क्या यही प्यार है ?
क्या यही प्यार है ?
कल शाम कुछ इस तरह बिता मानो कई वर्ष बीतने को हो क्योंकि आज वो नहीं दिखा। जिसका मुझे देखना सामान्य ना था। पिछले कई दिनों से कोई अनजान चेहरे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बस मुझे देखे जा रहा था। मानों बस मुझे देखने आया हो। जब नजरें मिल जाती वो नजरें नीची कर लेता। कुछ ज्यादा दोस्त नहीं थे उनके पास। कभी - कभी एक दो के साथ आ जाया करता था। वैसे तो वो सभी को देखता था पर उसे देखने से ऐसा लगता था जैसे उस मासूम चेहरे को कुछ गुफ्तगु करनी हो। शायद कुछ झिझक रह गई हो।
कई बार मैं ने उस को कई लोगों की मदद करते भी देखी थी। वो काली सी शर्ट, वो नीली जींस, सो सामान्य सी सूरत आज भी याद हैं मुझे। कई बार शाम बीतने पर एक परछाई बन घर तक आता था मानों अंधेरी राह का बस एक ही सहारा हो। वो कुछ इस तरह चलता जैसे हमें पता ही ना हो। पर उस शाम उसके नहीं आने से कुछ घबराहट हो रही थी, पर पता नहीं क्यों?
सूर्य ढलने को आई बस अब अगली शाम की ही आशा थी। अगली शाम मुझे मोबाइल में मन नहीं लग रही थी मानों किसी से बहस हो गई हो। सारा ध्यान तो उन अनजान चेहरे की ताक में था जिसे मैं जानती भी नहीं थी। ये शाम कुछ ज्यादा लंबी हो गई उसे ढूंढते-ढूंढते। आज तो समय से विश्वास ही नहीं उठ रही थी। अब काफी शाम बीत गए, रात के तारे भी मुझे देखने आ पहुंचे। कुछ सात - दस फोन भी माँ की आ चुकी थी। थक हार मैं घर की ओर चल पड़ी पर पैर मानों मुझसे रुकने की आशा कर रही हो। जैसे घर को पहुँची थोड़ी डाट मुफ्त में मिली और कुछ खाना। खाना तो मेरे मन पसंद आलू के पराठे थे पर अच्छे से खाया नहीं गया। रात जैसे - त
ैसे खाने के बाद बिस्तर पर गई पर नींद मानों उड़ गई हो ये सोचते सोचते क्या यही प्यार हैं?
अगले तीन दिनों से उसकी कुछ सूरत ना देखी। अब तो मेरी उदासी दिखने लगी थी। कई बार पापा ने भी टोका मेरी क्वीन क्यों उदास हैं ? पर मैने बस मुस्कुरा के टाल दिया। शायद हमारा मिलना लिखा था। एक रात पिता जी के साथ कुछ खरीदने निकली तो हमने रेस्टोरेंट में खाने की बात की और चल परे रेस्टोरेंट की ओर। ये लम्हा मेरी जिंदगी की कुछ खास लम्हा होगी सोचा ना थी क्योंकि कई दिनों से उसे देखा ना था। आज वो दिखा बर्तन धोते हुए। इतनी आसान नहीं होता पिता जी और माता जी से बच कर कुछ कह पाना। बड़ी मेहनत से उसे फिर पार्क में मिलने को कह पाई।
अगले दिन शायद मैं कुछ पहले ही पार्क पहुँच गई। आज वो सामान्य से कपड़ों में आया। काफी बात होने से पता चला उसके पिता जी वकील थे और उसे बहुत पीने की लत थी जिसके कारण घर बेचना पड़ा और माता जी गुजर चुकी थी। बस यही कहते कहते उनकी आँख नम हो गई। आज वो मुझसे नजरें नहीं मिला पा रहा था जैसे बहुत कुछ सोचकर आया हो। उसने मुझसे सारी मन की बात कह डाली। थोड़ी देर बाद दोबारा ना मिलने की बात की और थोड़ा उदास शक्ल ले चला गया। शायद एक दीवार आन पड़ी थी दोनों के बीच में अमीरी और गरीबी की।
कई दिनों तक मेरी उदासी भी छाई रही। अंततः मैं ने एक निर्णय लिया पैसे और मन के बीच मन को चुना। मैं ने फिर कोशिश कर उसे पार्क बुलाया और आखरी उम्मीद के साथ मैं ने बस जिंदगी भर एक मित्रता की बात की। वो बहुत मिन्नत पे माना। हम आज भी दोस्त हैं पर एक सवाल हैं क्या यही प्यार हैं ?