Gairo

Abstract Children Stories

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क्रिड़ा कारणी

क्रिड़ा कारणी

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अविरल, नटखट पवन, बाल-क्रिड़ा से भरी, जब गृह की छाजन में बसे, छोटे-रुचिर बागीचे जिसे बड़े प्यार व दुलार से बनाया है, के पौधों के पत्तों को छेड़ कर निकल जाती है तब दिन के घटनाचक्र की गतिविधियाँ प्रारंभ हो जाती हैं। इसके फलस्वरुप टहनियों और पत्तों में मची सरसराहट ऐसा प्रतीत कराती हैं मानो हवा से हुई गुदगुदाहट पर ये दोनों खीसें पोर रहें हों। वायू पलट कर बार बार वापस आती है, अठखेलियाँ करने को, और देखती है कि कुछ लजीले पुष्प डालियों के जालीनुमा चँदवे में लुके-छुपे हुए हैं। बड़ी शरारत से पवन टहनियों के आस-पास डोलते हुए वह अपने हलके हिलोरों से शर्माए हुए पलाशों को डालियों के भीतर से उजागर करती है। उन तरुण सुमनों की भीमी-मधुर सुगंध अपने उर्मिल आंचल में समेटे अब वह आगे चल पड़ती है और वह प्रशाखाएं, मंजरियाँ, पत्तियाँ, व पुष्प हँसी भरी खिझाहट से आपस कुछ कुड़बुड़ाने लग जाते हैं।

वहीं गली के छोर से सटी, छोटी-जर्जर सी, चाय-बिस्कुट-बीड़ी-तंबाख़ू की टपरी पर सुबह की पहली चाय उबालते हुए बूढ़े लखन काका के नथूनों के भीतर, जब हमारी चंचल हवा उन कुसुमों से ठगी हुई सुवास मंदतः डालती है तो प्राचीन से दिखने वाले काका को याद आता है कि “अरे! चाय में इलाइची भी डालनी थी”। तत्पशच्यात भोर के वातावरण में नहाई हुई पवन आगे की ओर प्रस्थान करती है।

उसकी निरंतर निरीक्षण करती दृष्टि एक पुशतैनी घर पर पढ़ती है जिसके भवन के आगे, पेड़-पौधों की घेराबंदी में एक बड़ा बरामदा था जिसके मध्य में, मिट्टी से भरे ईंटों के मंच पर सजा हुआ था रामा तुल्सी का रमणिक पौधा जिसके ईर्ध-गिर्ध परिक्रमा करती सुशीला चाची, अब उनके सूर्य देवता को जल चढाने के लिए ततपर थीं। किंतु एक भटकता मेघ न जाने कहाँ से रवि के दर्शन को ढक लेता है और अपने गीले बालों पर सांफ़ा लपटे हुए वह प्रौढ़ महीला बड़ी बेचैनी से उसके छंटने की प्रतीक्षा करने लगती है।

उतसाहीत वायु तीव्र जोश से ऊधर्व दिशा में उड़ान भरती है और उस सुस्त, अनासक्त मेघ को आगे ढकेल देती है और फिर उसी गर्मजोशी व तीव्रता के साथ रश्मिरथी बन कर घर के आंगन में खड़ी सत्री के प्रतिक्रीया देखने वापस आ जाती है। दिनकर की किरणों की आभा यकायक जब सुशीला चाची के मुखमंडल पर पड़ती हैं तो उस आशिर्वाद रुपि दर्शन से उनकी बाछें खिल जाती हैं। इस दृष्य का समावेश, उस रोज़ की अन्य कई, असंख्य घटनाओं के साथ, अपने लीलाकोष में किए हमारी लीलायुक्त पवन और भी कई, नाना प्रकार की, क्रिड़ाएं करने को आगे बढ़ चलती है।


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