कितने पट्टे डालूँ
कितने पट्टे डालूँ
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दौड़ती भागती मैं आफिस के गेट पर पहुँची और गले में टगें ऐक्सेस कार्ड को ऑफ़िस के दरवाज़े पर लगाने की कोशिश करी तो उसका पट्टा छोटा लगा।नजरें नीचे करी तो पता लगा ये तो मेरे मंगलसूत्र के साथ उलझा बैठा है।किसी तरह मैंने कार्ड को मशीन तक पहुंचाया और ऑफ़िस के अंदर दाख़िल हुई।जल्दी जल्दी क़दम बढ़ती और लोगों का अभिवादन करती अपनी जगह पर आ कर धम्म से बैठ गई बैग किनारेरखते हुए मेरे हाथ फिर अपने एक्सेस काकार्ड पर पहुँच गए।
नीचे देखा तो पाया मेरे गले में कई तरह के पट्टे पड़े थे।अब मैं धीरे से मुस्कराई कार्ड और मंगलसूत्र को अलग करने लगीअभी मैं अपने ऑफ़िस का पट्टा और विवाह के पट्टों को सुलझाने में फँसी थी कि समाज का पट्टा जो मेरे गले में था आहिस्ते से सरक गया। फटाफट मैंने अपने दुपट्टे को संभाला और फिर जुट गई कार्ड और मंगलसूत्र को सुलझाने में।
मैंने ये अनुभव किया कि हम महिलाएं कितने तरह के पट्टे अपने गले में डाले रहती हैं जो हर पल हमें हमारी ज़िम्मेदारियों का आहसास कराता है ।सबसे पहले आता है सामाजिक पट्टा यानी दुपट्टा, फिर व्यवहारिकताका पट्टा यानी पर्स की डोरी इसके बाद आता है स्कूल ,कॉलेज या ऑफ़िस का पट्टा यानी पहचान पत्र आई॰ डी॰ कार्ड और विवाहिता होने पर विवाह का पट्टा यानी मंगलसूत्र ।
इन पट्टों को बीच उलझी मैं कभी इनमें समाहित सुंदरता को निहारती हूँ तो कई बार इनके बंधन पीछे खींच लेते है और आगे नही बढ़ने देते।इन पट्टों के बीच कुछ पट्टे जो छूट गए हैं उन्हें भी जोड़ कर एक बार विश्लेषण ज़रूर करें यहाँ मैं ये कहना चाहूँगी की हम महिलाएँ इन सारी जिम्मेदारीयों को बख़ूबी पूर्ण करती हुई आगे बढ़ती है ये सारी जिम्मेदारियाँ कई चुनौतियों को साथ लाती है और उस समय एक महिला को दूसरी महिला के सहयोग की ज़रूरत होती है ।सहयोग करने वाली महिला कभी माँ, सासु माँ , सहेली , बहन, सहकर्मी या किसी और रूप में होती है ।