पहला प्यार
पहला प्यार
आज आठ महीने हो गए।
आठ महीने.. हाँ मैं सही सोच रहा हूँ। आज से आठ महीने पहले ही मैं इस अस्पताल में अपनी MBBS की इंटर्नशिप करने के लिए आया था।
ओ.पी.डी. का वो पहला दिन..
केबिन का दरवाजा खुलता है और एक हँसता-मुस्काता हुआ खूबसूरत-सा चेहरा हाथ में अपनी रिपोर्ट्स की फ़ाइल के साथ गुड मॉर्निंग डॉक्टर कहता हुआ प्रवेश करता है।
उम्र करीब 24-25 साल के लगभग, गेहुँआ रंग, बड़ी-बड़ी चमकीली आंखें, हल्के रंग के लिपस्टिक से सजे होंठ, पाँच फुट चार इंच के करीब लम्बी और सुडौल शरीर। जो पहली बार देखे तो कुछ पल के लिए अपलक देखता ही रहे। मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था।
जब उसने बोला, "हेलो डॉक्टर मैं रीमा"
तब जा कर मेरा ध्यान उस बेहद मनमोहक रूप से हटकर उसकी आवाज पर गया।
मैं एकदम चौक कर बोला, "गुड़ मॉर्निंग..प्लीज हैव अ सीट"
मैंने कहा, "हाँ तो बताइए"
वो बोली, " सर डॉक्टर मिश्रा जो अब रिटायर हो गए हैं, अभी तक वही मेरा केस देख रहे थे, लेकिन आज ही पता चला कि अब आप उनकी जगह आ गए हैं। ये मेरी रिपोर्ट्स हैं। मैं मंथली विज़िट के लिए आई हूँ।
इतनी खूबसूरत और विश्वास से परिपूर्ण लड़की को देखकर मुझे एक बार को विश्वास करना मुश्किल हो रहा था कि ये रिपोर्ट्स इसी की हैं, परन्तु लड़की और रिपोर्ट्स दोनों ही मेरे सामने थीं। रीमा को ब्लड कैंसर था।
मुझे यह जान कर बहुत बुरा महसूस हो रहा था। फिर मैंने उसको उसकी रिपोर्ट्स के हिसाब से टेस्ट और दवाइयाँ लिख कर दे दीं और वो मुझे धन्यवाद कहती हुई चली गयी। दिन भर में मैंने कई मरीज देखे लेकिन रीमा का चेहरा मेरी आँखों के सामने से हट ही नहीं रहा था।
अब हर महीने रीमा का आना होता और मुझे लगता कि हम लोग जो इलाज कर रहे हैं उससे कहीं ज्यादा उसे उसका जीवन के प्रति सकारात्मक पहलू जीने में सहायता कर रहा है। अब वो भी मुझे में कुछ दिलचस्पी लेने लगी है। वो मुझे बिना काम के भी फ़ोन करके अपना हाल बताने लगी है। पहले मुझे उसका इंतजार महीने में एक बार रहता था, लेकिन अब कभी उसके कॉल पर आवाज सुनकर अच्छा लगता था तो कभी व्हाट्सएप के मैसेज देख कर।
बिना कहे भी हम दोनों एक दूसरे को बेहद पसंद करने लगे थे। सब कुछ बहुत ठीक से चल रहा था, तभी पता चला देश में कोरोना वायरस से कर्नाटक में एक मरीज की मृत्यु हो गयी है और धीरे-धीरे पूरे देश में लोकडौन लगाया जा
रहा है। अब मेरे लिए रीमा को हॉस्पिटल में बुला कर चेकअप करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। मैंने उसे कुछ और बेहतर दवाइयां भेज दी और इम्युनिटी बढ़ाने की दवाएं भी दी।
अब हम दोनों मिल नहीं पा रहे थे लेकिन फोन पर हमारी बातें पहले से ज्यादा बढ़ गईं थी। वो कभी किसी वजह से फोन नहीं उठा पाती तो लगता न जाने क्या हो गया है.. जब तक उससे बात न हो जाती किसी काम मे मन नहीं लगता था।
आज अचानक उसी के फोन के रिंग आने पर मैं बोला, " हाँ रीमा बोलो, कैसी हो"
उधर से किसी जेंट्स का स्वर सुनाई दिया..
"डॉक्टर मैं रीमा नहीं, उसका पापा बोल रहा हूँ।"
इतना सुनकर मैं तो गहरे सोच में पड़ गया, ऐसा लगा मेरे पाँव के नीचे से जमीन खिसक गई हो। अगले ही पल अपनेआप को सम्भाल कर बोला, " हाँ अंकल बताइए, सब ठीक तो है।"
उधर से आवाज आई, " नहीं डॉक्टर साब रीमा की तबीयत बहुत खराब हो रही है , लगता है उसे एडमिट करना पड़ेगा।"
मैं सुनकर बहुत परेशान हो गया लेकिन खुद को सामान्य रख कर बोला, ठीक है अंकल आप चिंता न करो, उसे लेकर आ जाइये.. मैं एडमिट करने का इंतजाम करवाता हूँ।
रीमा की हालत देखते हुए उसे ICU में एडमिट किया गया। ट्रीटमेंट और दवाइयां देने के बाद उसकी हालत में कुछ सुधार आया। अभी तो तीन दिन में थोड़ा ठीक हो पाई थी कि तभी अचानक से उसे सूखी खाँसी और सांस लेने में परेशानी होने लगी। सैंपल लिया गया तो उसकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आयी।
ब्लड कैंसर की वजह से उसकी इम्यूनिटी बहुत कम हो चुकी थी तो वो यहीं हॉस्पिटल में किसी वजह से संक्रमित हो गई।
अब मैं दिन -रात हॉस्पिटल में ही रहता था। रीमा को वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया। मुझसे उसकी हालत देखी नहीं जा रही है। अब न वो मुझे देख रही है, न हँस कर बात कर रही है।
मेरा दिल उसकी हालत देख कर बहुत बेचैन हो रहा है।
नर्स बोली, "सर आप तीन दिन से सोए भी नहीं हैं, आप थोड़ा आराम कर लीजिए, मैं यहाँ हूँ। उसके बार-बार आग्रह करने पर मैं कुछ देर के लिए वहाँ से चल गया। अभी पन्द्रह मिनट ही हुए थे कि नर्स दौड़ कर आई और बोली, " सर पेशेंट की हालत खराब हो रही है। मैं भाग कर गया, रीमा ने मुझे आँख खोल कर देखा और फिर हमेशा के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं।
आज रीमा के बगैर मुझे पूरा एक महीना हो गया है। उसके साथ बिताई अनकहे पहले प्यार की स्मृति मेरे हृदय में जीवन भर रहेगी।