृति के लिये थोड़ा ही काम करती हूँ । बदले में पौधे मुझे दुगना फल देते हैं हरियाली ,
ऑक्सीजन के साथ फूल , फल सौंदर्य भी देते हैं जो मेरे मन को सत्यं शिवं सुंदरं लगता है । आंखों को यह दृश्य अप्रतिम मनोहारी लग के शीतलता देता है ।
अब तो मिर्ची की पौध पर छरहरी , सिकिया हरी मिर्च से लबालब भरी है । देखने में गमला फलदार प्रकृति की सुंदरता का बखान करता है । कली से लेकर फूल फिर फल बनने की प्रक्रिया भी तो वीडियो में कैद होती है । अरबी , हल्दी ,पालक पोदीना , फूलों का क्या ही कहना ।
मेडिन्सनल यानी औषधिय पौधे तुलसी , कढ़ी पत्ता , गिलोय , ग्वारपाठा , पत्थर चट्टा आदि तो शारीरिक मानसिक सेहत तो देते हैं ।कितने सूक्ष्म संग प्रत्यक्ष दिखने वाले , प्राणियों जीव जंतुओं का बसेरा है । ये जीव प्रकृति , ऋतुचक्र में इकोलॉजी में संतुलन करने में सहायक है ।
कुछ महीने पहले सोसाइटी ने गमले ग्राउंड पर रखवा दिये थे। मुझे ऐसा लगा मेरी संतान मुझसे दूर हो गयी । नीचे मैं देखभाल नहीं कर पाती थी । क्योंकि मेरा टेरस फ्लेट है। मुझे दुख हुआ कि मेरे हरे भरे गमलों पर पलने वाले जीवजन्तु , कीट पंतगे जिन्हें उनसे जीवन मिलता है । वे सब गायब हो गए। वे पार्थिव हो गए । जिन पर चूं चूं करती चिड़ियाँ की चहचहाट , कोयल की कूक , गिलहरी के स्वर गूँजते थे । कबूतर कौआ चिड़िया को वहाँ से भोजन मिलता था । ये निराले , प्यारे पक्षियों का आना ही बंद हो गया ।
बचपन में मेरी बेटियों की यही पर्यावरण की पाठशाला थी । इन्हीं गमलों में मूंग उड़द लोबिया ,मटर खरबूजा तरबूजा , ककड़ी , लोकी , कद्दू आदि उगा कर रंगों फूलों पत्तियों का , रंगों , फल आदि का ज्ञान दिया था।यही उन दोनों बेटियों का प्ले स्कूल था ।कक्षा नर्सरी उनकी यही थी । नर्सरी कक्षा की इंटरनेशल स्कूलों में
लाखों की फ़ीस वाले स्कूल में मैंने एडमिशन नहीं कराया । मध्यम वर्ग के पास कहाँ इतना रुपया होता है ? सास - ससुर , भाई , बहनों से भरे संयुक्त परिवार में माता - पिता अपनी संतान पर खर्च कर सके ।
यही से इस बगीचे से ही मैंने व्यावहारिक प्राकृतिक ज्ञान को आत्मसात कराया । रचनात्मक के किस्से अनन्त हैं । आज दोनों संकरित बेटियाँ डाक्टर बन मानव सेवा धर्म निभा रही हैं । कोरोना की महामारी में भगवान बन जीवनदान दे रही हैं ।
कई बार अखबारवालों दूरदर्शन चैनल ने मेरे गार्डन का इंटरव्यू भी लिया है । इन फूलों , फलों पर कविता मुक्तक भी लिख दिए । लोग प्रेरित हो । निसर्ग के करीब आएं । अपनी उम्र बढ़ाएं ।
हाँ वे गमले जो सोसाइटी ने नीचे रखे थे । उनमें से मुझे जो अति प्रिय पौधे थे । उन्हें फिर टेरस पर वॉचमेन से रखवाए । फिर से जीव जंतुओं , पक्षियों की चहचाहट आने लगी । फिर मुझ में गमलों को देख के उत्साह उमंग भर गया । सब पौधे अपना वंश भी बढ़ाते हैं । ऐसे में मैं उन पौध को छोटे -छोटे गमलों में तैयार करके अपने मित्रों रिश्तेदारों को उपहार में दे देती हूँ ।जो उनके ड्राइंग रूम की बालकॉनी की शोभा बढ़ाते हैं ।उन्हें भी पौध लगाने को प्रेरित करती हूँ ।
जैव विविधता के ये मित्र अगली नयी पीढ़ी को वृक्ष उगाने के लिए संवाहक का काम करते हैं । हमारे पुरखो ने फल लगाए । उनके फल हम खा रहे । फिर हम भी वृक्षारोपण करें नयी नस्ल के वास्ते । वैदिक संस्कृति को हमारे बच्चे जाने । पेड़पौधों की पूजा करें । देवठान एकादशी को तुलसी विवाह धूमधाम से होता है ।
भारतीय संस्कृति में तुलसी चौरे पर शाम को दीया जला के पूजते हैं । मैं भी इस नियम का पालन करती हूँ। चिड़ियाँ घर भी बनाया है । गौरया प्रजाति बची रहे । उनके बच्चे होने पर चिड़िया को हरीरा भी देती हूँ। हरीरा गोंद का प्रसाद बांटती हूँ ।मैंने भी तो बचपन में अपनी माँ के शौक को किचन गार्डन में सब्जी , फूल उगाते देखा था । उनके साथ इस काम का शौक भी पाला था । जैविक खेती के फलों का उत्पाद का स्वाद तो पौष्टिक तत्व , अमृत की तरह पौषक है ।
इनसे वक्त मिला तो दूरदर्शन पर महाभारत , रामायण को देख के उनसे प्रेरणा मिल जाती है ।
अंत में समय मिला तो साहित्य की किताबें , अखबार तो पढ़ना जरूरी है । तभी लिख सकेंगे । लॉकडाउन में यही समय का सदुपयोग है । अब बोरियत का समय ही नहीं बचा है ।
लाकडाउन में नोकरानी की छुट्टी होने से घर का काम से व्यायाम तो होता ही है । फिर भी सुबह उठकर छत पर 1, 2 घण्टा योग , वाकिंग तो करती हूँ ।मैं फिट तो परिवार फिट , समाज। , देश हिट रहेगा ।