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Rajeshwar Mandal

Comedy

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Rajeshwar Mandal

Comedy

कनबाली

कनबाली

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जिस दिन से शर्मा जी के यहां से शादी का कार्ड मिला है उसी दिन से घर में जिधर देखिए उधर कपड़ों का अंबार लगा हुआ है। श्रीमती जी के कपड़े और गहनों का ट्रायल शुरू हो मया है। कभी लाल कभी नीला कभी मैरुन तो कभी आसमानी रंग का साड़ी। आइने में एक एक घंटा तक खुद को निहारती है। फिर झल्ला कर हमको सुनाती है एक भी ढंग का कपड़ा नहीं है।


पिछले ही सप्ताह पंद्रह साड़ी ड्राई क्लीनर्स से लाये थे धुलवा कर । ट्रायल में सबका क्रीच तहस नहस हो गया है। आफिस से आने के बाद बिन पूछे मेरा पहला काम होता है सब कपड़ों को फिर से बढ़िया से मोड़कर आलमारी में रखना।आज शाम में रिसेप्शन पार्टी है। भोरे से फिर आलमारी का सब सामान इधर-उधर कर बैठी है।


"ऐ जी हमारा कनबाली (ईयर रींग) नहीं मिल रहा है थोड़ा खोजिए तो। हम आलमारी के लाॅकर से एक डब्बा निकाल कर दिए ।"

" ये क्या है एक दर्जन। खोजेगी तब न मिलेगा।"

"अरे ये नहीं । आमेजन से जो आर्डर पर मंगाये थे वो वाला।"

"हमको क्या पता कब क्या मंगायी हो ।"

"हां कैसे पता रहेगा । आफिस से फुर्सत मिले तब तो। आप ही के न आफिस में काम करते है झाजी सीखिए कुछ उनसे । उनके मैडम के किस हाथ में कितना चूड़ी है किस किस रंग का है सब बता देंगे। घर परिवार पर ध्यान रहे तब तो। मेरा तो किस्मत ही.......?"

"थोड़ा अपना आफिस के ड्रावर में देख आइये तो गलती से पेन वेन के साथ चला गया हो।"

"भोरे भोरे स्कुटर से आफिस । जी नहीं यहां भी नहीं है।"

"तो गया कहां ? अच्छा ! हमको याद आया वैलेंटाइन डे के दिन आप तीन चार घंटा गायब थे घर से, कहीं उसी चुड़ैल को तो नहीं गिफ्ट कर आये। इतना ही शौक है गिफ्ट करने का तो ख़ुद खरीद कर दीजिए समझे ।"

"क्या बोले जा रही है हमको तो ये भी पता नहीं है कौन कनबाली खोज रही हो। एक दर्जन तो है डिब्बा में पहन न लो कोई।"

"अरे वो बहुत बढ़िया था।"

"कितना का था ?"

"है तो डेढ सौ रुपए का ही मगर बहुत सुंदर है।"

"डेढ सौ में कौन हीरा जवाहरत मिलता है जो एतना उथल पुथल मचा रखी हो घर में।"

"अरे पीतल का ही है पर सोना का पानी चढ़ा हुआ है। एकदम से सोने जैसा लगता है।"

"ऐ जी थोड़ा देख आइये तो। कहीं आप उसी को तो नहीं दे आये।"


अब हमारा भी मन झल्ला गया था और गुस्सा में मुंह से निकल गया "पीतल का नहीं पहनती हैं वो ।"


"हूं.... पीतल का नहीं पहनती हैं। आखिर सच मुंह से बाहर आ ही गया। आखिर पन्द्रह तारीख आते आते कैसे सब पैसा खतम हो जाता है। अब समझ में आया।"


चुप रहने में ही भलाई दिखी । हम चुपचाप मोबाइल देखने लगे।


"छोड़िए मिल गया। यहीं बेड पर तो था। कैसे खोजते हैं आप। एक महीना से आपको बोल रहे हैं चश्मा बना लीजिए पर मेरा सुनता कौन है।"

"चलिए चलिए देरी हो रहा है।"

"हम बोले एनिवर्सरी में जो आसमानी रंग का शर्ट खरीदे थे बीग बाजार से वो पहन ले क्या ?"

"बुढ़ापे में ज्यादा शौक मत कीजिए। जो पहने है ठीक है।"

हम भी गंजा माथा में दू बुंद क्यो कार्पीन तेल लगाये और मुंह में स्नो पाउडर घस के चल दिए ।


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