आज़ाद सूमी
आज़ाद सूमी


ध्वनि पिछले दो दिनों से अपने पापा से नाराज़ थी। होती भी क्यों नहीं, सिर्फ एक छोटा सा तोहफ़ा ही तो मांग रही थी वह अपने दसवें जन्मदिन पर। मगर पापा थे कि मानने का नाम नहीं ले रहे थे। जन्मदिन पर उदास ध्वनि को देख घर के सभी सदस्यों ने उसे समझाने की कोशिश की पर ध्वनि किसी की बात सुनने को तैयार नहीं थी। उसे तो हर कीमत पर बस अपनी पसंद का तोहफ़ा ही चाहिए था।
शाम होते ही सारा परिवार ध्वनि का जन्मोत्सव मनाने के लिए एक साथ इकट्ठा हुआ। सभी ध्वनि के लिए खिलौने, कपड़े और चॉकलेट ले कर आये थे मगर ध्वनि उन्हें देखना भी नहीं चाहती थी। ध्वनि को यूँ मायूस देखकर किसी को अच्छा नहीं लग रहा था। इतने में ही कमरे के बाहर से चूं -चूं ,चूं -चूं जैसी मीठी सी आवाज़ सुनाई दी। यह आवाज़ सुनते ही ध्वनि कमरे के बाहर कुछ इस तरह दौड़ी जैसे कोई उसकी प्यारी सहेली उससे मिलने आई हो। बाहर पहुंचते ही ध्वनि ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी - मेरा तोहफ़ा आ गया, मेरा तोहफ़ा आ गया। ध्वनि की आवाज़ सुनकर सभी परिवार के सदस्य कमरे के बाहर तोहफ़ा देखने निकले तो देखा -पापा अपने हाथ में पिंजरे में बंद एक छोटी सी चिड़िया का बच्चा लिए खड़े थे। ध्वनि खुशी से झूम रही थी और ऐसे नाच रही थी जैसे उसे संसार की हर खुशी मिल गई हो। पापा ध्वनि को पिंजरा थमाते हुए बोले- " चाहता तो नहीं था, मगर तुम्हारी ज़िद के आगे कुछ कर ना सका। तुम्हें यूं मायूस भी तो नहीं देखा जाता।" ध्वनि पिंजरे में बैठी चिड़िया को देखकर बहुत उत्साहित थी। देखो, देखो यह कितनी प्यारी है, इसकी सुनहरी चोंच देखो कितनी सुंदर है, इसकी आवाज़ कितनी मीठी है। आज से मैं "तुम्हें सूमी " कह कर बुलाऊंगी। चलो, आओ अपने कमरे में चलते हैं।
ध्वनि सूमी को अपने कमरे में ले आई और उसे खिड़की के पास रखी मेज पर बिठा कर बोली -"आज से तुम यहीं पर रहोगी।" भूख भी तो लगी होगी इसे, ऐसा सोचकर वह सूमी के लिए बाजरा, दाल, चावल और पानी ले आई। पिंजरे में खाने को रखते हुए ध्वनि सूमी से बातें करने लगी -" अब से तुम मेरे पास ही रहोगी, तुम्हें मैं रोज खूब अच्छा अच्छा खाने को दूंगी। तुम्हारी आवाज़ कितनी मीठी है पर तुम जब से आई हो कुछ बोल क्यों नहीं रही हो ?" ध्वनि सूमी की आवाज़ सुनने के लिए के लिए बेताब थी, मगर सूमी पिंजरे के एक कोने में डर कर बैठ गई। सूमी को यूं देख ध्वनि ने सोचा- अभी हमारी दोस्ती नहीं हुई है शायद इसीलिए यह ऐसा व्यवहार कर रही है। भूख लगेगी तो खुद ब खुद खा लेगी।
दो दिन बीत चले मगर सूमी ज्यों की त्यों बिना कुछ खाये पिये पिंजरे के एक कोने में उदास बैठी रहती उसे इस तरह देखकर ध्वनि परेशान होकर पापा के पास जाकर बोली - पापा, सूमी अच्छी चिड़िया नहीं है। आप इसे वापिस देकर कोई दूसरी चिड़िया ले आइये। यह ना ही कुछ बोलती है और ना ही कुछ खाती है बस दिन भर मायूस बैठी रहती है। " ध्वनि की बातें सुन पापा बोले- " इसीलिए ही मैं इसे लाना नहीं चाहता था। अगर कोई दूसरी चिड़िया को मैं ले भी आया तो वह भी ऐसा ही करेगी। पंछी कभी भी हमारे घर में खुश नहीं रह सकते। सारा आकाश ही उनका घर है। हमें किसी भी प्राणी की उड़ान को कैद करने और उनकी आज़ादी छीनने का कोई हक नहीं है । तुम्हें कैसा लगेगा यदि तुम्हें एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया जाए , सिर्फ अच्छा-अच्छा खाने और पहनने को मिले मगर तुम्हें तुम्हारे मम्मी पापा ,भाई-बहन , दोस्तों से ना मिलने दिया जाए तो क्या तुम खुश रह पाओगी उस कमरे में ? यदि नहीं, तो सूमी से ऐसी उम्मीद क्यों रख रही हो ? बहुत गलत करते हैं वो लोग जो पंछियों को अपने निजी हित के लिए या अपना मन बहलाने के लिए कैद कर के रखते हैं ।"
पापा की सब बातें ध्यान से सुन ध्वनि सोच में पड़ गई और पिंजरे में बंद नन्ही सूमी के पास जाकर उसे निहारने लगी। थोड़ी ही देर बाद ध्वनि ने पिंजरे का दरवाज़ा खोला और नन्हीं सूमी को कमरे की खिड़की से आज़ाद कर दिया। दो दिन से दुबकी सहमी सूमी अपने नन्हें परों के साथ चूं -चूं करती आसमान में उड़ गई। ध्वनि को ऐसा करते देख पापा को बेहद खुशी हुई।
अगली ही सुबह ध्वनि को अपने कमरे में चूं -चूं, चूं -चूं की आवाज़ गूंजती सुनाई दी। उसने उठकर खिड़की की तरफ जा कर देखा तो सुनहरी चोंच वाली नन्ही सूमी खिड़की में रखे पिंजरे का खाना खा रही थी। ध्वनि झटपट सूमी के पास पहुंची और उसके नन्हें-नन्हें परों को सहलाने लगी। लेकिन अब सूमी डरी और सहमी नहीं थी बल्कि उसकी चहक में एक ऐसी कशिश थी कि किसी का भी उदास मन खुशी से झूम उठे। ध्वनि ने सूमी को सहलाया और बोली - "आज से हम दोनों अच्छे दोस्त हुए। तुम मुझसे मिलने रोज यहाँ आना। मैं रोज तुम्हें खूब अच्छा अच्छा खाना खिलाऊँगी। "