कर्मों की सजा
कर्मों की सजा
फोन की घन्टी बहुत देर से बज रही थी। नेहा है कि कॉल उठा ही नहीं रही थी। सोचा सुबह का टाइम है बिजी होगी घर के कामों में।
करीब दो घंटे बाद नेहा का कॉल आया।
मैंने पूछा,- कैसे हैं घर में सब लोग... तुमने फ़ोन भी नहीं उठाया। इतना अनमनी क्यों दिखाई दे रही हो?
कुछ नहीं भाभी मेरी तो जिन्दगी नरक हो रखी है। एक चीज से पीछे छुड़ा नहीं पाती तब तक कुछ न कुछ दूसरा लग ही जाता है।
"अरे क्या हुआ, कुछ बताओगी भी" मैंने चिंता से पूछा...
कुछ नहीं भाभी मेरी सास को अपने कर्मों का फल मिल रहा है। उन्हें कोरोना हो गया है जो दूसरों को सताता है न, उन्हें ईश्वर ऐसा ही फल देता है। भगवान के यहां देर है, अंधेर नहीं।
वो बहुत ही ज्यादा परेशान थी, सो अनापशनाप कुछ भी बोले जा रही थी। नेहा मेरी एकलौती ननद है, जो बहुत ही नाज- नखरों से पली है। उसने मायके में कभी किसी परेशानी का सामना नहीं किया इसलिए कोई छोटी सी परेशानी भी उसे बहुत ही बेचैन कर देती है, जबकि उसे कई बार माँ और मैं दोनों ही समझा चुके हैं कि घर-गृहस्थी में ये सब लगा रहता है और हम औरतों को न चाहते हुए भी बहुत सारी बातों में परिवार के सुख-शांति बनी रहे ये सोच कर समझौता करना पड़ता है।
मैंने कहा," परेशान मत हो, सब ठीक हो जाएगा। बुजुर्ग हैं तुम उनका ध्यान रखना। गुजरा समय वापस नहीं आता है। उन्होंने जो किया सो किया लेकिन तुम अपने
अच्छे संस्कार क्यूं खराब कर रही हो। जानती हूँ तुम बहुत परेशान हो लेकिन मुझे ये भी पता है कि तुम एक अच्छी बहू हो और अच्छे से उनकी देखभाल करके उन्हें जल्द ही कोरोनामुक्त भी कर लोगी।
इतना कह कर मैंने फोन रख दिया।
नेहा जिसका दिन में कम से कम 4-5 बार अपनी मम्मी और 1-2 बार मेरे पास कॉल आता था अब वो इतना व्यस्त हो गई कि उसको बात करने का समय ही नहीं मिलता था। मेरा ही मन नहीं मानता था तो मैं ही दिन में एक बार कॉल करके हालचाल ले लिया करती थी।
थोड़े ही दिन में नेहा की मेहनत सफल हुई और उसकी सास की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आ गई। थोड़ा कमजोरी थी उन्हें लेकिन वैसे पूरी तरह ठीक थीं।
इधर कई दिन से मैं बहुत व्यस्त थी जब नेहा से कई दिन से बात नहीं हो पाई तो एक दिन उसने ही मुझे कॉल किया। कैसी हो भाभी? क्या कर रही थीं ? माँ फोन नहीं उठा रही हैं। सब ठीक तो है ना। एक ही साँस में उसने बहुत सी बातें पूछ ली।
अब मुझसे नहीं रहा गया, अब मैंने उसे जो बात बोली उसे सुनकर के फोन लिए स्तब्ध खड़ी रह गई। उसके मुंह से कोई शब्द न निकला ।
बोलो न भाभी," कुछ बताती क्यों नहीं ?
मुझे बहुत चिंता हो रही है।" बहुत ही उतावलेपन से पूछ रही थी वो..
मैंने कहा- "हाँ नेहा- सब ठीक है। बस तुम्हारे मम्मी-पापा और भइया को उनके कर्मों की सजा मिली है ।"