क्या से क्या हो गया....!
क्या से क्या हो गया....!
रात जागते सोते करवटें बदलते बीती। के.के.समझ नहीं पा रहे थे कि उन्हें अब क्या करना चाहिए ? .....सुबह की फ्लाईट पकड़ कर चेन्नई से होकर पांडिचेरी पहुँचना चाहिए या अस्पताल में भर्ती कुमकुम को उसके भाग्य पर छोड़ देना चाहिए ! पिछले कुछ महीनों से कुमकुम ने तो उनको अपने जीवन से लगभग निकल ही दिया था। कुमकुम की दुनिया उसकी अपनी नौकरी और अपने बिछड़े हुए बेटे तक ही सिमट कर रह गई थी। के.के. उसकी ज़िंदगी के दृश्य पटल से गायब थे। .....कुछ मायनों में बेहद स्वार्थी भी हो चली थी कुमकुम। के.के.भी दुखी थे।...बल्कि यूं कहिए कि सीमाओं के पार जाकर दुखी। कोई भी बाप यह नहीं चाहेगा कि वह अपने बेटे की लाश का कंधा बने। लेकिन किस्मत ने ऐसा ही लिखा था। अब इस पीड़ा को तो जीवन भर लाद कर चलना होगा। लेकिन इस दुःख में, अवसाद में पड़कर अपने जीवन को समाप्त कर देना तो ठीक नहीं ? अंत में सुबह होते होते के.के. ने अपनी फ्लाईट की बुकिंग करवा ही ली। पांडिचेरी ...नीले समुंदर से अठखेलियाँ करता समुद्र। " स्काई हाई " हॉस्पिटल की बहु मंजिला इमारत के पांचवीं फ्लोर के कमरे से समुंदर की अठखेलियाँ दिखाई दे रही थीं। नर्स अभी - अभी मिसेज कुमकुम को मार्निंग फ्रेशनेस दे कर गई थी और अपने बेड का टेक लगाकर मिसेज कुमकुम दीवार पर लगी टी.वी. पर आ रहे बच्चों के लोकप्रिय शो " सोनपरी " को देख रही थीं।" गलती हो गई , सारी !" " गुड ! मैं जानती हूँ कि इस दुनिया में कितने ऐसे बच्चे हैं जो अपना जन्मदिन मना ही नहीं पाते ..सुनो..मुझ से एक वायदा करोगे ? "सोनपरी बोल रही थी -"क्या ऐसा हो सकता है कि तुम्हें ये जो इतना सारा गिफ्ट मिला है उनमें से कोई एक अपनी मर्जी का गिफ्ट अपनी बहन पिंकी को दे दो और कुछ उन बच्चों को जिनको उनकी जरूरत हो ...." कुमकुम भी लगभग एक शिशु का रूप ले चुकी थीं। डाक्टरों के अनुसार उनको इस बार "मैनिक डिप्रेशन का तेज़ अटैक हुआ था। डाक्टरों के अनुसार उनको " बाइपोलर सेकेण्ड " की स्टेज में एडमिट कराया गया था और " मूड स्टेवलाइजिंग " के लिए " लीथियम " नामक दवा दी गई थी जो बहुत कारगर हुई थी। अब वे लगभग सामान्य थीं लेकिन अभी उनको लगभग दो साल तक सतर्क रह कर दवाइयां लेनी होंगी। दरवाज़े पर आहट हुई और के.के. पुष्पगुच्छ के साथ हाज़िर थे। लपक कर उन्होंने कुमकुम को बाहों में भरकर प्यार किया।' मैं..मैं आ गया हूँ कुम्मो !" के.के.ने लाड़ दिखाते कहा। "हाँ, मैं जानती थी कि मेरा अपना अब है ही कौन ?" कुमकुम रुआंसी होकर बोलीं।
दोनों देर तक बातें करते रहे।
के.के.ने डा. अग्रवाल और अस्पताल के स्टाफ से बातें करके पता लगाने की कोशिश की कि कुमकुम को कब तक डिस्चार्ज करवाया जा सकेगा। पता चला कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो कल कुमकुम को अस्पताल से छुट्टी मिल जायेगी।
के.के. वापस घर आ गए। उनको कुमकुम से मिलकर खुशी हुई और उनसे ज्यादा कुमकुम खुश थी। जवानी का शारीरिक प्रेम और आलिंगन उतना ज्यादा आवश्यक नहीं होता जितना बुढ़ापे का प्रतीकात्मक प्रेम और साहचर्य। ..लेकिन कितने दम्पति इसे जानते और मानते या निभाते हैं ?
कुमकुम के बगैर घर कुछ अस्त व्यस्त सा लगा। लेकिन नौकर चाकर अपनी अपनी ड्यूटी पर पाबन्द थे इसलिए के.के. को कोई दिक्कत नहीं हुई। उन्होंने लंच लिया और बुक शेल्फ से एक किताब लेकर बेडरूम में बिस्तर पर लुढ़क गए।
यह पुस्तक 'शरद जोशी' की थी और उन्होंने जो राजनीतिक व्यंग्य लिखा था वह अद्भुत व्यंग्य था ...
" तीस साल का इतिहास साक्षी है कांग्रेस ने हमेशा संतुलन की नीति को बनाए रखा। ......जो कहा वो किया नहीं, जो किया वो बताया नहीं, जो बताया वह था नहीं...... जो था वह गलत था। अहिंसा की नीति पर विश्वास किया और उस नीति को संतुलित किया लाठी और गोली से। सत्य की नीति पर चली, पर सच बोलने वाले से सदा नाराज रही। पेड़ लगाने का आन्दोलन चलाया और ठेके देकर जंगल के जंगल साफ़ कर दिए। राहत दी मगर टैक्स बढ़ा दिए। शराब के ठेके दिए, दारु के कारखाने खुलवाए, पर नशाबंदी का समर्थन करती रही। हिंदी की हिमायती रही अंग्रेजी को चालू रखा। योजना बनायी तो लागू नहीं होने दी। लागू की तो रोक दिया। रोक दिया तो चालू नहीं की।" के.के. किताब के पन्नों में डूब से गए थे -" समस्याएं उठी तो कमीशन बैठे, रिपोर्ट आई तो पढ़ा नहीं। कांग्रेस का इतिहास निरंतर संतुलन का इतिहास है। समाजवाद की समर्थक रही, पर पूंजीवाद को शिकायत का मौका नहीं दिया। नारा दिया तो पूरा नहीं किया। प्राइवेट सेक्टर के खिलाफ पब्लिक सेक्टर को खड़ा किया, पब्लिक सेक्टर के खिलाफ प्राइवेट सेक्टर को। दोनों के बीच खुद खड़ी हो गई । तीस साल तक खड़ी रही। एक को बढ़ने नहीं दिया। दूसरे को घटने नहीं दिया। आत्मनिर्भरता पर जोर देते रहे, विदेशों से मदद मांगते रहे। ‘यूथ’ को बढ़ावा दिया, बुढ्ढो को टिकट दिया। जो जीता वह मुख्यमंत्री बना, जो हारा सो गवर्नर हो गया। जो केंद्र में बेकार था उसे राज्य में भेजा, जो राज्य में बेकार था उसे उसे केंद्र में ले आए। जो दोनों जगह बेकार थे उसे एम्बेसेडर बना दिया। वह देश का प्रतिनिधित्व करने लगा। एकता पर जोर दिया आपस में लड़ाते रहे।जातिवाद का विरोध किया, मगर वोट बैंक का हमेशा ख्याल रखा। प्रार्थनाएं सुनीं और भूल गए। आश्वासन दिए, पर निभाए नहीं। जिन्हें निभाया वे आश्वश्त नहीं हुए। मेहनत पर जोर दिया, अभिनंदन करवाते रहे। जनता की सुनते रहे अफसर की मानते रहे। शांति की अपील की, भाषण देते रहे। खुद कुछ किया नहीं दूसरे का होने नहीं दिया। संतुलन की इन्तहां यह हुई कि उत्तर में जोर था तब दक्षिण में कमजोर थे। दक्षिण में जीते तो उत्तर में हार गए। तीस साल तक पूरे, पूरे तीस साल तक, कांग्रेस एक सरकार नहीं, एक संतुलन का नाम था। संतुलन, तम्बू की तरह तनी रही , गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही.... बर्फ सी जमी रही पूरे तीस साल।" के.के.नींद के आगोश में आ चुके थे।
समय अपने पंखों पर सवार होकर विचरण कर रहा था। कहाँ तो कुमकुम और के.के. ने सपने देखे थे कि उनका प्रतिभावान बेटा मुम्बई की फिल्मों का हीरो बनकर उनका और परिवार का नाम रौशन करेगा और कहाँ वही प्रशांत अपनी कम उम्र में आत्महत्या करके ढेर सारे अनसुलझे सवाल छोड़ गया था। उसकी प्रेमिका या ये कहिए कि लिव इन रिलेशन शिप में रहने वाली कनिका उसके नाम का सिंदूर माथे पर लगाकर घूम रही थी और कहाँ मुम्बई के उसके दोस्त और फिल्मी प्रोडयूसर इन बीते दिनों में ड्रग्स और तमाम उलझन भरे मसलों को लेकर जांच में घिरे पड़े हैं।
के.के. हों, कनिका हो या फिर कुमकुम - सभी के मन में यही एक सवाल उठ रहा है कि ये क्या से क्या हो गया ?