Kumar Ritu Raj

Others

4.0  

Kumar Ritu Raj

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फिर भी मैं पराई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ

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ये बर्तन तो गंदी पारी हुई हैं! खाना भी अब-तक नहीं बना! अब-तक कर क्या रही हो सुबह से एक भी काम तुमसे नहीं होता... अचानक एक जोर की आवाज रूपम के कानों में पडी, पर वह कुछ कह ना सकी। बस सहना ही तो उसे आता था, बस सहना!


पिछले आठ साल से अपने ससुराल में रह रही रूपम को अब बस इन्हीं कामों के लिए जाना जाता हैं। सुबह की किरणों से तो वह हर बार जीत जाती थी पर कभी अपनी सास से जीत ना सकी। ऐसा नहीं उन्हें जीतने की इच्छा ना थी या वो कम करने में कमजोर थी। उसने तो हर बार सूरज को भी मात दी थी। उनको ऐसा लगता था मानो सूरज से जंग जितना बहुत आसान हो।


रूपम बचपन से ही सौतेली माता के साथ रह कई प्रकार के विडंबनाओं से लड़ चुकी थी। माँ के गुजर जाने के बाद मानो तकलीफों का एक बहुत बड़े पहाड़ को ढोने की जिम्मेदारी केवल रूपम की ही रह गई हो। कई बार माँ से सुन चुकी रूपम को लगता था, माँ झूठ बोल रही हैं की ये घर उनका नहीं हैं। रूपम के पिता ही तो बस रूपम की दुनिया हुआ करती थी। पिता कुछ इस तरह सरल स्वभाव के थे की, केवल एक बार ही माता के कहने पर रूपम की शादी कर डाली। पिताजी की लाडली को पता ना था की आगे का जीवन उसके लिए आसान ना होगा। उन्हें भी लगा सौतेली माँ से दूर रह शायद रूपम खुश रहेगी। पति भी इतने सीधे थे की हर वक्त दूसरे के कार्यों में ही अपना समय बिता देते थे।


प्रारंभ में दो - तीन सालों के बाद रूपम को लगने लगा मायका उनका घर नहीं था। पर वो मानती थी ससुराल ही उनका वास्तविक घर हैं। किसी कारणवश अचानक ही रूपम के ससुर जी का देहांत हो गया। अब मानो सब-कुछ बदल गया। पति का देर रात घर आना रूपम को अच्छा नहीं लगता था। रूपम का मानना था, माना काम कम करने से धन कम होगा पर ज्यादा धन होकर भी कुछ अधिक फ़ायदा नहीं हैं यदि हम खुशी से नहीं रह पा रहे हो। पर इन बातों से रूपम के पति पर कुछ खास असर नहीं होता था।


दस साल बीत चुके थे। अब तो रूपम को दिनों का पता भी नहीं चल पा रहा हैं। उन्हें तो बस कभी - कभी दिन ही सूरज दिखाई देती हैं। तारीख में बस साल और माह याद रह पता हैं। आज रूपम की वर्ष गाँठ हैं पर रूपम को इसकी भनक भी नहीं है। बरामदा से कचरा उठा कर जब रूपम फेंकने जा रही थी तभी एक आवाज उनके कानों में पड़ी रूपा.. ओ रूपा... कहाँ हो जी... बस रूपम की आंख भर आई ये तो उनके पिताजी की आवाज थी । दौड़ कर रूपम पिता के गले लग गई । पिता ने कहा आज तो तेरी वर्ष गाँठ है और ये मैं कैसे भूल सकता हूं। बस फिर क्या था रूपम तो बस रोएं जा रही थी और सोच रही थी घर भी ह, पति भी हैं, सब-कुछ हैं मेरे पास फिर भी मैं पराई हूं।


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