Meenakshi Gandhi

Drama

5.0  

Meenakshi Gandhi

Drama

कीमती कौन

कीमती कौन

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"अरे, सुधा कितना वक्त लगाओगी ? थोड़ी जल्दी करो ना। "बालकनी में खड़े अमर ने अंदर कमरे में तैयार होती सुधा को आवाज दी।

"आई ,आई ! बस 2 मिनट। मेरे जन्मदिन पर आप से तोह्फे में मिली घड़ी तो पहन लूँ। आज तो मौका मिला है।" चेहरे पर चमक लिए मीठे से स्वर में बोलती सुधा अमर के पास पहुंची।

सुधा बहुत ही उत्साहित नजर आ रही थी। होती भी क्यों नहीं ? आखिर बहुत समय बाद अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर दोनों एक साथ बाहर घूमने जा रहे थे। खुशी खुशी में सुधा के हाथ से घड़ी फर्श पर गिर गई और घड़ी के शीशे में दरार आ गई।

"अरे ,अरे यह क्या किया सुधा ? कितनी महंगी घड़ी थी। तुम्हें कोई कद्र भी है किसी तोहफे की ? एक बार भी नहीं पहनी और ..... इतना नुकसान कर दिया। कोई काम तो ढंग से कर लिया करो। कहीं नहीं जाना मुझे। सारा मूड खराब कर के रख दिया।" गुस्से में लाल अमर बाहर चला गया।

सुधा अमर का यह रवैया देख कर हैरान थी और महसूस कर पा रही थी कि कैसे एक छोटी सी घड़ी में दरार रिश्तो में दरार बन सकती है।


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