क्या कहेंगे लोग..?
क्या कहेंगे लोग..?
"माँ स्कूल में क्रिकेट कोचिंग शुरू हो रहा है।"
"हाँ तो?"
"माँ मुझे भी क्रिकेट सीखना है।"
"इतने में दादीजी बोली...
"अरे, लड़की हो लड़कियों वाले काम करो, कहाँ जाओगी क्रिकेट व्रिकेट सीख कर? आखिर ससुराल जाकर तो बेलन ही पकड़ने हैं। लोग क्या कहेंगे?"
"माँ प्लीज़ माँ, आप तो समझो"
"ठीक है, पर एक बात का ध्यान रखना, समय से घर आ जाना। वरना तुम जानती हो अपने पापा और दादी का स्वभाव।"
"हाँ माँ हाँ, आप चिंता मत करो।"
रिया हर काम में अव्वल थी, हर काम मन लगा कर करती थी। क्रिकेट भी मन लगाकर सीखने लगी, उसका टीम में सेलेक्शन हो गया, उसे अपने स्कूल को नेशनल लेवल पर रिप्रेजेंट करना था। जब माँ से उसने यह बात कही तो माँ ने साफ मना कर दिया।
"देख बेटा, खेल सीखने तक ठीक था पर लड़की को अकेले शहर से बाहर भेजना तेरे पापा कभी नहीं मानेंगे। और लोग क्या कहेंगे? आज पहली बार लोगों की ख़ातिर रिया को अपने सपनों की आहुति देनी पड़ी।
बारहवीं की परीक्षा में 98% अंकों से पास होकर रिया ने अपनी स्कूल का ही नहीं अपने जिले का भी नाम रौशन किया। लेकिन जब उसने आगे पढ़ने कि इच्छा जताई तो पापा ने साफ मना कर दिया। "तेरा भाई कॉलेज नहीं गया और तुझे आगे पढ़ाई करने शहर जाना है? समाज हँसेगा हम पर, लोग क्या कहेंगे?"
रिया फिर जैसे तैसे माँ को समझाकर उसने एक प्राईवेट इंस्टीट्यूट से घर बैठकर अपने आगे की पढ़ाई पूरी करने का निर्णय लिया। माँ का काम में हाथ भी बंट जाता और पढ़ाई भी पूरी हुई।
"माँ देखो मेरे लिए जॉब का ऑफर आया है"
"ओहो! तो अब ये नौकरी करेगी? इसीलिए बार बार समझाती थी, लड़की को ज्यादा सिर पर मत चढ़ाओ पर मेरी इस घर में सुनता कौन है! कोई शर्म लाज है या नहीं? लोगों क्या कहेंगे? शादी के उम्र की हो गई है, हाथ पीले करा दो दिमाग अपने आप ठिकाने आ जायेगा।
माता पिता ने अच्छा लड़का देखकर उसकी शादी करा दी। शादी से पहले माँ ने उसे समझाया अब से वो घर तेरा अपना है, ऐसा कोई काम मत करना कि माँ बाप के संस्कारों पर ऊंगली उठे। कोई कुछ कह भी दे तो सुन लेना, सास ससुर की सेवा करना।
शुरुआत के कुछ दिनों तक ससुराल में सब उससे अच्छा व्यवहार करते थे। लेकिन जैसे जैसे समय बीतने लगा सास ससुर कभी लेने देन को लेकर तो कभी काम को लेकर हर बात पर उसे ताने कसते। लेकिन माँ के दिये हुए संस्कारों की वज़ह से वह चुप थी। किसी तरह दो साल बीत गये, फिर भी जब वो माँ नहीं बन पाई तो ससुराल वालों ने उसका जीना ही दुश्वार कर दिया।
उसने एक दिन अपने पति से कहा "हरीश अब बहुत हो गया, अब मुझसे और नहीं सहा जायेगा। आप अलग मकान लो वरना..।"
"वरना क्या रिया? तुम जानती हो मेरे भाई बहन अभी कंवारे हैं, ऐसे में घर से अलग होना लोग क्या कहेंगे?"
लोग क्या कहेंगे का डर रिया के दिलो दिमाग पर इस तरह हावी हो चुका था कि उसने चुप रहना ही बेहतर समझा। क्योंकि बचपन से वह यही सुनती आ रही थी लोग क्या कहेंगे।
एक दिन तो सास ने सारी हद पार कर दी। सिर्फ सब्जी में मीर्च ज्यादा क्या हुई हाथ उठा दिया रिया पर। रिया अब थक चुकी थी इन रोज रोज के झगड़ों से। उसके पास अब मायके लौट जाने के सिवाए कोई चारा नहीं था। अपना सामान पैक कर वह मायके लौट आई। माँ को अपनी आपबीती सुनाई।
माँ ने दादी और पापा से विचार विमर्श कर तय किया फिलहाल रिया गुस्से में है, दो दिन बाद समझा बुझाकर ससुराल छोड़ आयेंगे। 15-20 दिन बीत गये लेकिन रिया की हालत देख माँ की हिम्मत नहीं हुई उससे बात करे।
एक दिन दादी, माँ से कह रही थी "अब अपनी लाडली बेटी को समझा, घर में कुँवारे भाई बहन हैं, उनके बारे में सोचे। कितने दिन अब यहाँ पड़ी रहेगी?
यह घर अब उसके लिए पराया है। लोग क्या कहेंगे? थोड़ा समाज का तो लिहाज करो, बचपन से ही उसे इतनी छूट ना दी होती तो आज यह दिन न देखने पड़ते।"
रिया, माँ और दादी की बात सुन रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह किसके पास जाये! कोई नहीं यहाँ जो उसे समझ सके। कितना कुछ सहा उसने पर किसी को उसका दुख नजर नहीं आ रहा है। वह माँ नहीं बन सकती, तो यह क्या वह उसकी ग़लती है? और आखिरकार जिंदगी से निराश होकर उसने आत्महत्या कर ली।
पर लोग कहाँ चुप रहने वाले थे। कोई कहता "किसी के साथ चक्कर चल रहा था, तो कोई कहता ससुराल वालों और पिहर वालो दोनों का मान सम्मान मिट्टी में मिला दिया ऐसी औलाद से तो निःसंतान होना अच्छा।"
आज रिया की मौत का जिम्मेदार कौन है? रिया या ये समाज? जब तक बेटियों को पराया धन समझा जायेगा तब तक कुछ भी नहीं बदलेगा। बचपन से रिया के मन में "लोग क्या कहेंगे" का डर इस तरह से घर कर गया था कि बिना सोचे समझे आज उसने इतना बड़ा कदम उठाया। हम दुनिया के लिए नहीं अपने लिए जीते हैं, तो हमें अपनी जिंदगी अपने शर्तों पर जीनी चाहिए।
क्योंकि दोस्तों कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना, समाज का सबसे बडा रोग "क्या कहेंगे लोग?"
किसी ने ठीक ही कहा है "अगर लोग क्या सोचेंगे ये भी हम सोचेंगे तो लोग क्या सोचेंगे?"
