क्या संवेदनाएं भी दिखावा होती जा रही हैं!
क्या संवेदनाएं भी दिखावा होती जा रही हैं!


संवेदनाएं अब दिखावा होती जा रही हैं!
जी हां, बिल्कुल सही पढ़ा आपने, संवेदनाएं भी अब दिखावे के रूप में आने लगीं है वह भी बेहद निकटम सम्बन्धों में। विगत कुछ समय से फेसबुक पर आ रही पोस्ट देखकर तो यही लगता है। आज ही किसी सज्जन ने पोस्ट डाली " मेरी बेटी की चीखें सुनिए, डॉक्टरों की लापरवाही से जब मेरे दामाद की मौत हुई।"
यकीन जानिए, वीडियो से पहले इस पोस्ट को पढ़कर ही मैं सन्न रह गई... कैसे एक पिता अपनी बेटी के इस दारुण दुख का वीडियो डाल सकता है! संतान के दुख से बड़ा शायद ही कोई दुःख माता- पिता के लिए होता है। क्या यह अपना वीडियो ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने का प्रयास नहीं था या फिर अपनी बेटी की करुण चीखों का प्रदर्शन कर ज्यादा कमेंट्स बटोरने का एक तरीका... माफ़ कीजिए लेकिन इस तरह की पोस्ट देखकर मुझे केवल यह उनका अपनी पोस्ट्स का मार्केटिंग एजेंडा ही लगा। इलेक्ट्रिक शवदाह गृह में होती अंतिम संस्कार की प्रक्रिया, बिलखती बेटी को संभालते लोग.... मैं आगे देख ही नहीं सकी।
इसी तरह एक सज्जन ने अपने भाई की अंतिम यात्रा में कंधा देते हुए की तस्वीर, अंतिम संस्कार की तस्वीरें भी पोस्ट की थीं। हद तो यह थी कि धीरे- धीरे चिता में लगती आग की तस्वीरें, शव के हाथ से उठती लपटों की तस्वीरें भी पोस्ट की गई थीं।
कुछ लोगों को मैंने देखा कि अभी - अभी उनकी माता या पिता की मृत्यु हुई है लेकिन उनको रिश्तेदारों को फोन करने से भी पहले आंसू बहाते हुए शव के साथ सेल्फी लेनी याद आई जिसे उन्होंने बाक़ायदा स्टेटस पर भी अपलोड किया था। क्या दुख की इन घड़ियों में फ़ोटो खींचना, वीडियो बनाना याद रह जाता है?! न केवल याद रहता है बल्कि उनको सोशल मीडिया पर पोस्ट भी कर दिया जाता है।
फिर बताइये, क्यों इनकी पोस्ट्स को मार्केटिंग करना न समझा जाए। लोगों को सूचना देने का यह कोई तरीका नहीं होता, किसी को विलाप की वीडियो देखने में रुचि नहीं। यह वास्तविक जीवन है फ़िल्म नहीं, यहां इमोशनल सीन पोस्ट करने पर आपके प्रति वितृष्णा होगी कि आप कैसे निकटतम सम्बन्धी हैं। अपने दुख का प्रचार करने से दुख कम नहीं होगा। सूचना देने के लिए आप साधारण शब्दों में उनकी किसी तस्वीर के साथ भी पोस्ट कर सकते हैं लेकिन यह कैसा चलन अपना रहे हैं आप जहां आप अपने प्रिय की मृत्यु पर शोक मनाने की जगह स्टेटस अपडेट करने में रुचि दिखा रहे हैं,अपनी पोस्ट पर लाइक- कमेंट्स बढ़ाने की तरकीब लगा रहे हैं।
क्या इतने भौतिकतावादी हो गए हैं लोग कि संवेदनाओं को दिल में स्थान देने की जगह सोशल मीडिया पर अपडेट करने में रुचि दिखा रहे हैं!