Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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लड़की का लव जिहाद …

लड़की का लव जिहाद …

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लड़की का लव जिहाद …शौहर के द्वारा असंवैधानिक रूप से दिए तीन तलाक़ के कारण, पीड़िता  पत्नी, (स्वयं) अधिवक्ता फिरदौस ने, न्यायालय में, मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अंतर्गत अपने शौहर के विरुद्ध प्रकरण दर्ज कराया। 

फिरदौस के शौहर की जमानत याचिका, अधिनियम के प्रावधान अनुसार, न्यायाधीश ने अमान्य कर दी। 

प्रकरण पर सुनवाई में, फिरदौस के शौहर ने अपने बचाव में न्यायालय से कहा - 

जज साहब, मेरा क्रोध शांत हो जाने पर, फिरदौस को तलाक़ देने का मुझे पछतावा हुआ है। यह अनुभव करते हुए अभी ही मैं, फिरदौस से माफ़ी माँगता हूँ। मैं, साथ ही न्यायालय से यह अनुरोध करता हूँ कि मेरे अपराध पर मुझे, क्षमा प्रदान करते हुए रिहा किया जाए। मैं, फिरदौस को पुनः अपनी बीवी स्वीकार करता हूँ। 

इस पर फिरदौस ने न्यायालय में कहा - 

मी लार्ड, मेरा यह शौहर, मुझे फिर बीवी स्वीकार करने के पूर्व, मुझ से #हलाला होने की शर्त रखेगा। अतः इसे क्षमा नहीं किया जाए एवं अधिनियम के प्रावधान अनुसार इसे, तीन वर्ष के कारावास की सजा दी जाये। 

तब शौहर के वकील ने न्यायालय को बताया -

चूँकि संविधान, अब #तीनतलाक़ को स्वीकार नहीं करता है। अतः फिरदौस से, मेरे मुवक्किल का तलाक, स्वतः अमान्य हो जाता है। ऐसे में, मेरा मुवक्किल एवं फिरदौस अभी भी पति-पत्नी ही हैं। 

अतः #हलाला की शर्त इस प्रकरण में #अप्रासंगिक है। मैं, माननीय न्यायालय से प्रार्थना करता हूँ कि वह, मेरे #मुवक्किल के आग्रह को स्वीकार करते हुए, उसे, अपने #दांपत्यसूत्र में रहने का अवसर पुनः प्रदान करें। 

इतनी दलील, सुनकर न्यायाधीश ने, सुनवाई 10 दिन बाद की दिनांक तक के लिए स्थगित कर दी थी। 

अगली सुनवाई में फिरदौस ने अपना पक्ष रखते हुए कहा - 

मी लार्ड, अपने शौहर का पछतावा एवं उस से रही मेरी मोहब्बत, यद्यपि मुझे, शौहर पर दया के लिए प्रेरित तो करती है। तब भी मैं, उसे माफ़ नहीं करना चाहती। 

मुझे, मेरे शौहर से अधिक दया, उन औरतों पर आती है। जो तीन तलाक़, असंवैधानिक हो जाने पर अब भी, इसके दंश की पीड़ा सह रही एवं शिकार हो रही हैं। 

जज साहब, दुर्भाग्य से, ना तो ये औरतें, मेरी तरह वकील ही हैं और उनमें से कई के पास, ना ही न्यायालय में अपना केस लड़ने के लिए पैसा ही है। 

मेरी प्रार्थना है कि मेरे, अपराधी शौहर को अधिकतम सजा दी जाए। जिससे यह शौहर, ऐसा उदाहरण बन जाए, कि कोई मर्द क़ानून एवं अपनी बीवी की इस तरह उपेक्षा एवं अनादर नहीं कर सके। और फिर कभी, किसी औरत का जीवन ऐसा नर्क ना होने पाए। 

जज साहब मैं, न्यायालय को यह भी बताना चाहती हूँ कि यद्यपि जब, मेरे शौहर ने वीराने में मुझ पर, तीन तलाक़ थोप दिया था तब मैं, इससे तलाक़ नहीं चाहती थी। शौहर के असंवैधानिक रूप से, मेरे पर किये गए अत्याचार मेरे लिए एक अपॉर्चुनिटी सिद्ध हुई है जिसने मुझे, दब्बू से बहादुर औरत बना दिया है। 

अब मेरा शौहर नहीं चाहता मगर मैं, उससे तलाक चाहती हूँ। जिसके लिए मैं, न्यायालय में पृथक प्रकरण, कल ही दर्ज कर दूँगी। 

सुनवाई पूर्ण होने के बाद, न्यायाधीश ने सभी पक्ष पर ध्यान देते हुए, अपराधी शौहर को, तीन वर्ष का कारावास एवं दस हजार रुपये जुर्माने का दंड सुनाया। 

तब अगले दिन ही फिरदौस ने, शौहर से डिवोर्स का केस भी कर दिया था। संयोग से यह प्रकरण भी, इन्हीं, हरिश्चंद्र जी, न्यायाधीश को, सुनवाई के लिए आवंटित हुआ। 

फिरदौस के शौहर ने यहाँ, फिरदौस पर गंदा आरोप लगाया, उसके वकील ने न्यायालय को बताया -

मेरा मुवक्किल अपने पश्चाताप में, पहले फिरदौस को चारित्रिक रूप से निर्दोष, मानने लगा था। वह फिरदौस को पुनः अपनी बीवी के रूप में स्वीकार करने को तैयार भी हुआ था। मगर, फिरदौस की तलाक लेने के दर्ज किये गए इस प्रकरण के बाद उसका, फिरदौस की चरित्रहीनता का शक, पुष्ट हुआ है। 

मेरा मुवक्किल जानता है कि फिरदौस, उससे छुटकारा लेकर अपनी आपा के देवर, जिससे उसके पूर्व संबंध रहे हैं, विवाह करना चाहती है। 

अपने चरित्र पर शौहर द्वारा लगाये घिनौने आक्षेप की प्रतिक्रिया में फिरदौस रो पड़ी थी। 

तब न्यायाधीश ने सुनवाई, 15 दिन बाद की दिनांक पर स्थगित कर दी थी। 

अगली सुनवाई पर, फिरदौस ने, शौहर के आरोप को झूठा प्रमाणित करने के साक्ष्य रूप में, अपनी आपा के देवर का, एक अन्य लड़की से, अगले महीने होने वाले, निकाह का निमंत्रण पत्र, न्यायालय के सामने प्रस्तुत किया एवं कहा - 

मी लार्ड, मेरा शौहर जैसा खुद है वैसा औरों को समझता है। चरित्र में दोष, खुद इसमें है। यह मुझे तो पर्दानशीं रखता है मगर खुद, बेपर्दा युवतियों के वीडियो देखता रहता है। 

सरासर झूठ होने से इसके पास, मेरे चरित्रहीन होने का कोई प्रमाण नहीं है। मगर इसके मोबाइल की जाँच कराई जाए तो, मेरी बात आसानी से साबित हो सकती है। 

मी लार्ड, दोष मेरे चरित्र में नहीं है अपितु लोचा इसके मर्दाना ख्यालों में है। यह खुद तो, पराई औरतों का दीवाना हुआ घूमता है। मगर अपनी बीबी पर किसी के किये गए हल्के-फुल्के मजाक से ही, हिंसक होकर उस पर अत्याचार को उतारू हो जाता है। ऐसे शौहर के साथ मैं, अपना जीवन बर्बाद नहीं करना चाहती। 

कृपया मी लार्ड, इससे तलाक का आदेश कर, मुझे, आज ही इससे मुक्त किया जाए। 

अपना पक्ष कह चुकने के बाद फिरदौस ने तब, अपने पक्ष में गवाही के लिए अपनी आपा के, देवर और उसकी मंगेतर को प्रस्तुत किया था। उन्होंने, फिरदौस को सच्चरित्र बताया और अगले महीने, अपने निकाह किये जाने की पुष्टि की थी। 

न्यायाधीश हरिश्चंद्र ने तब, फिरदौस के तलाक का निर्णय सुनाने के पूर्व फिरदौस से भरण पोषण राशि की मांग के विषय में पूछा था। 

फिरदौस ने न्यायालय को बताया कि - 

मैं, ऐसे बेग़ैरत मर्द के पैसों के उपयोग को अब, हराम मानती हूँ। अतः शौहर से मुझे, कोई भरण पोषण राशि नहीं चाहिए है। सिर्फ और सिर्फ एक अदद तलाक़ चाहिए है। 

तब, जज हरिश्चंद्र जी द्वारा, फिरदौस के डिवोर्स का आदेश सुना दिया गया था। 

फिरदौस का डिवोर्स हो जाने के कुछ दिन बाद, न्यायालय के एक चपरासी ने, दोपहर फिरदौस से आकर कहा - 

आज छुट्टी के बाद, आपसे मिलने के लिए, जज हरिश्चंद्र जी ने, आपको याद किया है। 

फिरदौस छुट्टी के बाद, हरिश्चंद्र जी से मिली थी। उन्होंने, फिरदौस को रविवार अपने बँगले पर, लंच के लिए आमंत्रित किया था। तदनुसार रविवार को फिरदौस, उनके निवास पर पहुँची थी। 

चाय की चुस्कियों के बीच हरिशचंद्र ने फिरदौस से कहा - 

मैं, तीन वर्षीया एक बेटी का पिता हूँ। दो वर्ष पूर्व एक दुखद दुर्घटना में, मेरी पत्नी का देहांत हो गया है। अभी मेरी अबोध बेटी, माँ के प्यार से वंचित है। फिरदौस अगर आप, मेरे साथ में अपना भविष्य देखती हो तो मैं, आपसे विवाह करना चाहता हूँ।  

यद्यपि हमारी उम्र में लगभग 10 वर्ष का अंतर है फिर भी यदि इन सब बातों के साथ आपको, स्वीकार्य हो तो कृपया आप, मेरे प्रस्ताव पर विचार कीजिये।  

फिरदौस ने निर्णय लेने में कोई जल्दबाजी नहीं की, उसने विचार करने के लिए समय मांग लिया था। फिर लंच लेने के बाद फिरदौस, अपने घर लौट गई थी। 

बाद में फिरदौस की सहमति मिलने पर एक महीने बाद, हरिश्चंद्र ने फिरदौस से विवाह रचा लिया था। 

विवाह की प्रथम रात्रि हरिश्चंद्र ने, फिरदौस से पूछा - आप गैर कौम में, विवाह का साहस कैसे कर सकीं हैं? 

फिरदौस ने बताया - 

मेरे तीन तलाक़ के, विरुद्ध कोर्ट में जाने से, हमारे कई लोग, मेरे से वैमनस्य रखने लगे हैं। ऐसे में मेरा, फिर अपना नया घर बसा पाना मुझे, कठिन लग रहा था। ऐसे समय में आपने विवाह प्रस्ताव किया। 

आप यद्यपि, अन्य संप्रदाय के हैं। मगर एक अत्यंत योग्य व्यक्ति हैं। मुझे संदेह नहीं कि विधुर होते हुए भी आपको, कोई कुँवारी लड़की मिल सकती थी। लेकिन आपने, अपने दिमागी खुलेपन का परिचय देते हुए, मुझ तलाकशुदा औरत से विवाह का प्रस्ताव किया। 

इन सभी परिस्थिति को देखते हुए, इसे स्वीकार न करना, निश्चित ही मेरी मूर्खता होती। अतः आपका प्रस्ताव मान लेना, साहस नहीं बल्कि मेरी बुद्धिमानी है। 

कह कर फिरदौस हँसने लगी, तब हरिशचंद्र भी हँसे थे। फिर हँसते हुए ही उन्होंने कहा - 

फिरदौस, यह तो तुमने “लड़की का लव जिहाद” कर दिखाया है। 

इस बात से फिरदौस शरमाई थी, फिर उसने कहा - 

जज साहब, देश में #लवजिहाद की समस्या से निबटने के लिए क़ानून में, सिर्फ एक प्रावधान किये जाने की जरूरत है। 

हरिश्चंद्र जी ने व्यग्रता से पूछा - वह किया? 

फिरदौस ने होशियारी के अंदाज में कहा - 

वह यह कि हमारे संविधान में, यह प्रावधान कर दिया जाए कि दो अलग संप्रदाय के लड़के-लड़की, जब शादी करने का फैसला लें तब लड़के को, लड़की का धर्म स्वीकार करने की कानूनन बाध्यता रहे। 

अर्थात विवाह पूर्व ही लड़के का, लड़की के धर्म का अनुयायी हो जाने पर ही उन्हें, विवाह की अनुमति मिले। इससे देश में, लव जिहाद की समस्या खत्म हो जायेगी। तब फिर किसी #निकिता की, अकाल हत्या नहीं हुआ करेगी। 

हरिश्चंद्र जी ने, फिरदौस को अति प्रशंसात्मक दृष्टि से देखा मगर प्रकट में परिहास करते हुए पूछा - 

फिरदौस, कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाह रही हो कि मुझे, तुम्हारा मजहब स्वीकार करना चाहिए?

इस पर फिरदौस ने इठलाते हुए कहा - 

नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है। मैंने, यह जानते हुए आपसे शादी की है कि हमारे क़ानून में, अभी यह बाध्यता नहीं है। 

तब हरिशचंद्र ने कहा - 

वाह, आपका सुझाया गया समाधान बहुत अच्छा है। मगर यह, हमारे संविधान के, उस प्रावधान के विरुद्ध है जिसमें, भारत के प्रत्येक नागरिक को अपनी धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता मिलती है। 

फिरदौस ने गंभीर होते हुए उत्तर दिया - 

इस प्रावधान के होने से, समाज में नारी का कोई हित नहीं होता है। यहाँ के सभी धर्म में, धर्म ठेकेदार तरह के पुरुष, अपने धर्म में उल्लेखित बातों की झूठी-सच्ची व्याख्या देकर, धर्म का वह स्वरूप नारी पर लाद देते हैं, जिसमें मनमानी करने की स्वतंत्रता सिर्फ पुरुष को होती है।

जबकि यह एक तथ्य है इनके स्वार्थ में बताये जा रहे से, मूल धर्म का स्वरूप बिलकुल अलग है। सभी हमारे धर्म, नारी एवं पुरुष को जीवन के समान अवसर सुनिश्चित करते हैं।  

यहाँ अधिकतर नारी, कानूनी स्वतंत्रता होते हुए भी, पुरुष के द्वारा दी गई धर्म की गलत व्याख्या को मानने के लिए मजबूर हैं। और ऐसे वे, घुटन के जीवन को #अभिशप्त हैं। 

हरिश्चंद्र ने तब कहा - 

मैं, आपके इन विचारों के आधार पर, अपनी अनुशंसा कल ही कानूनविदों एवं सरकार को प्रेषित कर दूँगा। 

मगर आज की हमारी, अभी इस रात के लिए विशेष तो यह है। यह कहते हुए हरिश्चंद्र ने फिरदौस को अपने बाहुपाश में बांध लिया था। 

तब फिरदौस ने हरिश्चंद्र की बाहों के बंधन में होते हुए, स्वयं को आज़ाद अनुभव किया। 

फिरदौस, तब इस आलिंगन में अपनी संपूर्ण श्रद्धा, समर्पण एवं अथाह प्रेम के सागर में डूब कर, अपने पति हरिश्चंद्र जी के लिए लेकर, निश्छल, निर्मल एवं पावन अनुभूति कर रही थी। 

वह सोच रही थी कि यह समय, इस घड़ी पर ही थम जाए, बस अब ….                        



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