Arunima Thakur

Romance

4.7  

Arunima Thakur

Romance

किस्मत या मेहनत

किस्मत या मेहनत

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381



मैं अपनी ट्रेनिंग पूरी करके आज घर जा रहा हूँ। मन में राकेश रोशन वाला गाना गूँज रहा है। आज उनसे पहली मुलाकात होगी। वास्तव में आज मेरी उनसे कोई मुलाकात नहीं होनी है । पर मुझे घर पर बुलाया इसीलिए गया है कि मेरी शादी पक्की की जा सके । अरे भाई क्या अब भी शादी नहीं करूँगा । यूपीएससी का इम्तिहान पास करके इंडियन रेवेन्यू सर्विस में मेरी नौकरी लगी है। चाहता तो था कि और अच्छे नंबर आते तो शायद आईएएस बन सकता था। पर ठीक है यह भी तो कम नहीं है ।

             मालूम है नौंवी या दसवी में जब एक बार हम सब क्लास में बात कर रहे थे, तब वह अपनी सहेली से बोली थी,"तेरी शादी किसी टीचर से ही होगी। क्योंकि तेरे तो सभी रिश्तेदार टीचर ही है । मेरी माँ कहती हैं ऐसा होता है। देखो मेरी शादी तो किसी आईएस से ही होगी । क्योंकि मेरे सभी रिश्तेदार मौसा जी, मामा, नाना सभी आईएस है"। 


मैं सोच में पड़ गया, क्या सच में ऐसा होता होगा ? अगर ऐसा हुआ तो क्या मैं कभी कुछ नहीं बन पाऊँगा ? नहीं नहीं यह सब फालतू की बकवास है । ऐसा कुछ नहीं होता, पर आँखें एक छोटा सा ख़्वाब देखने लग गयी कि अगर मैं आईएस बन जाता हूँ तो शायद उससे शादी कर पाऊँगा। 


             उससे किससे ? अरे वही जो क्लास में बता रही थी कि उसके सभी रिश्तेदार आईएस है । वैसे वह थी भी बहुत ही खूबसूरत। वह कहते हैं ना खूबसूरत तो थी ही शायद अमीर होने के कारण उसमें नजाकत भी बहुत थी । दिल की अच्छी भी थी। वैसे बचपन में सभी दिल के अच्छे होते हैं । मैं एक साधारण सा लड़का था और वह चाँद सी थी। मैं उसे निहारता रहता था पर पाने की ख्वाहिश नहीं कर सकता था । वैसे भी वह सिर्फ मेरा ही ख़्वाब नहीं, पूरे क्लास के लड़कों का ख़्वाब थी। कुछ एक अमीर लड़के उसे हमेशा घेरे रहते थे । उसके लिए गिफ्ट लाते, पार्टी देते । उनका अपना अलग समूह था । मुझे मालूम था कुछ ख़्वाब कभी पूरे नहीं होते I तो मैंने अपना ख़्वाब बदल लिया था । अब मेरा ख़्वाब आईएस बनना था और मैंने अपने आप को पूरी तरह से पढ़ाई में झोक दिया था ।


           कुछ बच्चे जन्मजात विलक्षण होते हैं। मैं उनमें से नहीं था । पर मैं मेहनत में विश्वास करता था I दसवीं और बारहवीं दोनों में ही मेरे ठीक-ठीक नंबर थे, मतलब सत्तर पचहत्तर प्रतिशत मार्क्स थे I हाँ नब्बे प्रतिशत लाने वालों से तो काफी पीछे था । पर नंबरों की कमी, मेरी आँखों से मेरा ख़्वाब धुंधला नहीं कर पाई । ग्रेजुएट करके मैं और जोर शोर से आईएस की तैयारी करने लगा । मेरी इतनी हैसियत तो नहीं थी कि मैं आईएस की कोचिंग कर पाता। पर मेरे कुछ दोस्त कोचिंग कर रहे थे । मैं उनके संपर्क में था और उनके नोट्स से तैयारी कर रहा था ।


              सच कहते हैं लोग कि मेहनत का फल तो मिलता ही है । मैंने भी पहली ही कोशिश में प्री और मेंस पास कर लिया था। हमेशा की तरह नंबर इतने ज्यादा अच्छे नहीं थे तो रैंक भी ठीक ठीक ही थी । मैं चाहता था मैं वापस से एग्जाम देकर अपनी रैंक और अच्छी करूँ । पर पिताजी ने रोक दिया, जो मिला है पहले उसको स्वीकार कर लो । अगर तुम्हें लगता है तुम इससे अच्छा कर सकते हो तो नौकरी करते करते आगे की तैयारी करते रहना । मुझे यह बात भी सही लगी । अभी तो मेरे पास उम्र के कई साल है । तो बस इंटरव्यू पास करके ट्रेनिंग के लिए चला गया था।

 

             आँखों के ख़्वाब भले ही बदल गए हो । पर कुछ ख़्वाब आँखों से कभी जाते नहीं है। एक ख़्वाब बनकर वह हमेशा मेरी आँखो में रही। उसी एक ख़्वाब ने मुझे दूसरा ख़्वाब देखने को प्रेरित किया । कॉलेज से निकलने के बाद वैसे तो मैं उसके संपर्क में नहीं था पर एक ही शहर में रहने के कारण कभी कभार वह मुझे दिख जाती थी। दिल तो करता था और लड़कों की तरह उसके पीछे जाऊँ। उसको देखने के लिए एक निश्चित जगह पर खड़े हो जाऊँ। पर मुझे मालूम था यह सब करने से वह तो क्या कोई भी लड़की प्रसन्न नहीं होगी। चाँद को पाने के लिए मुझे अपनी ऊँचाई अपना कद बढ़ाना होगा । पर क्या अब तक मेरा चाँद मेरा इंतजार कर रहा होगा ? मैंने कभी उसको बताया भी तो नहीं था ? मैंने सिर झटक दिया । कुछ ख़्वाब आँखों में ही अच्छे लगते हैं। हे भगवान तूने अब तक जो भी कुछ मुझे दिया उसका शुक्रिया । वह मिले ना मिले यह मेरे मुकद्दर की बात है I


              एक झटके से ट्रेन रुकने से मैं अपने वर्तमान में आ गया । देखा तो मेरा स्टेशन आ गया था । सामान लेकर नीचे उतरा तो हमेशा की तरह पापा इंतजार कर रहे थे। घर पहुँचा, सबसे मिला । माँ और बहन तो बहुत ही उत्सुक थे । मौका मिलते ही माँ ने बोला, "रुक तुझे फोटो दिखाती हूँ। पर तब से मेरे बचपन के, मोहल्ले के कुछ दोस्त आ गए। मैं उनके साथ शहर घूमने निकल गया। माँ को बोला, "माँ कल जा ही रहे हैं । तुमने देखी है ना, बस।


                कुछ दिन पूर्व हुए वीडियो कॉलिंग के दौरान ,यह माँ भी ना मुझसे पूछ रही थी, कोई पसंद हो तो बता दो । मैंने बोला बहुत देर कर दिया । जब मेरी पसंद की लड़की से ही शादी करवानी थी तो पहले बता देती । मुझे तो लगा था की अंतरजातिय या किसी अन्य मेरी पसंद की लड़की से शादी के लिए तुम लोग तैयार ही नहीं होंगे । तो इसके लिए मैंने कभी सोचा ही नहीं । बहन चिढ़ाते हुए बोली, "वाह भाई शक्ल देखी हैं तेरी जैसे. . . तेरा तो बहुत मन करता होगा पर तुझे पंसद कौन करती ? ना चाहते हुए भी मेरी आँखों में उसका चेहरा घूम गया । कहाँ होगी ? क्या कर रही होगी ? अब तक तो शायद बच्चों की माँ भी बन गई हो ? या हो सकता है वह भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही हो ? पता नहीं कभी उससे इस बारे में बात ही नहीं हुई कि वह क्या बनना चाहती है ? वैसे शायद ऐसा होता तो मेरे दोस्तों को पता होता ।


          हम दोस्तों में कभी लड़कियों को लेकर कोई बात हुई ही नहीं । मन तो कर रहा था कि एक बार पूछू कहाँ है वह ? आज तो मैं अच्छी पोस्ट पर हूँ। क्या जाकर एक बार उसको पूंछू ? क्या मेरा नसीब साथ देगा ? क्या अभी तक उसकी शादी नहीं हुई होगी ? क्या सिर्फ मेरी पोस्ट देखकर वह मुझे हाँ बोलेगी ? क्या वह मेरी हंसी तो नहीं उडाएगी? जाने दो वैसे भी अब मम्मी पापा ने रिश्ते की बात कर ही ली है । अब यह सब बातें उठाना दोनों परिवारों को दुखी कर जाएगा । शायद मुझे जब मम्मी ने पूछा था तभी उनको बताना चाहिए था । शायद मुझे थोड़ी सी हिम्मत दिखानी चाहिए थी ।


          दूसरे दिन तैयार होकर हम सब लड़की वालों के घर गए । वास्तव में घर नहीं एक मॉल में मिलने का प्रोग्राम था । पर फिर सुबह ही उनका फोन आया कि बेहतर होगा आप घर पर ही आ जाए। हमें क्या परेशानी होती तो हम उनके घर चले गए । घर तो बहुत आलीशान था । इतने बड़े घर की बेटी क्या हमारे घर में एडजस्ट कर पाएगी ? मैंने माँ की और देखा । मेरी उलझन समझकर माँ मुस्कुराते हुए बोली, "रहना तो उसे तेरे साथ ही है । तू क्यों चिंता कर रहा है"? मैं कुछ नहीं बोला। घर के अंदर हमारा बहुत अच्छे से स्वागत हुआ । घर के अंदर प्रवेश करते ही आकाशी रंग के सलवार कुर्ते में मुझे लगा मैंने उसको देखा है । मैं मुस्कुरा दिया। क्या मेरा प्रेम उस सीमा तक पहुँच गया है कि हर जगह मुझे वही दिखाई दे रही है । क्या जो लड़की मैं देखने आया हूँ कहीं उसमें भी मुझे वही ना दे जाए। और ऐसा ही हुआ ! हमारे ड्राइंग रूम में बैठने के साथ ही मेरी नजर अंदर दरवाजे से आते हुए उस पर पड़ी l


 आकाशी रंग के सलवार कुर्ते पर बाँधनी का दुपट्टा, छोटी सी बिंदी, गहरी नीली रंग की हाथ में चूड़ियाँ, यह तो वही थी । मेरी आँखों का ख़्वाब, मेरी आँखों के सामने । क्या मैं उसकी किसी सहेली को देखने आया हूँ ? वह मुझे देख कर मुस्कुरायी। मैं सोच रहा था, अगर यही वह लड़की है तो यह तो पक्का मुझे ना बोल देगी।


                   हमें आपस में दस मिनट बात करने का मौका दिया गया । मैंने उससे बोला शायद आपको याद नहीं, मैं आपके क्लास में था। वह बोली, "बहुत ही अच्छी तरह से याद है। आप क्लास में भी कितने शांत और शर्मीले थे और अपनी पढ़ाई की तरफ एकदम फोकस | कभी किसी लड़की को तो आपने आँख उठाकर भी नहीं देखा था । बस इसीलिए आपकी फोटो देखते ही मैंने शादी के लिए हाँ कह दी "। 


मैं मन ही मन सोच रहा था, अच्छा हुआ मैंने अपना ख़्वाब बदल लिया था । अगर मैं ख़्वाब रूपी चेहरे के पीछे भागता तो शायद मुझे कुछ हासिल नहीं होता। पर मैंने अपना ख़्वाब अपना लक्ष्य जीवन में कुछ बनना, कुछ बनकर दिखाना रखा, तो आज अनजाने में मेरा पहला ख़्वाब भी पूरा हो गया। जीवन मे सफलता के साथ मुझे मेरा प्यार भी मिल गया।


इस कहानी के माध्यम से मुझे सिर्फ इतना ही कहना है कि प्यार किस्मत से मिलता है और सफलता मेहनत से । इसलिए प्यार के लिए मेहनत कर के, सफलता को किस्मत पर ना छोड़े। सफलता के लिए मेहनत करें किस्मत में प्यार होगा तो मिल ही जाएगा। 


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