लम्हें जिन्दगी के (कशमकश)कहानी
लम्हें जिन्दगी के (कशमकश)कहानी
"न इस पार था,
न उस पार था,
कशमकश से भरा मेरा संसार था,
एक राह मुझे अपनी ओर खींचती रही,
दूजी मुझे उस ओर जाने से रोकती रही,
करूँ ना करूँ, जाऊं ना जाऊं में उलझा रहा,
फिर कुछ पल रुका,
दिल को पक्का किया,
कदमों को खुले आसमां में ला के छोड़ा,
फिर हाथों को जोड़ा,
और हौले से उससे कहा (God)
मेरे पल-पल के साक्षी तुम ही हो,
ज्यों ही आंखों को खोला तो देखा,
ये क्या!
सामने खड़ा एक नया ही सवेरा था।।
राजी गहरी कशमकश में था, एक ओर माता-पिता जिन्होंने उसे जीवन दिया, पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया, इस काबिल बनाया कि आज वो इस विदेशी सर जमीं पर एक काबिल डाक्टर के रुप में न केवल स्वयं का बल्कि अपने देश का नाम भी रोशन कर रहा था। और दूसरी ओर फ्रीडा जिसने उसे इस अनजान देश में अपनों सा प्यार दिया। फ्रीडा ने तो बहुत ही सहज भाव से राजी से अपने प्यार का इजहार कर, हमेशा के लिए इसी देश में बसने का प्रस्ताव रख दिया। अब राजी क्या करे, वो भी तो फ्रीडा से बेइंतहा प्यार करता था, तो क्या राजी हां कर दे, फिर उन मां-बाप का क्या ? जो बेसब्री से पल-पल उसके लौटने का इंतजार कर रहे थे। वो जानता है कि अगर वो मम्मी-पापा से कहे कि वो सदा के लिए यहीं विदेश में ही रहना चाहता है तो मम्मी-पापा उसकी खुशी को नकारेंगे तो नहीं, पर क्या वो उसे दिल से इजाजत दे पाएंगे। और अगर ना करता है तो क्या फ्रीडा उसे स्वार्थी नहीं समझेगी, वो भी तो फ्रीडा को दिल की गहराइयों से चाहता है। बस ये सोचते-सोचते पांच दिन की छुट्टियां कब बीत गई पता ही न चला।
आज राजी दिन-भर फ्रीडा से सामना करने से बचता रहा। राजी राजी रुको, कहां भागे जा रहे हो, और क्या तय किया तुमने, कुछ बताओगे भी। राजी कुछ न बोल सका, केवल अपना इस्तीफा फ्रीडा की ओर बढ़ा दिया और तुरंत वहां से निकल लिया।
दो दिन बाद फ्रीडा के मोबाइल पर राजी ने काल की और कहा, फ्रीडा मैं airport पर हूं, जा रहा हूं हमेशा के लिए, तुमसे मिलने की हिम्मत नहीं जुटा पाया, हो सके तो मुझे माफ कर देना, और अपने जीवन में आगे ही आगे बढ़ती जाना।
अब राजी अपने देश लौट आया, वो खुश था अपने माता-पिता के पास लौट कर, अपने देश को एक होनहार डाक्टर देकर। सब कुछ था अब राजी के पास, नहीं था तो बस सुकून कि उसने एक प्यार भरा दिल तोड़ा है जिसकी धड़कन में उसका अपना दिल भी धड़कता था।
राजी एक बार देख तो ले, हां तो कर दी है, एक बार उससे मिल लें तो मैं शादी की बात आगे बढ़ाऊँ, मां आपसे कह तो दिया जो आपकी और पापा की पसंद वही मेरे लिए उचित।
पूरा घर सज रहा है, हर कोई अपनी तैयारी में बिजी है।
पंडित जी अपने तय समय पर हाजिर! मंडप में राजी दूल्हे के वेश में तैयार विराजमान है।
तभी मां राजी के पास आकर कहती हैं कि राजी दुल्हन तो तैयार होकर आ चुकी है पर, उसकी एक शर्त है कि फेरे से पहले दुल्हा एक बार उसको देख ले, ताकि बाद में उम्र भर तुम्हें या हमें कोई कशिश बाकी ना रहे या उसे कोई उलाहना न दे। एक बार देख तो ले बेटा! अपने और उसके लिए ना सही हमारे लिए ही सही।
ठीक है मां आपके और पापा के लिए, लेकिन मैं वरमाला के पहले उसे देख कर माला डाल दूंगा।
तभी पंडित जी के चिल्लाने की आवाज़ आई, समय निकला जा रहा है जल्दी कीजिए।
दूल्हा-दुलहन आमने-सामने। राजी ने जैसे ही घूंघट हटाया एक दम अवाक! हलक में आवाज़ ही नहीं। हां-हां राजी ये फ्रीडा ही है हमारी होने वाली बहू। हमारी पसंद और शायद तुम्हारी भी।
फिर से पंडित जी के चिल्लाने की आवाज़ आई समय निकला जा रहा है जल्दी कीजिए।
राजी अपने कान खींच कर मम्मी-पापा व फ्रीडा से माफी मांग रहा है कि माफ कर दीजिए , अपनी कशमकश में मैं ऐसा डूबा कि समझ ही न पाया कि रिश्ते एक दूजे के प्रेम व भावनाओं का सम्मान करने के लिए ही तो बने हैं।
अब वरमाला सम्पन्न हुई और नयी सोच ने कशमकश को भी नयी राह दी।।
इति श्री।

