Meenakshi Gandhi

Drama

4.1  

Meenakshi Gandhi

Drama

असल कमाई

असल कमाई

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अध्यापक कक्ष में बैठी मानवी खुद में मग्न गहरी सोच में डूबी थी। उसे कुछ खबर ही नहीं थी कि उसके आसपास क्या चल रहा है मगर थोड़ी-थोड़ी देर बाद मानवी अपने फ़ोन को चैक करती जैसे उसे किसी ख़ास ख़बर का इंतजार हो।

इतने में ही साथी अध्यापक श्रीमान सौरभ ने मानवी को टोकते हुए कहा- अरे ! आज कहाँ खोई हो ? कोई परेशानी है क्या ?

यह सुनकर मानवी के विचारों का बाँध अचानक टूट गया और वह अपने आसपास के वातावरण के प्रति सजग हो गई। सौरभ जी की प्रश्नों के जवाब देने ही वाली थी कि उन्होंने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा- मैं जानता हूँ कि तुम अपने भविष्य को ले कर चिंता में हो। होना भी चाहिए, आखिर अतिथि शिक्षकों की आय ही कितनी है और ऊपर से नौकरी का भी कोई भरोसा नहीं, जाने कब सरकार घर का रास्ता दिखा दे।

मानवी बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रही थी। सौरभ जी मानवी को समझाते हुए बोले- स्कूल तक ही सीमित क्यों रहती हो ? अपने समय का सदुपयोग करो। स्कूल से जा कर क्या करती हो ? दिल्ली जैसे शहर में ऐसे कोचिंग सेन्टर की कमी नहीं जो घन्टे के हिसाब से मुँह माँगी कीमत देने को तैयार हैं बस ज़रूरत है बाकी सब भूल कर पैसे कमाने के लिए जुट जाने की। कुछ साल खूब कमाओ ताकि आगे आराम की जिंदगी जी सको। एक वक्त था मैं किराए के घर में रहता था और अब चार घरों का मालिक हूँ और लाखों की वार्षिक आय है मेरी। सोने तक का वक़्त नहीं है मुझे। तुम भी कर सकती हो। कोशिश कर के देखो।

मानवी इन सब बातों के बारे में विचार कर ही रही थी कि अचानक फ़ोन पर मैसेज की घंटी बजी। मैसेज पढ़ते ही मानवी ख़ुशी से झूम उठी और बोली- सर, मेरी पहली कविता अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में प्रकाशित हुई है। कब से इंतज़ार था इस पल का, आखिर आ ही गया।

यह सुनते ही सौरभ जी बोले- ओह ! तो ये सब करती हो तुम घर जा कर। कुछ पैसा-वैसा भी मिलता है इसमें या यूँ ही मुफ़्त में समय गँवाती रहती हो।

मानवी, सौरभ जी को समझाना चाहती थी कि जो खुशी उसे कहानी, कविताएं लिख कर मिलती है वही उसकी असली कमाई है। पैसा कमाना यकीनन उसकी जिंदगी की ज़रूरत है मगर जिंदगी का मक़सद नहीं।

सौरभ जी शायद उसकी यह बात समझ नहीं पाते, यह सोचकर मानवी ने चुप रहना ही बेहतर समझा।


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