ट्रेन में मुक्कमल इश्क।
ट्रेन में मुक्कमल इश्क।
प्लेटफार्म पर बैठी रश्मि ट्रेन के आने का इंतजार कर रही थी, रोज तो सुबह 7:30 बजे नियत समय से आ जाती थी, आज 8:00 बजने लगे थे, अभी तक अनाउंसमेंट भी नहीं हुआ था, तभी अचानक बिना अनाउंसमेंट ही एक ट्रेन सायरन देती चली आ रही थी, रश्मि अलर्ट हो गई, और उठ कर तुरंत खड़ी हो गई, ज्यों ही ट्रेन रुकी, रश्मि उसमें चढ़ ही रही थी, कि अचानक उसे एक जोर का धक्का लगा, पीछे मुड़कर देखा तो,
एक हाथ से मोबाइल कान पर लगाए हुए, और दूसरे हाथ में, ऑफिस बैग थामें वो बंदा जल्दी-जल्दी चढ़ने की कोशिश कर रहा था जिसकी वजह से रश्मि को धक्का लग गया, और वह तुरंत चढ़ गया, और ट्रेन भी तुरंत चल दी।
धक्का लगने से खुद को गिरने से बचाती हुई रश्मि उसी को देख रही थी, रश्मि को अपनी ओर देखते हुए, वह एकदम सकपका सा गया और सॉरी सॉरी बोलने लगा।
रश्मि ने उसे इट्स ओके बोला, और खाली सीट देखकर उस पर बैठ गई और अपने बैग से बुक निकालकर पढ़ने लग गई, फोन पर अपना वार्तालाप खत्म करके वह बंदा भी, रश्मि के सामने वाली सीट पर ही बैठ गया। ट्रेन अब अपनी पूरी रफ्तार से चल रही थी,
वह बंदा भी अपने इयरफोंन्स कानों पर लगा कर के कुछ सुनने लग गया। तभी चायवाला वहां से गुजरा और उनकी तरफ देखते हुए पूछने लगा चाय चाय। वह बंदा चाय वाले से बोला एक कप दे दो, फिर तुरंत उन मोहतरमा की तरफ देखते हुए उनसे पूछने लगा आप लेंगी।
पर रश्मि ने ना में सिर हिला दिया और अपनी पुस्तक पढ़ने में फिर से बिजी हो गई, उस बंदे ने चाय ली, चाय पी और फिर, सुनने में मस्त हो गया। इतने में ही आधा घंटा तो बीत ही गया और बाकी बचा था आधा घंटा, आधे घंटे में ट्रेन अपने डेस्टिनेशन प्लेटफार्म पर पहुंचने ही वाली थी।
ट्रेन तीव्र गति से चल रही थी और खिड़की से हवा अंदर आ रही थी, सभी यात्री अपना अपना सामान पैक करने में लगे हुए थे क्योंकि स्टेशन आने ही वाला था। ट्रेन जैसे ही प्लेटफार्म से लगी, अपना अपना सामान लेकर लोग निकलने लग गए, रश्मि और वह बंदा भी तुरंत निकल पड़े क्योंकि उनके पास तो कुछ सामान था ही नहीं।
प्लेटफार्म पर फौरन निकल कर, सभी यात्रीगण व रश्मि और वह बंदा भी अपने अपने कार्यस्थल को निकल पड़े।
रश्मि=: एक अध्यापिका है, जो भोपाल के एक स्कूल में पढ़ाती है, वैसे तो वह भोपाल की रहने वाली है पर बुधनी में उसकी नानी रहती है जहां उसका आना-जाना अक्सर लगा ही रहता है।
वो बंदा=: वह बंदा रहता तो बुधनी में ही है, पर भोपाल में एक कंपनी में कार्यरत है, और प्रतिदिन, बुधनी से भोपाल अप डाउन करता रहता है।
दूसरे दिन ट्रेन अपने समय पर ही आई, रश्मि आराम से ट्रेन में चढ़कर खाली सीट पर आराम से बैठ गई, 5 मिनट बाद ही वही बंदा भी उसी कंपार्टमेंट में पहुंचा जिसमें रश्मि चढ़ी थी। रश्मि को देखते ही उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर गई, रश्मि ने भी हल्की मुस्कान दे दी। फिर वह बंदा रश्मि के पास ही आकर बैठ गया, और पूछने लगा रश्मि से, क्या आप रोज अप डाउन करती हैं।
रश्मि ने बताया कि नहीं मैं तो भोपाल में ही हूं, पर बुधनी में मेरी नानी रहती है और जब कभी मैं नानी के यहां होती हूं, तो वापसी इसी ट्रेन से ही करती हूं।
वो बंदा ओके, वैसे मैं तो बुधनी में ही रहता हूं पर मेरी पढ़ाई और अब मेरी जॉब दोनों ही भोपाल से ही है, और मैं रोज ही अप डाउन करता हूं, वैसे अप डाउन में समय तो बहुत ज्यादा निकल जाता है, पर बुधनी में अपना घर आई-बाबा भी हैं, और अब आई बाबा को अकेले भी नहीं छोड़ सकते। तभी ट्रेन प्लेटफार्म पर लगती है और दोनों चल पड़ते हैं अपने-अपने गंतव्य पर।
सैटरडे-संडे, वीकेंड होने के कारण,, दो दिन दोनों में से कोई भी ट्रेन में नहीं पहुंचा ।
पर 2 दिन बाद मंडे को पुनः दोनों की ट्रेन में मुलाकात हुई।
आज दोनों एक दूसरे को थोड़े से फॉर्मल से फील हुए
फिर उसी बंदे ने बात की शुरुआत करते हुए पूछा कि क्या नाम लगाते हो आप, रश्मि ने बताया मैं रश्मि ग्रेवाल।
फिर वह बंदा बोला मैं, शुभम गुप्ता, मैकेनिकल इंजीनियर, A.C.T में कार्यरत हूं। पढ़ाई तो भोपाल में p.g रहकर पूरी करी, तब आई बाबा के साथ मेरी बहन पूजा थी अब पूजा की शादी हो गई हैं और वह अपने घर चली गई। आई-बाबा को अकेला नहीं छोड़ सकता इसलिए मैं रोज के रोज अप डाउन करता हूं। और आप,
इस तरह दोनों के बीच, आपसी जानकारी वह बातें चलती रहीं। तभी चाय वाला वेंडर चाय गरम चाय बोलता हुआ आया, शुभम ने अपने लिए चाय ली और रश्मि से भी पूछा कि आप लेंगी, रश्मि ने भी, वेंडर से कहा एक मुझे भी दे दीजिए, फिर रश्मि चाय वाले को पैसे निकाल कर देने लगी तो, चाय वाला बोला पैसे तो साहब ने दे दिए, रश्मि बोली अरे अरे, आपने पैसे क्यों दिए, और वह पैसे शुभम को देने लगी, तो शुभम बोला, अरे कोई बात नहीं अगर फिर मिले तो कभी आप पिला दीजिएगा। फिर दोनों मुस्कुराए, जल्द ही स्टेशन आ गया, दोनों चल पड़े अपने अपने कार्यस्थल पर।
अगली रोज पुनः दोनों का ट्रेन में मिलना हुआ, आज शुभम पहले ही ट्रेन में चढ़ चुका था और एक सीट पर बैठ चुका था, और उसने कुछ जगह घेर ही ली थी, तभी रश्मि के आने पर उसने वह जगह रश्मि को दे दी, आज रश्मि ने दो चाय लीं और एक शुभम को देने लगी, शुभम बोला अरे आप भी हिसाब पूरा करके ही रहेंगी, हंसते हुए रश्मि ने कहा, नहीं अब एक-दो हफ्ते तक तो बुधनी नहीं ही आना होगा।
स्कूल में बच्चों के फाइनल एग्जाम शुरू होने वाले हैं जिसके लिए एग्जाम-पेपर तैयार करने हैं। चार-पांच दिन बहुत बिजी रहेगा, और अब एक-दो हफ्ते तक तो नहीं ही आ पाऊंगी
शुभम ने कहा अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो आपका फोन नंबर ले सकता हूं क्या, रश्मि ने एक पल थोडा सोचा और फिर अपना नंबर शुभम को दे दिया।
एक हफ्ते बाद रश्मि ने शुभम के फोन पर कॉल करी, कॉल रिसीव होने पर रश्मि बोली कि शुभम जी बोल रहे हैं, उधर से हां आने पर रश्मि ने बोला मैं रश्मि तो शुभम जी बोले जी बिल्कुल पहचान लिया मैंने आपको, और आप कैसी हैं और आपकी मम्मी व नानी जी कैसे हैं, और बुधनी कब आ रही हैं, आज आपने मुझे कैसे याद किया कुछ काम हो तो जरूर बताएं,
रश्मि बोली जी बिल्कुल, मैं ठीक हूं, मां व नानी दोनों बुधनी में ही हैं।
आप कैसे हैं? शुभम जी।
शुभम=: जी बढ़िया मैं भी ठीक हूं। अभी स्टेशन पर पहुंच चुका हूं और प्लेटफार्म पर ही जा रहा हूं ट्रेन भी आती ही होगी 10-15 मिनट में ही।
रश्मि=: शुभम जी आपसे कुछ कहना था, मेरा एक अर्जेंट काम है क्या आप कर पाएंगे,
शुभम=: अरे रश्मि जी, बिल्कुल बिल्कुल, कोई टेंशन है, बताइए प्लीज, आप इतनी घबराई क्यों लग रही है?
रश्मि=: शुभम जी अभी थोड़ी देर पहले ही नानी का फोन आया था,बता रही थी कि मां की तबीयत ठीक नहीं है उन्हें बार-बार चक्कर आए आ रहे हैं, जरूर मां का, बीपी लेवल बढ़ गया होगा, मुझसे पूछ रही थी कि मैं कब आ रही हूं। कह रही थीं आज ही चली आ, पर मेरे लिए आज निकलना मुमकिन नहीं है मुझे कल फाइनल एग्जाम्स- पेपर स्कूल में सबमिट करनी है उसके बाद ही मैं यहां से निकलने की कोशिश करूंगी, मां ने जरूर बीपी की दवाई लेने में कोताही कर ली होंगी।
अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो क्या आप घर जाकर के मां को देख सकते हैं कि वह कैसी है, और उन्हें किसी डॉक्टर को दिखाकर दवाई-वगैरह दिला सकते हैं क्या?
मुझे बहुत टेंशन हो रही है मां और नानी की।
शुभम=: अरे रश्मि जी आप घबराइए नहीं और बिल्कुल भी टेंशन मत लीजिए, मैं बुधनी पहुंच कर स्टेशन से सीधे आपके घर ही चला जाऊंगा, और किसी डॉक्टर को दिखा कर दवाई दिलवा दूंगा।।
रश्मि=:नहीं शुभम जी किसी डॉक्टर को नहीं केबल डॉक्टर कैलाश को, मां का ट्रीटमेंट उन्हीं से ही चलता है।
शुभम=: अरे आप डा. कैलाश सूद की बात कर रही हैं क्या, मैं भी उनके लिए ही कह रहा था।
रश्मि=: जी शुभम जी, डॉ कैलाश सूद के लिए ही कह रहे हैं, आप जानते हैं,
शुभम=: जी रश्मि जी बिल्कुल, मेरे आई-बाबा दोनों का ट्रीटमेंट भी उनसे ही चलता है उन दोनों को बी.पी. की समस्या रहती ही है। आप अपनी मम्मी को फोन करके बता दीजिए और उनका नंबर भी मुझे सेंड कर दीजिए मैं पहुंच कर बात करता हूं, और घर का पता भी भेज दीजिए।।
रश्मि शुभम को घर का एड्रेस व मां का नंबर सेंड कर देती है,
और इधर मां को भी फोन कर देती है और बता देती है कि मां,शुभम से बात हो गई है वह आएंगे आपके पास और आप ना-नुकर मत करना और चली जाना उनके साथ और दिखा लाना, मैं कल शाम को यहां से निकलने की कोशिश करती हूं और रात तक पहुंचती हूं वहां।
मां रश्मि से तू जानती है उसे अच्छे से, वही है ना जो तुझे ट्रेन में मिला था,पर क्या यह सही रहेगा।
अरे मां कोई बात नहीं आप चले जाना वह बंदा अच्छा ही है।
मां का फोन आता है रश्मि के फोन पर, मां बताती है कि बेटा दिखा दिया और दवाई भी दे दी है डॉक्टर ने, ठीक है मां आप अपना ध्यान रखना, और दवाई ले लेना टाइम से और मैं कल शाम को यहां से निकलती हूं। अभी शुभम जी को भी फोन करके थैंक यू बोल दूं।
हां बेटा ठीक है अपना ध्यान रखना। अरे मां आप मेरी चिंता मत करिए आप ठीक रहेंगी तो बस फिर सब ठीक ही होगा।
रश्मि शुभम को फोन करती है, उसे थैंक यू बोलती है, और कहती है कि कल शाम वह बुधनी के लिए निकलेगी, तो शुभम कहता है कि मैं भी ऑफिस से कल निकलूंगा तो आपको फोन कर दूंगा फिर स्टेशन पर मिलते हैं।
अगले दिन दोनों स्टेशन पर मिलते हैं, और साथ में ही बुधनी का सफर करते हैं, रश्मि शुभम को बहुत-बहुत धन्यवाद बोलती है और कहती है कि आपने बहुत अच्छा किया कि मां को दिखा लाए डॉक्टर पर,मां को आदत ही है सोचने की सोचती ही रहती है, और इसी सोच-सोच में उनका बी-पी बढ जाता है,
शुभम: जी सही कह रही हैं आप, मेरे आई बाबा को भी यही दिक्कत है, मैं उन्हें अकेला छोड़ नहीं पाता,और वो मेरे पीछे पड़े रहते हैं, कि मैं शादी कर लूं,
अब आप ही बताएं मां-बाप को संभालूं , जाॅब संभालू या शादी कर लूं तो टेंशन बढ़ेगी की घटेगी।
रश्मि हंसते हुए अरे तो कर लीजिए ना, सही तो बोल रहे हैं अंकल आंटी, उनकी देखभाल को भी कोई आ जाएंगी
तो आपकी टेंशन भी कम ही हो जाएगी।
शुभम: अरे रश्मि आप भी कुछ भी। ट्रेन बुधनी पर रूकती है, दोनों उतरते हैं और अपने अपने घर को चल देते हैं।
रश्मि घर पहुंच कर, मां से मिलती है, और उन्हें देखते ही अब कैसी हैं आप? मां के गले लगकर उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं, और कहती है मां क्यों लेती हो इतनी टेंशन, मां बेटा बस एक तेरी ही टेंशन है, तेरी शादी अच्छे से हो जाए तो फिर तो मेरी सारी टेंशन खत्म हो जाएगी,
मां मतलब मैं टेंशन हूं आपकी,
तभी नानी आ जाती हैं और बोलती हैं, हो गया तुम दोनों मां बेटी का, और मुझ बुड्ढी का क्या????? बोलो!
रश्मि और उसकी मां दोनों, मां नानी आप तो हमारी जान हैं, आप के सहारे से तो हम दोनों हैं।
नानी अपने पोपले बिन दाँतों वाले मुंह से, हंसती हुई,
तुम दोनों मां बेटी भी ना मस्का लगाने में अव्वल हो, रश्मि और उसकी मम्मी दोनों, अरे तो हैं तो दोनों आपके ऊपर ही ना।
फिर तीनों ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे को गले लगा लिया।।
सैटरडे संडे दोनों दिन रश्मि मां और नानी के साथ रही खूब मस्ती करी मिलकर और खूब प्यार भी लुटाया एक दूजे पर। रश्मि मां से, मां, मैं सुबह जल्दी ही निकलूंगी स्कूल टाइम से पहुंचना होगा मुझे।
रश्मि क्या छुट्टी नहीं ले सकती 2 दिन छुट्टी ले ले बेटा,
2 दिन बाद चली जाना, और वैसे भी एग्जाम शुरू होने में तो अभी पूरा हफ्ता बाकी है ना, एक बार एग्जाम शुरु हो गए तो तू 15-20 दिन के लिए छूटी।।
नहीं मां स्कूल तो जाना ही होगा और मैं बीच-बीच में आती रहूंगी ना एग्जाम्स के बीच में छुट्टी भी तो रहेंगी ना।
अच्छा रश्मि एक बात पूछनी थी,
रश्मि: हां मां आप पूछिए।
मां: यह शुभम को कब से जानती है बेटा, काफी सुलझा और समझदार बंदा लगा मुझे तो।
रश्मि: अच्छा मां आपको पता भी चल गया,
मां: हां बेटा सोच रही हूं फोन से बात करके देखती हूं शुभम से,
रश्मि: क्या-क्या मां , क्या बात कररोगी,,तुम फिर से शुरु हो गईं।
नानी रश्मि से: हां तो बेटा करने दे ना इसको जानकारी सारी, बात आगे बढ़ाने से ही तो बढ़ेगी ना।
रश्मि नानी से: तुम दोनों बुढ़िया भी ना सच्ची में,।
सुबह जल्दी उठकर रश्मि ने अपना नाश्ता बनाया,मम्मा व नानी के लिए भी कैसरोल्स में डाल के रख दिया, फिर जल्दी से तैयार होकर निकलने लगी, मां से कहती है मां ध्यान रखिएगा अपना, दवाई टाइम से लीजिएगा, और अबकी आप कोई भी लागरजी नहीं करेंगी। अच्छा नानी आप भी अपना ध्यान रखिएगा मैं चलती हूं फिर फोन पर बात करती हूं आपसे,और अगर मां फिर से सोचने लगे तो आप मुझे फोन कर दीजिएगा।
ओके टाटा लव यू माय बोथ बुढ्ढीज।
जल्दी से आटो लेकर स्टेशन पहुंचती है, और ट्रेन में चढ़ जाती है, शुभम पहले से ही उसी कंपार्टमेंट में बैठा ही हुआ था,
दोनों हाय हेलो करते हैं, शुभम पूछता है कैसी हैं अब आंटी जी,
रश्मि:: हां अब तो ठीक थी, मां को भी बस टेंशन होती रहती है, और अपनी तबीयत गड़बड़ कर लेती हैं, बेकार आपको भी परेशान किया शुभम जी, आपको कोई तकलीफ तो नहीं हुई ना शुभम जी।
शुभम:: अरे रश्मि जी आप भी ना तकल्लुफ रहने दें, हम तो आपको दोस्त मानने लगे, और आप अजनबियों सी बात कर रही हैं।
रश्मि:: नहीं शुभम जी ऐसी बात नहीं है, अगर मैं आपको दोस्त ना मानती तो क्यों मैं आपको फोन करती, पर मां को टेंशन लेने की आदत सी हो गई है, बस कहती है कि अब मां और पापा दोनों में ही तो हूं तेरा, और मैं नहीं सोचूंगी तो कौन सोचेगा तेरे लिए।।
शुभम:: हां बात तो ठीक ही है, पर आपके पापा, नहीं नहीं कोई बात नहीं, जब आपको उचित लगे बताइएगा।।
ट्रेन प्लेटफार्म से लग गई, दोनों उतरे और बाहर निकलने लगे,
रश्मि:: शुभम जी किसी दिन आइए घर पर, फिर बैठकर करते हैं बात।
शुभम:: जी ओके, किसी दिन ऑफिस से हाॅफ-डे लेकर आते हैं आपसे मिलने।
ओके टाटा बाय बाय।।
तीन-चार दिन बाद रश्मि का फोन बजता है,
रिसीव करने पर रश्मि:: कैसे हैं शुभम जी? कैसा चल रहा आपका ऑफिस वर्क, आप बोल रहे थे आने का घर पर आए नहीं,
शुभम:: जी रश्मि जी,बस ऐसे ही पूछ रहे थे आपसे कि आज फ्री हैं ज्यादा काम नहीं है,, आप फ्री हों तो क्या मिल सकते हैं
रश्मि:: ओके शुभम जी मैं 3:30 बजे तक घर पहुंचती हूं फिर आप आज घर पर ही आ जाइए,
शुभम:: हां तो मैं आता हूं 4:00 बजे तक, ओके बाय।
रश्मि 3:15 बजे घर पहुंचती है, जल्दी से फ्रेश होकर भूख लगने से मैगी बना के खा लेती है।।
थोड़ी देर में ही डोरबेल बजती है, दरवाजा खोलने पर देखती है कि सामने शुभम खड़ा था।
रश्मि शुभम को अंदर बुलाती है और बैठने के लिए कहती है,
शुभम के लिए पानी लेकर आती है, और चाय के लिए पूछती है, शुभम चाय के लिए हां कर देता है, तो जल्दी से चाय के संग पकोड़े भी बना लाती है।
फिर बैठ कर दोनों बातें करते हैं, रश्मि पूछती है आज ऑफिस से इतनी जल्दी कैसे आप, फ्री हो गए,
शुभम बताता है कि दो दिन ओवर टाइम दे दिया था जिसकी वजह से आज, हाफ डे ले लिया, तो सोचा आप से ही मिल लेते हैं।।
रश्मि जी , अच्छा किया।
शुभम:: और बताएं रश्मि जी स्कूल कैसा चल रहा है?
रश्मि:: बस मंडे से एग्जाम स्टार्ट है, किसी में 2 दिन किसी में 1 दिन का gap तो बच्चों को दिया ही है, एक एग्जाम के बीच में बच्चों को 3 दिन का गैप दिया गया है, तो एक चक्कर लगा लूंगी नानी के यहां
शुभम:: तो आप यहां अकेली रहती हैं,
रश्मि:: जी शुभम जी अभी फिलहाल तो मैं ही हूं यहां,
पहले मम्मी पापा और मैं तीनों यही रहते थे, पर पापा के ना रहने पर, मां नानी के साथ ही रहती हैं, वही बुधनी में,
नानी भी वहां अकेली हैं,
कई बार मां ने और मैंने नानी से कहा कि यहीं आकर हमारे साथ रहने लगे पर नानी तैयार नहीं होती, वह कहती हैं जब तक मैं हूं, यहीं पर रहूंगी। मेरे बाद तुम मां- बेटी, फिर चाहे जो करो यहां रहो या वहां दोनों घर तुम्हारे ही है,
फिर तुम्हें जो चाहे अच्छा लगे वही करना।
शुभम:: ओह्ह, और आपके पापा,
रश्मि:: थोड़ी सी असहज हो जाती है,
शुभम:: क्या हुआ रश्मि जी ठीक है ना आप,रहने दो कोई बात नहीं।
रश्मि:: खुद को संभालते हुए, नहीं शुभम जी, कोई बात नहीं है, बस कोई पूछता है, तो यादें लहलहा उठती हैं।।
यह कोई 2 साल पहले की बात है, पापा नाना और मामा, तीनों बाय रोड लौट रहे थे एक परिचित शादी समारोह अटेंड करके, काफी सर्दी होने के कारण, घने कोहरे में, कुछ दिखाई ना देने के कारण, कार उस ट्रक से टकरा गई। और नाना और पापा वही मौके पर हीssssss
शान्ति निस्तब्ध।।
शुभम रश्मि के बिल्कुल पास आकर, हाथ से संभालते हुए, रश्मि प्लीज रश्मि, चुप हो जाओ, रोना चाहती हो तो रो लो,
नहीं शुभम जी, यह दर्द अब पल दो पल का नहीं पूरी उम्र भर का ही है,,
मामा की सांस तो चल रही थी, पर उनके शरीर पर इतने घाव थे इतने अंदरूनी घाव, किसी तरह लोगों ने उनको हॉस्पिटल तो पहुंचाया, इलाज भी शुरू किया गया
किसी तरह हमें खबर की गई, मैं मामा के पास पहुंचीं,
और उनसे मिली भी, मामा की हालत बहुत गंभीर थी,
मेरे उनसे मिलने के कुछ मिनटों बाद ही वह भी.........।
और उस दिन तीन अंत्येष्टियां एक साथ।।
रूआंसी रश्मि, शुभम का हाथ पकड़े, काफी देर तक रोती रही, शुभम की आंखें भी भीग गई थी, वह रश्मि से कुछ कह भी ना सका, और बस दोनों यूं ही उदास बैठे रहे काफी देर तक।।
काफी देर के बाद,
रश्मि संभालती हुई शुभम से बोलीं, शुभम मैं ठीक हूं, मैं आपके लिए काफी बना कर लाती हूं,
शुभम नहीं रश्मि जी,, वैसे भी काफी लेट हो चुका है,
दोनों ट्रेन निकल चुकी है, अब मैं चलता हूं,
रश्मि फिर भी कॉफी बना ही लाती है, और दोनों कॉफी पीते हैं,
रश्मि थोड़ा सा सिहरते हुए कि, फिर अब कैसे जाएंगे शुभम जी,
शुभम अरे कोई ना कोई ट्रेन तो मिल ही जाएगी, और पहुंच ही जाएंगे घर, बस आई-बाबा को फोन कर दूंगा कि किसी जरूरी काम में फंस गया हूं इसीलिए लेट हो गया हूं,, शायद पहुंचते-पहुंचते 11:00 बज जाएं।।
उस दिन आंटी जी को डॉक्टर के यहां ले गया था तो आई-बाबा को फोन करना ही भूल गया था, बहुत ही घबरा रहे थे वो, फिर आई का ही फोन आ गया, तो मैंने बता दिया था,
और आई ने मुझसे कहा था,कि अबकी बार आप जब भी, बुधनी आएं तो आपको हमारे यहां घर पर अवश्य ही आना होगा, आई बाबा से मिलने।
रश्मि के उदास चेहरे पर , हल्का सा मुस्कान वाला भाव आया।।
फिर शुभम रश्मि को गुड नाइट बोलते हुए ध्यान से रहने, अपना ख्याल रखने की बोल कर वहां से निकल गया।।
रोज का सिलसिला चलता रहा, अब दोनों लगभग रोज ही बात करा करते थे एक दूसरे से।
बीच में एक दो बार शुभम, रश्मि की मम्मी और नानी से, मिलने चला गया था,
स्कूल में फाइनल एग्जाम भी संपन्न हो गए थे, अब रश्मि बुधनी में ही नानी के यहां ही आ गई थी,
आज रश्मि उसकी मम्मी और नानी, तीनों ही शुभम के घर, उसके मम्मी पापा से मिलने जा रहे थे।
शुभम के मम्मी पापा भी उन्हीं का इंतजार कर रहे थे,
वे तीनों,
शुभम के घर पहुंचते हैं, शुभम तीनों को अंदर ले कर आता है, और आई-बाबा से मिलवाता है,
आई-बाबा,
ये रश्मि जी,
ये इनकी मम्मी व नानी जी।
वे एक दूसरे से अभिवादन करते हैं, और बैठने के लिए कहते हैं।
लता देवी (शुभम की मम्मी):: और रश्मि बेटा कैसी हो आप? और वार्षिक पेपर सम्पन्न हो गए आपके स्कूल में,
रश्मि:: जी, आंटी जी हो गए।
लता देवी:: अब तो छुट्टी लग गई होगी ना, अब तो यहीं रहोगी ना,
रश्मि:: जी आंटी जी अभी तो यहीं हूं, बीच में एक दो बार जाऊंगी, कॉपियां चेक करके रिजल्ट भी तैयार करना है, बच्चों का।
शुभम हरिया काका से कह कर चाय नाश्ता लगवा देता है, सब चाय नाश्ता करते हैं,
तभी शुभम के बाबा का फोन बजता है, वह किसी से कहते हैं कि आप वहीं रुके मैं अभी पहुंचता हूं, वे सबसे नमस्ते करके, कहते हैं आप बैठें आराम से बातें कीजिए आपस में, मैं और शुभ अभी थोड़ी देर में आते हैं लौटकर।
लता देवी उठकर शुभम के पापा से पूछतीं हैं तो वह बताते हैं कि जमीन के सिलसिले में कोई बात करने के लिए आए हैं बस उसी से मिलकर आते हैं अभी,और शुभम को साथ लेकर चले जाते हैं।
लता देवी:: रश्मि की मम्मी रजनी जी व उसकी नानी को बताती हैं, वैसे तो हमारे यहां कोई कमी नहीं है, ईश्वर की कृपा से खूब जमीन जायदाद है, शुभम की बहन पूजा की शादी भी अच्छे से घर से की है और वह अपने घर में खुश है, बस अब शुभम की शादी हो जाए, शुभम की चाहत थी पढ़कर नौकरी करने की, शुरू से होनहार भी बहुत रहा है, तो हमने भी मना नहीं किया, कर ले अपने सारे सपने पूरे। हम तो कहते हैं शादी करके वही भले ही भोपाल में ही सेट हो जा,
मैं और शुभ के पापा यहां तो रह ही रहे हैं, और हरि भी तो है ही, खाना-वाना बना ही लेता है हरी, और हरी ना भी हो तो भी मैं खुद ही सारे काम देख लेती हूं, शुभ के पापा
यहां पर जमींदारी का कम-काज सम्हालते रहते हैं। पर शुभ हमारे से दूर अलग नहीं रहना चाहता, वैसे देखिए तो
यही सही भी है, क्यूं जब सब है यहां तो बच्चा क्यूं दूर रहें।।
और आप बताएं रश्मि भी तो नौकरी करती है ना,उसके ब्याह का नहीं सोच रहे क्या आप लोग।।
रश्मि की नानी, अरे कैसे ना सोचेंगे जी, इसकी मां रजनी के दिल की यही तो सबसे बड़ी मुराद है ,पर मां-बेटी दोनों की ही चाहत है कि घर-जंवाई मिल जाए इन्हें, अब अच्छा सा घर जंवाई इतनी आसानी से कहां मिलेगा, इन्हें।
रश्मि और रजनी जी दोनों साथ में, अरे मां-नानी फिर से वही।।
तभी नानी फिर बोलीं नहीं-नहीं बहन। ऐसा कुछ नहीं,
ये चाहत तो मेरी ही है, रश्मि का सपना तो अपना स्कूल खोलने का है।
थोड़ी देर में ही शुभ और उसके पापा दोनों हीं आ जातें हैं,।।
रश्मि ,मम्मी, नानी तीनों उन से जाने की आज्ञा लेते हैं तो लता देवी कहती हैं कि अरे ऐसे-कैसे चले जाएंगे,
खाना तो खाकर ही जाना होगा। वैसे भी कुछ भी स्पेशल नहीं बनवाया है, घर का सादा खाना ही है।
वे तीनों काफी मना करते हैं,
शुभ और उसके पापा भी कहते हैैं कि खाना खिलाएं बिना तो नहीं ही जाने देंगे।
वे तीनों उनके प्रेम पूर्वक किए गए आग्रह को अस्वीकार नहीं कर पातीं,
रश्मि किचन में हरिया काका के संग, खाना लगवाने में उनकी मदद करती है,
इधर शुभ के पापा, रजनी रश्मि की मम्मी से पूछते हैं, रश्मि के पापा के बारे में,
रजनी जी बताती हैं, कि अब रश्मि के पापा हम सबके बीच नहीं है, और फिर उस दर्दनाक हादसे के बारे में बताती हैं,
माहौल थोड़ा सा गंभीर हो जाता है,
अफसोस जाहिर करते हुए, स्थिति को संभालते हुए कहते हैं, उसकी मर्जी के आगे कुछ भी नहीं चलता, रिश्तों की कमी को पूरा तो नहीं किया जा सकता,
पर नये रिश्ते जुड़ते हैं तो कसक अपने आप ही धीरे-धीरे कम हो जाती है, आपको जब भी कभी भी किसी भी बात की जरूरत तो हम आपके साथ हमेशा हैं।।
खाना खाकर तीनों उन से विदा लेकर निकलती हैं, तो शुभम के पापा शुभ को उन्हें घर तक छोड़ कर आने को बोलते हैं।
शुभ उन तीनों के साथ, उनके घर तक जाता है, और वहां आंटी से कहता है, आंटी एम सॉरी, मैंने मम्मी पापा को रश्मि और आपके बारे में बताया था,
पर अंकल के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी, जिसकी वजह से पापा।
रजनी जी:: नहीं शुभ बेटा, अच्छा ही हुआ कि रश्मि किचन में थी उसमें कुछ नहीं सुना अगर वह सुनती तो फिर बिल्कुल भी नॉर्मल फील नहीं कर पाती।।
शुभ विदा लेकर घर के लिए निकल पड़ता है।
टाॅयलेट से निकल रश्मि मां से पूछती है, मां क्या बात कर रही थीं शुभ से,
मां:: कुछ नहीं, बस यूं ही घर के बारे में पूछ रही थी।
10 दिन कैसे बीत गए पता ही ना चला,
रश्मि मां से बोली मां कल स्कूल जाना होगा मुझे।
रश्मि शुभ को फोन करके बोलती है, कल सुबह वो भी चलेगी साथ में, शुभ ऑटो से निकलते हुए उसे पिक कर लें।
दोनों ऑटो से स्टेशन पहुंचते हैं, और फिर ट्रेन से शहर पहुंच कर अपने अपने office चले जाते हैं।
आज स्कूल में रिजल्ट डे था, कुछ बच्चों के माता-पिता बहुत खुश थे, तो कुछ बच्चों के माता-पिता अपने बच्चों के आशातीत सफल परिणाम न आने से काफी व्यथित भी लगे। रश्मि उन बच्चों और उनके माता-पिता से कहती,, के आगे और मेहनत करें।
स्कूल से फ्री होकर रश्मि शुभ के ऑफिस पहुंचती है, दोनों साथ में lunch करने restaurant जाते हैं,
शुभ रश्मि से पूछता हैं कि अब तो एग्जाम हो गये रिजल्ट भी आ गया, तो फिर आगे इसी स्कूल को कंटिन्यू करोगी,
यां आगे के लिए कुछ और सोचा है,
रश्मि चौंकती सी क्यूं??
शुभ, पापा कह रहे थे, के अगर आप वही बुधनी में ही कोई स्कूल जॉइन कर ले
रश्मि बीच में ही,
आप तो जानते हैं कि, बुधनी के स्कूल कुछ खास नहीं,
और अच्छी शिक्षा लेने के लिए, सारे विद्यार्थी गण यहीं (भोपाल) ही आते हैं पढ़ने के लिए।
और फिर शुभ आपने भी तो अपनी शिक्षा भोपाल से ही ली है ना।
तो मैं कैसे, अपनी अच्छी खासी जॉब छोड़ कर कर, वहां का कोई भी स्कूल जॉइन कर लूं।
नहीं रश्मि मैं यह नहीं कह रहा, कि तुम कोई भी स्कूल जॉइन कर लो, पापा का कहना है, कि तुम वही बुधनी में ही नए स्कूल की शुरुआत करो, जैसा स्कूल तुम चाहती हो,
रश्मि ,और आपको लगता है कि स्कूल शुरू करना इतना आसान है, आपको पता भी है एक स्कूल चलाने में कितने लोगों का, कार्यभार होता है, स्कूल चलाना कोई सब्जी भाजी बेचना नहीं है, कि उठाया अपना सामान और बेचने लगे, स्कूल में पढ़ाना और एक पूरे स्कूल का प्रबंधन व संचालन, और काम कोई मच्छी बाजार चलाना नहीं है शुभ।।
जी रश्मि जी, आप ठीक बोल रही हो, पर मैं तो केवल इतना बोल रहा हूं कि मेरा और पापा का विचार है कि आप बुधनी में एक छोटे से स्कूल की शुरुआत करें,
यह जरूरी तो नहीं कि स्कूल बहुत बड़ा ही हो, शुरुआत तो छोटे से छोटे से भी की जा सकती है, और आपके पापा खुद भी तो प्रोफ़ेसर थे, उनका भी तो सपना था कि वह और आप मिलकर के एक स्कूल की स्थापना करें
बताइए, था कि नहीं
रश्मि:: हां शुभ आप सही बोल रहे हैं, पर आपको यह सब कैसे मालूम, किसने बताया।
शुभ:: मतलब आप कुछ नहीं बताएंगी तो हम पता नहीं कर सकते क्या??
हां तो मां और नानी के अलावा और कौन है जो बताएगा,
वह दोनों बुढ़िया भी ना। पता नहीं कब आप लोग मिलकर बातें कर लेते हमें तो कोई खबर भी नहीं लगती।
फिर दोनों हंस पड़े।
पर शुभ अब ये नहीं हो सकता, इतना आसान नहीं,
मैं मानती हूं कि यह पापा का सपना था, कि हम अपने कस्बे में एक ऐसे स्कूल की नींव रखी, जो हमारे कस्बे को ऊंचा उठा सके,
शुभ:: सिर्फ आपके पापा का आपका नहीं?
रश्मि:: हां, पापा और मेरा दोनों का और साथ ही साथ
पापा के परम मित्र, श्रीमान अग्रवाल जी का भी।
पर अब यह मुमकिन नहीं।
पापा तो मुझे असमय ही मझधार में छोड़ कर चल दिए,
और अग्रवाल अंकल वह तो पिछले साल ही, अमेरिका अपने बेटे के यहां शिफ्ट हो गए।
रश्मि घड़ी में टाइम देख कर बोलती है, बहुत देर हो चुकी है, क्या ऑफिस नहीं पहुंचना आपको, अपनी लिविंग एंट्री दर्ज नहीं करनी क्या???
शुभ:: हां बिल्कुल, ध्यान ही नहीं रहा, चलिए चलते हैं,
रश्मि आप ऑफिस पहुंचे मैं घर जाती हूं फिर शाम को स्टेशन पर मिलते हैं
स्टेशन पहुंच कर शुभ बार-बार घड़ी देखे जा रहा, अभी तक आई नहीं, फिर कॉल के लिए मोबाइल जैसे ही on करता है,तो देखता है सामने से मैडम बड़े आराम से चलती चली आ रही हैं
कुछ ही मिनटों में ट्रेन आती है और दोनों चढ़ जाते हैं,
शुभ रश्मि से पूछता है कि इतनी लेट कैसे हो गई, रश्मि बोलती है घर पहुंची, फ्रेश होकर थोड़ी देर के लिए लेट गई, फिर अपना सामान पैक कर के जल्दी जल्दी से आ गई।
थकी हुई होने के कारण, रश्मि ट्रेन में भी लेट गई तो उसे नींद आ गई, और शुभ उसके पास ही बैठा रहा, उसे देखते हुए सोचता रहा, कितनी प्यारी और कितनी मासूम है, बस अब किसी दिन मौका देख कर, आई-बाबा , आंटी और नानी से बात करके, रश्मि का हाथ मांग लेंगे, फिर
रश्मि हमेशा हमेशा के लिए मेरी हो जाएगी। पर उससे पहले रश्मि का सपना भी पूरा करना होगा, पर क्या जैसी मेरी चाहत, क्या रश्मि भी वैसे ही मुझे भी चाहती है।
फिर अपने आप को ही उत्तर देता वह बोलता है, गर चाहत ना होती, तो क्या इतने कम समय में ये मुझ से इस कदर घुल मिल गई होती, और वैसे भी दोस्ती से तो बढ़कर ही है , हमारा साथ। बस इन्हीं खयालों में खोए हुए कब स्टेशन आ जाता है पता ही नहीं लगता शुभ को, प्लेटफार्म से लगते ही शुभ रश्मि उठाता है, ट्रेन रुकते ही
उतर जाते हैं, रश्मि शुभ से घर चलने को कहती है, शुभ रश्मि को छोड़ने उसके घर चला जाता है।
दोनों को साथ देखकर, रजनी जी कहती हैं, अच्छा किया जो शुभ को भी साथ ले आईं, मेरे मन में आ ही रहा था, कि तुझे फोन कर दूं कि शुभ को बोल यही आ जाये, नानी बहुत याद कर रही थी शुभ को, नानी की तबीयत भी बहुत ढीली है, बस बार-बार यही कह जा रही है, शुभ और रश्मि को साथ देखना है, कह रही हैं कि मेरी उम्र का कोई भरोसा नहीं, मैं अपनी आंखों के सामने
दोनों का रिश्ता अपने हाथों से करवाना चाहती हूं, रजनी जी के इतना बोलते हीं , शुभ और रश्मि एक दूसरे को देखते हैं, शुभ को लगता है, कि जैसे उसके मुंह की बात आंटी ने बोल दी हो नानी के रुप में। शुभ मुस्कुरा कर रह जाता है, उसका फोन बजने लगता है, तो है उनसे विदा
लेते हुए कहता है कि मां का फोन है वह इंतजार कर रहे होंगे अच्छा अब मैं चलता हूं।
शुभ घर पहुंचता है, तो उसके मम्मी पापा उसका इंतजार कर रहे थे, फिर तीनों मिलकर खाना खाते हैं,
उसके पापा शुभ से पूछते हैं कि बेटा, कुछ बात हुई रश्मि से, तो शुभ पूरा किस्सा जो रश्मि के यहां हुआ बताता है।
शुभ के मम्मी पापा बोलते हैं, बेटा हमें तो रश्मि और उसका परिवार दोनों बहुत पसंद है, अब तुम रश्मि के दिल की बात जानकर, आपस में पक्का कर लो, तो हम उनके यहां बात करके शगुन की तैयारी करें।
शुभ मम्मी पापा से कहता है, मुझे तो रश्मि पहली नजर से ही पसंद है, और जहां तक मैं समझता हूं, वह भी मुझे पसंद करती है, पर पापा वह खुद को बहुत अकेला समझती है, डरती है, अपना सपना पूरा करने की चाहत उसके अंदर है, पर वह अपने को कमजोर महसूस करती है,
पापा क्या आप उसकी कुछ मदद कर पाएंगे।
तो शुभ के पापा बोलते हैं, बेटा तेरी खुशी हमारी खुशी है, मैं तो पहले ही सोच चुका हूं, कि उसका सपना पूरा करने में मैं उसकी जो मदद कर सकता हूं जरुर करूंगा।
आखिर उसको दिक्कत क्या है, यहां पर स्कूल खोलने में, तो शुभ बताता है, कि आज उस की रश्मि की क्या क्या बात हुई, रात बहुत हो जाने पर, शुभ अपने कमरे में चला जाता है सोने के लिए।
सुबह उठने पर शुभ का फोन बजता है, उधर से रश्मि घबराई हुई से बोलती है, शुभ शुभ जल्दी आ जाओ, नानी को सांस लेने में बहुत दिक्कत हो रही है, मुझे और मां को बहुत डर लग रहा है शुभ।
शुभ तुरंत तैयार होता है, और मां को बताता है कि वह रश्मि के यहां होता हुआ, ही जायेगा ऑफिस के लिए।
वहां पहुंचकर ,शुभ देखता है कि नानी की तबीयत वाकई में काफी खराब थी, शुभ और रश्मि दोनों कहते हैं कि अभी इनको हॉस्पिटल लेकर ही जाना पड़ेगा, पर नानी है कि एक ही बात बोले चली जा रही है कि , शुभ बेटा अगर कल मुझे कुछ हो जाए तो तुम मुझसे वादा करो, कि मेरी नातिन रश्मि और इसकी मां रजनी का साथ तुम कभी नहीं छोड़ोगे, हमेशा इनका ध्यान रखोगे, और तुम दोनों मेरे इस संसार से विदा होने से पहले ही, मेरे सामने ही शादी कर लो, तुम दोनों एक दूसरे को बहुत चाहते हो, यह बात तुम दोनों को देख कर ही पता चलती है, और तुम दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हो।
नानी की बढ़ती हुई धड़कन देख कर, दोनों हां बोलते हैं, और कहते हैं कि पहले आप हॉस्पिटल चले आप ठीक रहेंगे तभी हम कर पाएंगे ना शादी, और वे नानी को लेकर के हॉस्पिटल चले जाते हैं,
शुभ मम्मी पापा को भी फोन करके जानकारी दे देता है, और ऑफिस भी फोन कर देता है कि आज वह अर्जेंट काम होने की वजह से ऑफिस नहीं आ पाएगा।
शुभ के पापा भी अस्पताल पहुंच जाते हैं, और कृत्रिम ऑक्सीजन लगाकर, नानी की सास को नियंत्रित करने की कोशिश की जाती है।
2 दिन ऐसे ही बीतते हैं,दो दिन बाद नानी को थोड़ा आराम आने पर, अस्पताल से छुट्टी मिलती है।
शुभ के मम्मी-पापा में रश्मि के घर आ जाते हैं।
शुभ के मम्मी-पापा वहां आकर कहते हैं कि, आज वो सर प्राइस लाए हैं, सब के लिए।
वे बताते हैं कि उनकी जो जमीन पिछले 15 वर्ष से विवाद के दायरे में खड़ी थी, उसका फैसला उनके पक्ष में आ गया है, और अब जमीन पूर्ण रूप से, उनके अधीन हो गई है, और यह जमीन शुभ व उनकी पुत्रवधू के नाम पर रहेगी, उन्होंने यह निर्णय लिया है, इस जमीन पर
एक बहुत बड़ी स्कूल को खोलने की इजाजत वो रश्मि को सौंपते हैं, उन्हें रश्मि अपनी पुत्रवधू के रूप में स्वीकार है,
अगर रश्मि और आप लोगों की इजाजत हो तो। गम व उदासी से भरा माहौल, अचानक से खुशगवार हो जाता है
नानी जो अभी तक बहुत ही कमजोर, निढाल सी लग रही थीं, अचानक से कही गई इस बात से, बहुत प्रसन्न हो जाती है,
और कहती है रश्मि तू दिल खोलकर, स्कूल खोलने की तैयारी कर, भले ही छोटे रूप में खोल पर एक दिन तेरा स्कूल जरुर बहुत बड़ा स्कूल बनेगा,
देख भगवान ने तेरा एक पापा नाना मामा भले असमय तुझ से छीन लिये हों भले ही,
पर मुझे तो, पहली दफा देखकर ही लगा, जैसे शुभ के पिता के रूप में, तेरा पिता ही सामने खड़ा हो।
सबके सामने शुभ रश्मि से पूछता है कि क्या वो
उसका जीवन साथी बनकर, उसके सारे सपने पूरे करने में, उसकी हर संभव मदद कर सकता है, क्या रश्मि आप को यह मंजूर है,
रश्मि भी सबके समक्ष अपनी चाहत का इजहार करते हुए, शुभ को अपने जीवन साथी के रूप में स्वीकार करती हैं।
कुछ दिनों के बाद, दोनों परिवारों की सहमति से,
आज रश्मि की स्कूल की, पहली नींव की ईंट जमीन में रोपीं जाती है,
और तय किया जाता है कि, सगाई की अंगूठी, की रस्म , उसी ट्रेन में पूरी की जाएगी, जिसमें शुभ और रश्मि की पहली मुलाकात हुई थी।।
अब रश्मि और शुभ दोनों के भोपाल और बुधनी दोनों
शहरों कस्बों में घर हैं।
ट्रेन में मिला प्यार पिया बसंती होकर बहने को तैयार हैं
सबको साथ लेकर, सपने साकार करने को।
समाप्त।।

