Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Ruchi Singh

Drama Inspirational Children

4.6  

Ruchi Singh

Drama Inspirational Children

कशमकश!!

कशमकश!!

4 mins
71


"रीमा की माँ, रीमा के लिए बहुत अच्छा रिश्ता आया है। लड़का बहुत सुंदर सुशील पढ़ा लिखा है। और एक अच्छी जॉब में भी है।"

रीमा की मां- "पर रीमा के पिता जी रीमा की अभी उम्र ही कितनी हुई है"?

"रीमा की मां तुम चुप रहो, रीमा देखने में वैसे ही सामान्य सी लड़की है, और इतना अच्छा रिश्ता मिल रहा है। इसलिए रीमा के जल्दी हाथ पीले कर देंगे। रीमा की बड़ी बहनों की शादी में कितनी दिक्कतें आई थी? अमित के दादाजी भी यही चाहते हैं कि लड़की पसंद आए तो हम साल के अंदर ही शादी कर लेंगे।"


रीमा को देखने के लिए अमित के घर वाले आये । रीमा सीधी- सादी, सांवली सी लड़की उनको अपने अमित के लिए पसंद आई। और रीमा की ग्रेजुएशन के बाद ही उसकी शादी हो गई। उसके बाद उसने पोस्ट गेजुएगशन भी किया। और घर गृहस्थी मे उलझती चली गई।


शादी के बाद अमित जो कि बहुत ही नेक दिल इंसान थारीमा की जिंदगी में आया। रीमा बहुत ही खुश थी। जल्दी वह मां भी बन गई। जिंदगी की गाड़ी बहुत अच्छे से चल रही थी ।रीमा पति, बच्चे और सास की सेवा अच्छे से कर रही थी। उसका जीवन बहुत अच्छे से व्यतीत हो रहा था। कुछ साल में रीमा की सास का देहांत हो गया।


देहांत होने के एक साल बाद रीमा फिर से गर्भवती हुई। और उसको एक पुत्र की प्राप्ति हुई। जब छोटा बच्चा भी स्कूल जाने लगा तब उसने अपने कैरियर के बारे में सोचा। पर अमित उसे हमेशा मना करता था, कि क्या जरूरत है? मैं तो कमा रहा हूं, तुम घर में ही रहो, बच्चों की देखभाल करो। पर जिद्द करके रीमा ने जॉब शुरू कर दी।


छोटे बच्चों के साथ जॉब करना बड़ा मुश्किल हो रहा था। अमित भी बिल्कुल ध्यान नहीं दे पा रहा था। जैसे -तैसे रीमा काम चला रही थी। बच्चे भी छोटी क्लास में थे ,उनका पढ़ाई में कम नंबर आने लगे और पढ़ाई में मन भी कम लगाने लगे। तब एक दिन छोटे बेटे खुश को बहुत ही तेज बुखार आ गया और उसे टाइफाइड हो गया ।बुखार 104° से कम ही नहीं होता था, रात भर जागना पड़ रहा था। अगले दिन फिर ऑफिस जाकर ड्यूटी। एक-दो दिन तो मैनेज हो गया। बच्चा छोटे होने से हमेशा मां का साथ ही चाहता था । अमित की भी नई जॉब होने के कारण ऑफिस में ज्यादा ध्यान देना पड़ता था वह घर में बिल्कुल भी समय नहीं दे पा रहा था। मजबूरन बच्चों के खातिर रिमा को अपनी जॉब छोड़नी पड़ी।


अब रीमा अपने बच्चों में ही मगन रहने लगी। बच्चे मां का साथ पाकर बहुत खुश हुए। स्कूल से आते ही माँ से चिपक जाते और दिन भर अपने कामों में माँ को उलझाए रखते। धीरे-धीरे समय बीतता गया और बच्चे बड़े हो गए ।अब बच्चे अपनी पढ़ाई में व्यस्त रहने लगे। रीमा के पास बैठने का उनके पास टाइम ही नहीं था ।बड़ी बेटी रमा पढ़ने में ठीक थी, कहने पर वह पढ़ने बैठ जाती थी। पर बेटा खुश हमेशा शरारत करता रहता। पढ़ने को बोलो तो आनाकानी करता। जब रीमा उसे डांटे तो पढ़ना नहीं चाहता और जवाब देता। और रीमा उस से जब पूछे कि नहीं पढ़ोगे तो क्या करोगे? क्या बनोगे? तो वह जवाब देता कि आप क्या बन गई? रीमा टूट जाती।


अतीत मे चली गयी और सोचने लगी कि कभी इन्हीं बच्चों के खातिर नौकरी छोड़ दी,और आज वह बोल रहे हैं कि आप क्या बन गई इस पछतावे मे आंखों में आंसू लेकर दूसरे कमरे में चली गई और सोचने लगी

कि उम्र के इस पड़ाव में क्या उसे फिर से जॉब स्टार्ट करनी चाहिए? क्या उसे अच्छी नौकरी मिलेगी? क्या उसका शरीर और मन साथ देगा?


उसने बच्चों के खातिर जो किया वह सही था? तभी पीछे से आवाज आई मम्मी -मम्मी सुन क्यों नहीं रही हो?


खुश ने आकर रीमा को हिलाया आपका ध्यान कहां है? मेरे लिए कुछ बना दो भूख लगी है। रीमा फिर से अपने बच्चों के कामों में बिजी हो गई वह सब भूल गई।



इसी कशमकश में अधिकतर माँऐ जी रही हैं ,कि वह परिवार को प्राथमिकता दें या कैरियर को।

मेरी कहानी स्वरचित और मौलिक है।





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