"किसानों कि दुर्दशा"
"किसानों कि दुर्दशा"
भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर किसान बसते हैं एवं खेती-बाड़ी पशुपालन कर जीवनयापन करते हैं।
आज कल भारतीय किसानों कि बड़ी दुर्दशा हों रहीं हैं।कभी सुखा अकाल कि मार तो कभी प्राकृतिक आपदाओं से फ़सलें तबाह हो जाती हैं।
किसानों कि फ़सल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा हैं।सरकारी योजनाएं में भी फ़सल पुरी नहीं ली जाती हैं। वहां पर भी कानूनी अड़चनें खड़ी कि जा रही हैं।
सरकारी समर्थन मुल्य खरीद केन्द्रों पर भी समय पर पैसों का भुगतान नहीं किया जा रहा हैं।
कभी फ़सल कि गुणवत्ता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
फ़सल कि गुणवत्ता अच्छी नहीं हैं कह कर लेने से मना किया जा रहा हैं।
सरकारी समर्थन मुल्य किसान फसल तोल केन्द्रों पर भी समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा हैं।
वहां पर भी किसानों कोअव्यवस्थाओं का सामना करना पड़ रहा हैं।
भारत सरकार द्वारा किसानों को कोई सहायता नहीं दी जा रही है।
चाहे सुखा अकाल पड़ा हों प्राकृतिक आपदाओं में भी वाजिब मुआवजा नहीं दिया जा रहा हैं।बीमा योजना में प्रिमियम भरने पर भी किसानों को उचित क्लेम नहीं मिल रहा हैं।
बीमा कंपनियों को फायदा पहुंचाया जा रहा हैं।बीमा कंपनियों कि मनमानी चलती हैं।यह किसानों के साथ अन्याय हैं।
केन्द्रीय सरकार संसद में किसान बिल पास किया हैं।
उसके लिए पूरे देश में किसान सड़कों पर उतर कर आंदोलन कर भारी विरोध जताया रहें हैं लेकिन सरकार राजधर्म नहीं निभा रही हैं।
किसानों को कोई तवज्जो नहीं दे रही हैं।किसानों कि समस्याओं पर किसानों से बातचीत विचार विमर्श कर हल नहीं कर रही हैं।
जबकि उधोगपतियों के ऋण माफ किए जा रहे हैं उधोगों को भारी सब्सिडी दी जा रही हैं।उधोगों के बड़े बड़े ऋण माफ किए जा रहे हैं।
इससे स्पष्ट जाहिर होता हैं कि केन्द्रीय सरकार किसानों कि विरोधी हैं।
अन्यथा किसानों को उनकी फ़सल का उचित मूल्य दिलावें।
सभी उचित मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार कर किसानों के हित में फैसला करें ।
कवि देवा करता प्रार्थना केन्द्रीय सरकार से किसानों कि समस्याओं कि सुनवाई कर जल्दी दूर करें।किसानों को उचित राहत प्रदान करें।जय जवान जय किसान
