कुछ पल अपने लिए
कुछ पल अपने लिए


शनिवार शाम से ही सुहानी अपना काम जल्दी जल्दी ख़तम कर रही थी, बहुत दिनों बाद उसने अपने लिए वक़्त निकालने की सोची थी। .वो मन ही मन में खुश हो रही थी की कल तो वो पुरानी साड़ी से बैग बनाएगी। उसे सिलाई कढ़ाई का बहुत शोक था परन्तु घर के काम काज से फुर्सत ही नहीं मिलती थी।इसलिए उसने अलमारी में पहले से ही पुरानी साड़ी निकाल कर रख दी और सोचा कल जल्दी से खाना बनाकर बैग बनाउंगी।.काम ख़तम कर के सोचते सोचते उसे कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला।
रविवार की सुबह नयी उमंग , चेहरे पर मुस्कान लिए सुहानी उठकर घर के काम करने लगी। इतनी देर में कुहू सुहानी की 10 साल की बेटी बोली ” मम्मी बहुत दिन बीत गए आपने डोसा नहीं बनाया “।आज बना दो ना। राजेश ने भी अपनी बेटी की हां में
हां मिलाई।सुहानी ने अलमारी की ओर देखा सोचा की 2घंटे ज्यादा ही तो लगेंगे पर कुहू खुश हो जाएगी दोपहर में बैग बना लूंगी। सुहानी को अलमारी को लगातार निहारते हुए देखकर राजेश ने चुटकी ली डोसे का बैटर अलमारी में है क्या। सुहानी मुस्कुरा कर रसोई में चली गई।लंच बनातेबनाते और खाते खाते 2 बज गए। रसोई समेटकर कुहू को सुलाकर जैसे ही सुहानी अलमारी की और बड़ी इतने में ही दरवाज़े की घंटी बजी ..देखा तो राजेश के दोस्त आलोक सपरिवार आए थे। बोझिल मन से उनका स्वागत किया और आवभगत में लग गयी हज़ारो सवाल दिमाग में चल रहे थे की क्या मैं अपने लिए कुछ फुर्सत के पल कभी निकाल पाऊँगी। क्या मैं अपने मन की बात व्यक्त कर पाऊँगी। लगता है सब को खुश कर ने के कारण मैं ही दुखी रह जाऊँगी।