जन्मों का रिश्ता
जन्मों का रिश्ता
मदमस्त आलम, गुलाबी मौसम, पूरे बाग में रंगीन छटा लिए हुए अनेकों रंग-बिरंगे फूल अपने पूरे यौवन से लबालब चारों ओर सुगंधी ही सुगंधी बिखेर रहे थे, नीली, पीली, हरी, बैंगनी, काली, सफ़ेद, गुलाबी, विविध रंगों से परिपूर्ण तितलियां स्वायत: ही फूलों की ओर खिंची चली आ रही थीं, और इस कदर डूब कर (फूलों का) रस-पान कर रहीं थीं, मानों संसार में इस पल से अद्भुत कोई पल हो ही नहीं सकता।
और हां ये सच ही तो है कि तितली को फूलों से, फूलों को तितलियों से कौन जुदा कर सकता है। कई नादान, नादानियों वश कोशिश करते हैं इन्हें जुदा करने की पर वो क्या जानें, ये रिश्ता है जन्मों का, कैसे करोगे फूल-तितली को जुदा।क्षण-भंगुरता में भी बना जाते हैं, फूल-तितली एक-दूजे से जन्मों-जनमों का रिश्ता।।