मातृप्रेम
मातृप्रेम
जमाना चाहे जितना भी बदल जाए, चाहे हम कितने भी आधुनिक बन जाए लेकिन यदि हमारे संस्कार पौराणिक है तो आज भी राम राज्य की स्थापना की कल्पना करना संभव है। आज भी परिवारों में मातृ प्रेम, पितृ प्रेम और भ्रातृ प्रेम देखने को मिलता है। ये एक ऐसी ही मातृभक्त की कहानी है।
सरला एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका हैं, किस्मत की बात है कि 19 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही उन्हें ये नौकरी मिल गई । उनके पिता मामूली मुनीम थे जिनकी तनख्वाह से घर में पाँच बच्चों का गुजारा होना बहुत ही मुश्किल था। लेकिन सरला के नौकरी लगते ही उन्हें बहुत बड़ा सहारा मिला | अब सरला भी घर की जिम्मेदारियों में हाथ बंटाने लगी थी। पहले खुशी-खुशी और फिर मजबूरी में। 1 बड़े भाई की शादी हुई परिवार और बड़ा हो गया अब उससे छोटी दो बहनों की शादी भी पिता सरला के भरोसे हो कर ही चुके थे लेकिन सरला की शादी के विषय मे कभी नहीं सोचते.. क्यों कि वो जानते थे कि सरला के जाते ही उनके परिवार का पालन पोषण बहुत मुश्किल हो जाएगा।
छोटी-सी उम्र में जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते सरला अब अन्दर से टूटने लगी थी। एक दिन अचानक उसकी राहुल से मुलाकात हुई और उसने उससे शादी का इरादा बना लिया। जैसे ही पिता ने उसका फैसला सुना उनके पाँव के नीचे से जमीन खिसक गई। परन्तु सरला अपने फैसले पर अडिग रही|
अब वो राहुल के साथ अपनी जिन्दगी अच्छे से बिता रही थी।दो प्यारे-प्यारे बच्चों की माँ बन चुकी थी। जिम्मेदारी और नौकरी की वजह से अपना ध्यान न रख पाने के कारण अब सरला अक्सर बीमार रहने लगी थीं। बमुश्किल घर का काम हो पाता था | धीरे-धीरे बच्चे बड़े होने लगे। राहुल की पोस्टिंग बाहर होने के कारण सरला का सहारा बच्चे की बने हुए थे। बेटी हिना घर का पूरा काम करके माँ की देखभाल करती थी। बेटा सूरज बाहर के सारे काम सम्भालता था | इन सब के रहते बच्चों का पढ़ाई से मन हटने लगा। सरला को सांस की बीमारी बढ़ने लगी। अब वो स्कूल किसी बस या टेम्पो से न जा पति थी। अब उसने कार खरीदने का फैसला किया और कार लेली।
बेटा सूरज माँ की बहुत फिक्र करता था उसने 12th के बाद पढाई छोड माँ के साथ उसके स्कूल जाने लगा।
स्टाफ के तमाम विरोध करने के बावजूद भी सूरज ने सरला के साथ स्कूल आना बन्द न किया | पहले सरला के पास ही बैठा रहता था लेकिन बाकी स्टाफ द्वारा विरोध करने पर अब सूरज स्कूल के बाहर पेड़ की छाया में बैठकर दिन बिताता और बीच-बीच में आकर माँ की तबियत पूछता, उसे खाना खिलाता और दवा देकर वापस अप्रैल मई की तेज धूप और गर्म लू में बाहर बैठकर माँ के स्कूल के बन्द होने का इंतजार करता।
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18-19 वर्ष के बच्चों के दिल में कितने सपने, कितने अरमान पलते हैं और वो उन्हें पूरा करने का प्रयास करते हैं लेकिन सूरज की जिन्दगी माँ से शुरू होती और उसी पर खत्म हो जाती थी।हालांकि सभी बच्चे अपनी माँ को प्यार करते हैं, लेकिन सूरज का सरला से बेइन्तहा प्यार था।
अब ड्राइवर नें भी आना बंद कर दिया तो सूरज ही कार ड्राइव करके माँ को स्कूल लेकर आने लगा | सरला की तबियत और ज्यादा खराब रहने लगी लेकिन सूरज की तीमारदारी में कोई कमी न आई। सब उसकी माँ के प्रति निष्ठा और त्याग देख कर अचम्भित रह जाते थे।
आज जब मैं स्कूल पहुंची तो देखा सरला की मेडिकल लीव की एप्लीकेशन टेबल पर रखीं थी। लगता है तबियत ज्यादा ही खराब हो गई है। सोचा आज बुधवार है, दो -तीन दिन आराम करके सोमवार तक स्कूल आ जायेगी ।
हम लोग भी अपने अपने स्कूल और घर के कामों में व्यस्त हो गये। आज सन्डे है मैं थोड़ा देर से सो कर उठी। लगभग सात बज रहा। चाय बनाने जा रही थी तभी मोबाइल की घन्टी बजी, देखा सूरज का फोन था। सोचा बोल रहा होगा कि मम्मी कुछ दिन और छुट्ट्टी पर रहेंगी । लेकिन जैसे ही फोन उठाया उधर से आवाज आई आन्टी मैं सूरज बोल रहा हूँ. मैंने कहा, " हाँ बेटा बोलो "
फिर तो उसने जो कहा वो सुनकर मुझे मेरे कानों पर बहुत देर तक विश्वास न हुआ।
सूरज(रोते हुए)- आन्टी मेरी माँ नहीं रहीं । आंटी वो हमें छोड़कर चली गई। आँटी वो आपके सबसे नजदीक थी तो सबसे पहले मैंने आपको ही खबर दी है।
वो लगातार रोये जा रहा था और मैं चाह कर भी न कुछ कर पा रही थी न कुछ बोल पा रही थी।
बड़ी मुश्किल से अपने को संभाल कर मैं उससे बस इतना ही पूछ पाई, "बेटा कब, कैसे..
अच्छा तुम अपना ख्याल रखो मैं अभी आती हूँ। कह कर मैंने फोन रखा और सरला के घर के लिए निकल पड़ी।
सरला तो चली गई, लेकिन जिस सूरज ने आज तक माँ के आंचल की छांव के अलावा दुनियां में कुछ देखा ही नहीं था। उस सूरज का अब क्या होगा | वो कैसे अपने आप को सम्भालेगा | ये सब सोच के मन व्यथित हो रहा था।
यही था सूरज का सरला के प्रति निश्चल मातृ प्रेम..