Kameshwari Karri

Classics

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Kameshwari Karri

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कुछ तो लोग कहेंगे

कुछ तो लोग कहेंगे

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पूजा गाना गुनगुनाते हुए घर में कदम रखती है। अपनी ही धुन में थी जैसे ही बैठक में कदम रखा देखा कुछ नए लोग बैठे हुए थे। उन्हें देख कर नमस्ते कर अपने कमरे में भाग गई।उसे समझ में नहीं आ रहा था कि ये लोग कौन हैं। उसने सोचा ख़ैर कोई भी हो मुझे उनसे क्या ?वह बाथरूम में हाथ पैर धोने गई तभी बाहर से माँ की आवाज़ सुनाई देती है कि पूजा मैंने तुम्हारे लिए कपड़े निकाल कर रख दिए 

हैं आते ही उन्हें पहन कर बाहर आ जाना। पूजा बाहर आकर देखती है कि माँ ने अपनी सुंदर सी साड़ी निकाल कर रखी है।वैसे तो इस साड़ी को कभी हाथ भी नहीं लगाने देती थी पर आज देखो वही साड़ी लाकर पहनने के लिए दे रही हैं। बात क्या है ? माँ आप तो आज बहुत खुश नज़र आ रही हैं। माँ ने कहा तू जल्दी से तैयार हो जा बाहर वे लोग कब से तेरा इंतज़ार कर रहे हैं। कौन हैं वे लोग माँ मेरा इंतज़ार क्यों कर रहे हैं? 

माँ ने कहा कि -वे लोग तुझे देखने आए हैं। बहुत अच्छे लोग हैं।एक लड़का और एक लड़की बस छोटा सा परिवार है।पिता अभी नौकरी कर रहे हैं। लड़की पढ रही है और लड़का बैंक में मैनेजर है और क्या चाहिए।तेरी मौसी ने भेजा है यह रिश्ता।उनके ही गाँव के लोग हैं।बहुत ही अच्छा और इज़्ज़तदार परिवार है। 

माँ अभी मेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है। एक साल के बाद मुझे डिग्री मिल जाएगी। मेरी पढ़ाई के बाद शादी करूँगी। माँ ने कहा कि देख ले रिश्ता जम गई तो होगी नहीं तो नहीं पर मेरे और तुम्हारे पिताजी की सोच है कि अगर घर बैठे बिठाए अच्छा रिश्ता आया है तो उसे क्यों छोड़ना। वे लोग भी पढ़े लिखे हैं।उनकी बेटी भी पढ रही है तो तुम्हारी पढ़ाई भी ज़रूर पूरी करवा देंगे। 

उन्हें पूजा बहुत पसंद आई फिर क्या पूजा की पढ़ाई और उसकी नाराज़गी को ताक पर रखकर बहुत सारा दहेज देकर पूजा का विवाह अरुण के साथ कर दिया गया और उसे ससुराल बिदा करके दोनों माता-पिता खुश थे कि उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को बहुत ही अच्छे लड़के के हाथ में सौंपा है। अब वह राज करेगी उस घर में क्यों कि अरुण के माता-पिता लखनऊ में रहते थे। अरुण भोपाल में रहता था। पूजा शादी के बाद लखनऊ गई रीति रिवाजों और रस्मों के बाद सास कमली पूजा और अरुण के साथ भोपाल आई उनकी गृहस्थी जमाने के लिए।

 दो तीन दिन साथ रहकर वापस चली गई क्योंकि वहाँ बिनब्याही लड़की आरोही और पति थे उनकी अपनी ज़िम्मेदारियाँ थीं। पूजा को जाते - जाते बताया कि अरुण की नाक पर ग़ुस्सा रहता है। उसे किसी तरह से हैंडल कर लिया तो बस। सासु माँ के जाते ही पूजा को लगा अब यह मेरे और मेरे पति का घर है किसी भी बात का डर नहीं यह सोचकर ही उसका रोम - रोम खिल उठा। 

शाम को पूजा ने अच्छे से खाना बनाया और खुद भी तैयार होकर अरुण का इंतज़ार करने लगी। अरुण आया और इसकी तरफ़ बिना देखे ही कमरे में चला गया और नहा धोकर रेडी होकर टेबल पर खाना खाने बैठा पर थाली में परोसे गए सब्ज़ी को देख उसका ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया और थाली उठाया और पटकते हुए चिल्लाया कि यह क्या सब्ज़ी है तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मुझे भिंडी से नफ़रत है और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कि घर में भिंडी लाने की और बनाने की। 

पूजा को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर उसकी क्या गलती है। उस रात अरुण ने उसकी खूब पिटाई की और कहा अगली बार याद रखना कि इस घर में मेरी पसंद का ही खाना बनेगा। पूजा के लिए यह एकदम नया था। माँ के घर में उसके साथ ऐसा व्यवहार कभी किसी ने भी नहीं किया था। अरुण के ऑफिस जाते ही उसने अपनी बैग पैक किया और माँ के घर चल दी क्योंकि उसके माँ पिताजी इंदौर में ही रहते थे। 

पूजा को सूटकेस के साथ देखते ही माता-पिता को लगा कुछ गड़बड़ है। पूजा अपने कमरे में चली जाती है। पूजा के पिता अजीत जी ने माँ से कहा देख सुनंदा किसी भी तरह से पूजा से पूछताछ कर और पता लगा कि बात क्या है ?

पास पड़ोस में पता चल गया तो बदनामी होगी अलग और इतना दहेज देकर ब्याह किया है उसका लोन ही अभी चुक्ता नहीं हुआ और यह वापस आ गई। माँ की भी यही सोच थी उन्होंने कहा आप चिंता मत कीजिए मैं उससे बात करूँगी। पूजा के कमरे में सुनंदा जाती है बहुत पूछने पर उसने बताया कि सिर्फ़ भिंडी की सब्ज़ी बनायी थी उसके लिए उसने मुझे पीटा।मैं अब नहीं जाऊँगी। यह क्या बात हुई ? मुझे सपना आएगा क्या उन्हें क्या पसंद है क्या नहीं।पहली बार पत्नी ने बनाया है तो खा लेते और बताते कि अगली बार से नहीं बनाना!!!! नहीं अपनी मर्ज़ी ही चलानी है मैं नहीं जाऊँगी कहे देती हूँ। कल से कॉलेज चली जाऊँगी और अपनी डिग्री पूरी करूँगी। माँ ने सुना बस कहा कुछ नहीं !!!!

खाने की टेबल पर माता-पिता दोनों ने उसे समझाया कि ऐसा नहीं होता है कभी-कभी कुछ लडके ग़ुस्से में ऐसा करते हैं बाद में देखना वह खुद आएगा तुम्हें ले जाने। कितने दिन मायके में रहेगी। दो दिन बाद से ही लोगों की बातें शुरू हो जाएँगी। 

इधर पिता ने अरुण को फ़ोन किया और उसकी सारी ग़लत इलज़ामों को सुना जो उसने उनकी बेटी पर लगाया फिर उससे माफ़ी भी माँग ली और दूसरे दिन उसे घर भी बुलाया ताकि पूजा को वह वापस ले जा सके। पास पड़ोस के लोग भी देख सकें कि दामाद आकर बेटी को अपने साथ लेकर जा रहे हैं। अरुण को आया देख पूजा बहुत खुश हो गई कि उसे उसकी फ़िक्र है।पूजा को नहीं मालूम था कि पिता ने उसे बुलाया था। पूजा पति के साथ अपने घर चली गई। माता-पिता ने चैन की साँस ली चलो आई बला टली। 

पूजा को गए हुए एक महीना हो गया था। माता-पिता ने सोचा हमारी सीख काम आ गई है।अब वह अरुण के साथ सेटिल हो गई है।’चलो देर आए दुरुस्त आए ‘। 

उन लोगों ने अभी पूरी तरह से साँस भी नहीं ली कि सुबह - सुबह मिसेज़ चौधरी जी की बुलंद आवाज़ सुनाई दी अरे ! पूजा तुम फिर से मायके आ गई ? ससुराल में दिल नहीं लग रहा है क्या ? 

सुनंदा और अजीत भागकर बाहर आए देखा पूजा फिर से अटैची लेकर अंदर आ रही थी। हे भगवान!! इस चौधरी की नज़र पड़ी मतलब पूरे मोहल्ले में ढिंढोरा पीट देगी। पूजा ने देखा माता-पिता दोनों ही खोए हुए थे।दोनों में से किसी ने भी उसका हाल-चाल जानने की कोशिश नहीं की।इसलिए वह सीधे अपने कमरे में गई और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया। दरवाज़े के बंद होने की आवाज़ से माता-पिता को होश आया। पूजा कहकर पुकारा और दरवाज़ा खोलने के लिए कहा पर पूजा ने कहा -मैं थोड़ी देर अकेले रहना चाहती हूँ। 

पूजा ने आँखें बंद कर ली और अपने पलंग पर लेट गई। उसके आँखों से आँसू झर-झर बह रहे थे। वह सोच रही थी कि उसकी क्या गलती है।उसे किस बात की सजा मिल रही है। उसे याद आया पिछली बार उसे माँ पिताजी के घर से अरुण खुद लेने आया था कितनी खुश थी।उसके दिल में अपने लिए परवाह देख कर पर नहीं घर पहुँच कर उसने पूजा को आड़े हाथों लिया कि तुम्हें जाना आता है पर लाने के लिए मुझे आना पड़ा शर्म भी महसूस नहीं हुई कि अपने पिता से फ़ोन करवाया उनकी नज़र में मुझे बुरा बनाना चाहती हो। अब ध्यान से सुनो इस घर में मैं जो चाहूँगा वही होगा। मेरे मन पसंद का खाना ही बनेगा। मेरे दोस्त घर आएँगे पर तुम उनके सामने नहीं आओगी। तुम आस पड़ोस के लोगों से बात नहीं करोगी याने घर से बाहर नहीं निकलोगी। माता-पिता से भी इतवार को मेरे सामने ही बात करोगी। यह सब मंज़ूर है तो यहाँ रहो वर्ना चलते बनो।

पूजा ने यह सब सुना !!उसे लगा कि अरुण तो उसे इंसान भी नहीं समझता है। माता-पिता के बारे में तो पता चल ही गया है कि उन्हें अपनी बेटी से ज़्यादा लोगों की चिंता है वे क्या कहेंगे इसकी चिंता है। ख़ैर पूजा ने सोच लिया है कि उसे अब यहाँ रहना है तो अरुण के हिसाब से ही रहना पड़ेगा। उसने अपने आप से समझौता कर लिया था। 

अरुण एक दिन अपने एक दोस्त को लेकर आया और पूजा से चाय बनाने को कहा और यह भी कहा कि तुम चाय लेकर नहीं आना मैं लेने आ जाऊँगा। चाय के बनते ही पूजा कप में डालकर बिस्कुट भी रखकर बैठ गई कि अरुण आकर ले जाएगा पाँच मिनट तक भी नहीं आया तो चाय ठंडी हो जाएगी सोचकर खुद ही ले जाती है।इसे देखते ही अरुण भागकर आता है और उसके हाथ से ट्रे ले लेता है और कहता है तुम अंदर जाओ। उसी समय न जाने उसके दोस्त ने कैसे उसे देख लिया और कहा पूजा!!!!

तुम यहाँ ? तुम अरुण की पत्नी हो। अब अरुण कुछ नहीं कह सका तब उसके दोस्त सुहास ने कहा अरुण यह मेरी मौसी की लड़की है।मैं शादी में नहीं आ सका। इसलिए मुझे नहीं मालूम कि यह तुम्हारी पत्नी है। बस दोनों ख़ूब बातें करने लगे यह बात अरुण को पसंद नहीं आई। सुहास के जाते ही उसने पूजा को ख़ूब मारा कि तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया कि तुम्हारा कोई रिश्तेदार मेरे बैंक में ही काम करता है। मुझे पता तो चले कि वह मेरे बारे में क्या कहते फिर रहा है।यह एक ही है या कोई और भी है। अब आए दिन सुहास का नाम लेकर ताने देने लगा। वह यह भूल गया कि सुहास से पूजा का भाई-बहन का रिश्ता है। व्यक्ति अपनी शंका और घमंड में अपना आपा खो बैठता है और रिश्तों की मर्यादा भी भूल जाता है। वही अरुण के साथ हुआ और पूजा के सब्र का बांध टूट गया। उसने अरुण के नाम से एक चिट्ठी लिखी कि मैं अपने माता-पिता के घर जा रही हूँ मुझे आपसे कोई रिश्ता नहीं रखना है। मुझे वापस लेने नहीं आना।मेरे पिता के बुलाने पर भी नहीं। पूजा अपनी अटैची लेकर मायके आ गई। उसे मालूम है कि माता-पिता तो साथ नहीं देंगे क्योंकि उन्हें लोग क्या कहेंगे इसकी फ़िक्र है न कि अपनी बेटी की। वे लोग भी कम से कम कोशिश तो कर सकते थे कि आख़िर मेरी परेशानी क्या है ? नहीं अब चाहे कुछ भी हो जाए !!!!!उसने फ़ैसला कर लिया कि अब वह किसी भी हालत में अरुण के पास नहीं जाएगी। 

सुबह - सुबह पूजा को अटैची के साथ देख माता-पिता आश्चर्य से रह गए थे। जब पूजा ने दरवाज़ा नहीं खोला तो आपस में ही बातें करने लगे कि अब न जाने क्या हो गया है वैसे इस बार पूजा थकी हुई सी लग रही थी। उसके कपड़े भी सिलवटों से भरे थे लगा कि कुछ अनहोनी ज़रूर हुई है।थोड़ी देर बाद पूजा ने दरवाज़ा खोला माँ के अंदर आते ही पूजा ने माँ को अपने शरीर के घाव दिखाए और कहा अरुण तो जानवर है माँ अब मैं वहाँ गई तो मेरी लाश ही आप लोगों के घर आएगी। माता-पिता ने उसकी हालत देख कर कुछ नहीं कहा। धीरे-धीरे पूजा की हालत सुधारने लगी। लोगों ने सोचा कि शायद पूजा माँ बनने वाली है इसलिए किसी ने भी नहीं पूछा कि पूजा कितने दिन रहेगी। एक दिन पूजा 

की मौसी आई। उसने माँ से कहा दीदी हमारे गाँव में शिप्रा नामक एक पतिव्रता है। उसका पति उसे इतना मारता पीटता था पर उसने उफ़ तक नहीं की और अब वह बिस्तर पर पड़ा है और शिप्रा उसकी सेवा में ही लगी है। नई ब्याहता लड़की को उससे मिलाकर उसका आशीर्वाद दिलाया तो उसकी ज़िंदगी में ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ आ जाएँगी। हम लोग पूजा को भी वहाँ ले जाएँगे और उनका आशीर्वाद दिलाएँगे। माँ तैयार हो गई और पूजा को मौसी के घर लेकर जाने की तैयारी करने लगी। पूजा ने नहीं पूछा कि हम क्यों जा रहे हैं क्योंकि उसे भी लगा कि चलो थोड़ा घूम आते हैं फिर कॉलेज खुल गए तो कहीं भी नहीं जा सकेगी। गाँव में पहुँच कर हाथ मुँह धोकर माँ और मौसी पूजा को लेकर शिप्रा के घर पहुँचे। शिप्रा बहुत सुंदर लग रही थी। उसे देखते ही पूजा को अपनापन महसूस हुआ। मौसी उससे अकेले में बात करती है। दोनों कमरे में आते हैं और मौसी बताती है कि उसके पति कैसे थे और उन्होंने कैसे सब कुछ सहा यह सब सुनकर पूजा को समझ में आ गया कि माँ और मौसी उसे यहाँ क्यों लाए हैं। दूसरों के सामने अपनों के लिए क्या कहें ? 

शिप्रा ने कहा मैं पूजा से अकेले में बात करना चाहती हूँ। पूजा अनमने मन से उनके पीछे जाती है। शिप्रा ने कहा पूजा अपनी पढ़ाई पूरी करके अपने पैरों पर खड़ी हो जा। मुझे मेरे माता-पिता का साथ नहीं मिला लोग क्या कहेंगे कहते हुए मुझे इस दरिंदे के घर में उसके साथ रहने के लिए मजबूर किया। आज भी मुझे चैन नहीं पलंग पर पड़े पड़े ही यह मुझे सताता है और कोई ऑप्शन न होने के कारण मैं यह सब सह रही हूँ। तुम पढ़ी लिखी हो घर वालों और लोगों की परवाह न करते हुए आगे की पढ़ाई पूरी करो अपनी ज़िंदगी बनाओ। लोगों का क्या है उनका काम ही है कहना। ऑल द बेस्ट पूजा कहते हुए उसकी आँखों में आँसू आ गए। उसका पति गंदी सी गाली देते हुए उसे बुलाता है। अपने चेहरे पर हँसी लाते हुए वह पति की सेवा करने चली जाती है। पूजा और माँ मौसी के घर आ जाते हैं। उन्होंने पूजा को चुप देखा तो लगा कि शिप्रा की बातों का असर हो रहा है दोनों खुश हो गए। 

दूसरे दिन माँ और पूजा इंदौर वापस आ जाते हैं। पूजा ने किसी से बात नहीं किया। दो दिन बाद पूजा अपना सामान पैक करने लगी माँ ने सोचा ससुराल जाने के लिए तैयार हो रही है दोनों बहुत खुश हो गए। पूजा ने माता-पिता के पैर छुए और कहा आप दोनों मुझे माफ़ कर दीजिए। मैं होस्टल में रहने जा रही हूँ। वहीं रहकर अपनी पढ़ाई पूरी करूँगी। जब आप लोगों को लगे कि लोगों की नहीं बल्कि अपनी बेटी की सलामती पर ध्यान देना है तो मुझे बुला लीजिए मैं आप लोगों के पास रहने आ जाऊँगी। 

माँ पापा लोग तो कुछ भी कह सकते हैं उनका काम ही कहना है। बच्चे तो माँ-बाप पर विश्वास करते हैं। उनका साथ चाहते हैं अगर आप लोग सहारा नहीं देंगे तो हम लड़कियों का सहारा कौन बनेगा। मैं शिप्रा बनकर नहीं जीना चाहती मुझे अपना रास्ता चुनना आता है मैं आज की लड़की हूँ। लोगों की प्रेरणा मैं शिप्रा बनकर नहीं बनना चाहती हूँ। पूजा अपना सामान लेकर टेक्सी में बैठकर चली जाती है। किसी के घर में रेडियो से किशोर जी आवाज़ में गाना बज रहा था “ कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना “

दोस्तों बेटियों का हमें सहारा बनना है न कि यह सोचना कि लोग क्या कहेंगे। 


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