Mukta Sahay

Tragedy

5.0  

Mukta Sahay

Tragedy

क्या ये प्यार है ....

क्या ये प्यार है ....

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हिमांशु ने आज फिर नताशा का परिचय अपने ऑफ़िस के दोस्त से ये बोल कर करवाया की यह उसकी पुरानी दोस्त है जो अचानक आज मॉल में मिल गई है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। महीना भर पहले भी ऐसा ही हुआ था सुबह पार्क में हिमांशु के पहचान की एक महिला मिली तो उसे भी बताया कि पार्क में अचानक ही उसकी पुरानी दोस्त नताशा मिल गई है सो उसके साथ थोड़ी बातें कर रहे है। पहले भी दो तीन मौक़ों पर उसे उसके सही पहचान से नहीं कराया है जबकि नताशा महिला होते हुए भी अपने पहचान वालों के बीच अपने बॉय-फ़्रेंड के रूप में करती है।

नताशा इस बात पर हिमांशु से बहुत नाराज़ थी। हिमांशु उसे मनाने की पूरी कोशिश कर रहा लेकिन वह कुछ सुनना नहीं चाह रही थी। वह शांत होने का नाम ही नहीं ले रही थी। हिमांशु के सारे प्रयास बेकार हो रहे थे।

नताशा और हिमांशु पिछले तीन साल से लिव-इन रिलेशन में थे। शुरुआत में तो हिमांशु उसे अपनी गर्ल-फ़्रेंड के तौर पर पहचान करवाता था। नताशा के साथ रहने के लिए उसने अपनी पत्नी को भी मुंबई नहीं लाया था,अपनी माँ के पास ही छोड़ आया था। एक दिन उसकी पत्नी का अचानक, बिना किसी सूचना के उसके ऑफ़िस में आ जाने के कारण उसके और नताशा के रिश्ते की बात खुल गई और फिर पत्नी से तलाक़ हो गया। इस वजह से हिमांशु के ऑफ़िस वालों को हिमांशु के शादी की बात पता हो गई थी। इसलिए अब समाज के डर से की लोग क्या कहेंगे नताशा को अचानक मिली पूरानी परिचित बताता है।

हिमांशु में आया ये बदलाव नताशा को बिलकुल भी मंज़ूर नहीं है। समाज की धारणाओं से अलग वह लिव-इन में हिमांशु के साथ रहती थी। उसे अपने इस रिश्ते से कोई शर्म नहीं थी और ना ही वह हिमांशु के साथ अपने लिव-इन की बात किसी से छुपाती थी।

नताशा ने हिमांशु से पूछा भी की वह उसे अचानक मिली पुरानी परिचित बताता है तो वह कुछ बोल ही नहीं पाया। इस पर नताशा ने उसे कहा तुम जैसे डरपोक लोग जो अपने निर्णय पर टिकते नहीं हैं उनके लिए कोई भी रिश्ता निभा पाना मुश्किल है। तुम्हें कभी घर वालों का डर रहेगा तो कभी ऑफ़िस वालों का और इस अनुसार अपने निर्णय एवं रिश्ते बदलते रहोगे। तुम्हारे इसी डर की वजह से तुम्हारी पत्नी मोहिता की ज़िन्दगी बिगड़ गई, तुम्हारी माँ को हमारे बारे में पता चल गया तो तुम सालों से अपनी अकेली बूढ़ी माँ से मिलने नहीं गए हो और अब मैं तुम्हारी अचानक मिली पूरानी परिचित हो गई हूँ। जब तुम में हमारे रिश्ते को बताने की हिम्मत नहीं है तो फिर मेरे साथ रहते ही क्यों हो, प्यार ढोंग क्यों करते हो। इस रिश्ते में तो तुम आज़ाद हो, जब भी तुम्हें बंधन लगे, हम अलग हो सकते है फिर भी क्यों ढो रहे हो। मैं अपने आत्मसम्मान से समझौता करके तुम्हारे जैसे डरपोक व्यक्ति के साथ नहीं रह सकती। तुम आज ही अपना सामान पैक कर लो और मेरे फ़्लैट को छोड़कर दूसरी जगह शिफ़्ट हो जाओ।

पीड़ा दोनो तरफ़ थी लेकिन हिमांशु के तो सर से छत और पाँव के नीचे की ज़मीन ही खिसक गई थी। अब वह अकेला था। माँ, पत्नी और गर्ल-फ़्रेंड सभी उससे नाता तोड़ चुके थे, उसके दब्बूपने की वजह से, उसके रिश्ते को सच्चाई से ना निभाने की वजह से।

इधर नताशा क्षुब्ध थी की इतने सालों से वह हिमांशु जैसे व्यक्ति के साथ रहती थी और उसे जी-जान से प्यार करती थी। उसे तभी हिमांशु का साथ छोड़ देना चाहिए था जब वह अपनी शादी के पहले, अपने और उसके बारे में अपनी माँ को नहीं बता पाया था। उनके रिश्ते को नाम नहीं दे पाया था।

सच में हिमांशु जैसे लोगों की कारण कितने ही रिश्ते टूट जाते हैं और कितनी जिंदगियाँ बिगड़ जाती हैं। प्रेम, प्यार जैसे ख़ुशनुमा जज़्बातों पर से भरोसा टूट जाता है। विश्वास जैसे मज़बूत भावनाएँ आहत होती है।


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