VEENU AHUJA

Drama Tragedy

4.3  

VEENU AHUJA

Drama Tragedy

क्रिसमस गिफ्ट

क्रिसमस गिफ्ट

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284


भाग - एक


सारांश : फिर ऊपर देखकर फुली हुयी नाक से वह बोला - ' सेंटा। तू तो आज उपहार बाँटता है। खुशियाँ देता है, यही है तेरा उपहार? मेरा इत्तू सा सुकून तुम्हें बरदाश्त नहीं। अब तू ही रात तक कुछ जुगाड़ करना।


उनींदी कसी बंद आंखों को गुडडू ने बड़ी ज़बरदस्ती खोला। चारों ओर गहरा मटमैला। गंदा अपारदर्शी पानी सा अंधकार फैला हुआ था। आधी खुली आंखों से उसने तिरपाल के छेदों से झांकते अंधेरे को छुआ और अंदाज़ा लगाया। सुबह के कोई छ : बजे होंगे। बाहर खड़े पेड़ पर बसेरा डाले चिड़ियों की कुछ धीमी चीं चीं रात्रि की निस्तब्धता को वाचाल कर रही थी। दिसम्बर का महीना। पच्चीस तारीख - ठंड और कोहरा दोनों बाहर अपने पैर फैलाए पसरे पड़े थे। उसने अपने शरीर को खींच कर अंगड़ाई ली तो कंबल के फटे हिस्से से उसका पैर बाहर चला गया। उसने पैर अंदर कर एक बार फिर अपने को उस कंबल में सिकोड़ लिया था। वह नित इस समय उठ कर नित क्रिया से निपट लेता है। बाद में लाइन में लगना उसे ज़रा नहीं सुहाता।

आज उसका उठने का मन नहीं कर रहा था, शरीर का पोर - पोर दर्द से कराह रहा था। लगातार साईकिल चलाने के कारण पिण्डलियां अभी भी अकड़ी हुई थीं।

गुडडू ने पुराने लखनऊ के जनाना पार्क की दीवार से सटाकर एक तिरपाल डाल रखा था जो उसे एक आंधी के दौरान सड़क पर पड़ा मिला था। इस तरह वह एक रैन बसेरा का मालिक था। वह इसमें किसी को न आने देता था। कभी कोई रिक्शा चलाने वाला या मोची ठंड का हवाला देकर उससे चिरौरी करता तो वह बड़ी मुश्किल से एक रात के लिए ठहराने की हामी भरता और साफ कह देता। ' कल से कहीं और इंतज़ाम कर ले। रात भर का बीस तीस रुपए किराया वसूल करना वह कभी न भूलता।


अचानक, अपने सारे रस को एकत्र कर उसने अपने शरीर को कंबल की गरमाहट से आज़ाद कर दिया। वह उठ खड़ा हुआ। उसने चार छ जगहों से फट चुके कंबल को बड़े करीने से तहाया, किसी सुंदरी के मनपसंद हीरे जड़ित हार की भाँति वहीं ईंटों के ढेर के पीछे उसे छिपा दिया।


रैन बसेरे ' के बाहर पैर रखते ही सन् सन् चलती हवा ने उसके पैरों को सुन्न कर दिया। वह धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए सार्वजनिक शौचालय की ओर बढ़ चला। अंधेरे में , उसने अंदाज़े से पैर से जैसे ही दरवाजा को धकेला तो बदबू से उसकी नाक सिकुड़ गयी आज भी संडास भरा हुआ था। उसने पायजामे से छोटा ' कई जगह से टेप से लिपटा मोबाइल निकाला और दूर उलटकर दरवाजे के ऊपर लाइट ऑन करने के बाद अपना काम निपटाया। नल खोला तो टप्प् - टप्प् आती पानी की आवाज़ ने मन के रहस्यमयी गलियारे के पट खोलना शुरू कर दिए । - - वह गांव में, खेतों में दौड़ता जा रहा था। बप्पा उसे पकड़ने की खातिर बचुआ - बचुआ कहकर पुकार रहे थे। वह गिर जाता है दूर से अम्मा देखकर ज़ोर से आवाज़ लगाती है- धीरे धीरे ।

वह शौचालय से बाहर आ जाता है । रात ने अभी भी अपनी काली चादर से सबको ढक रखा है मानो वह सारे जगत को ठंड से बचाना चाहती हो। ठंडी हवा रुक रुक कर चल रही है । एक झोंका लगते ही उसे छींक आ जाती है - आक्क झी ' उधर बायीं ओर से दूर कुत्तों के मूँकने की तेज आवाज़ गूँज उठती है - - - गुडडू ने आगे बढ़कर दायीं तरफ़ देखा ' उसकी आँखें खुशी से चमक उठी - - - दूर गली में कहीं रात में जले अलाव के निशान अभी बाकी थे। गरमी की आस ने उसके शरीर में स्फूर्ति का संचार कर दिया। वह तेज़ डग भरता हुआ वहाँ जा पहुंचा। थोड़ी हवा देने पर अंगारे शेर की आँख की भाँति चमक उठे। गरमाहट ने उसको एक बार फिर अपनी अम्मा की गोद की याद दिला दी -  - किस तरह अम्मा उसके सोने से पहने चारपाई पर खुद लेट जाती ताकि उसका बिस्तर गर्म हो जाए, जब वह पहुंचता तो अम्मा को उठने ही नहीं देता था। माँ के गले में झूलकर अपने दोनों पैरों को मां के मोटे पेट पर रख कर गहरी नींद में सो जाता था।


धीरे- धीरे धुंध छट रही थी, सूर्य की किरणों ने सर्वत्र सुनहलापन बिखेरना शुरू कर दिया था। वह अपने रैन बसेरे ' की ओर बढ़ चला  - - - पर यह क्या ?? उधर से कुत्तों के भौंकने लड़ने की तेज़ आवाज़े आ रही थी। वह दौड़ा, रुका - वहाँ ऐसा कुछ नहीं। जिसके लिए उसे गम हो पर शायद कुछ था जो उसके लिए बहुत मूल्यवान था, वह मंथर गति से बढ़ चला।

' रैनबसेरे ' के अंदर का दृश्य देख वह भौचक खड़ा रह गया, ईटों के पीछे से झांकते कंबल पर कुत्तों की नज़र पड़ गयी थी। आदतन, उन्होंने उसे खींचकर उसके सैकड़ों टुकड़े कर दिए थे जो वहाँ उसके रात के सुकून की कतरनों के रूप में जहाँ तहाँ फैले पड़े थे। । उसने टुकड़ों को एकत्र कर उसमें आग लगा दी और धम्म - से वहीं जमीं पर बैठ। कुत्तों को देखते हुए ज़ोर से चिल्लाया ' - ' हरामी साले ' -- ।

उसके जीवन की सारी पीड़ा, अकेलेपन की अकुलाहट, अनाथ होने की वेदना और जलती आग की तपिश सब ' पित्ती ' की भाँति उभरकर उसके चेहरे को लाल कर गयी। फिर ऊपर देखकर फुल हुयी नाक से वह बोला - - ' सेंटा' तू तो आज उपहार बाँटता है, खुशियाँ देता है यही है तेरा उपहार ??

मेरा इत्तू सा सुकून तुम्हें बरदाश्त नहीं, अब तू ही रात तक कुछ जुगाड़ करना। '


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