खुशियों की दीवाली
खुशियों की दीवाली
इस बार दिवाली पर ज्यादा खर्चा मत करना फैक्टरी में बहुत बड़ा नुकसान हो गया है" पापा ने घर आते ही माँ से कहा।
"पर सबके कपड़े, मिठाई, पटाखे?
"देखो रमा मैं सब समझ रहा हूँ पर मजबूर हूँ सारी जमा पूंजी इस नुकसान से उबरने में लग जायेगी ...तुम ऐसा करो चारों बच्चों को कपड़े दिला लाना पर जरा सस्ते हर बार की तरह नहीं।" पापा ने माँ से कहा .... ।
"लेकिन थोड़े बहुत तो पटाखे भी लाने पड़ेंगे साल में एक बार त्योहार आता है बच्चों का दिल तो नहीं तोड़ सकते ! " माँ ने सोचते हुए कहा "ऐसा करो मेरी चेन बेच दो, आपको भी इस साल गर्म जैकेट लेना था वो भी ले लेना मेरा क्या मेरे पास तो बहुत साड़ियां है! "
"मुझे माफ कर दो रमा " पापा ने आँखों में आए आँसुओं को पीते हुए कहा।
"अरे ऐसा क्यों बोल रहे हो हम दोनों एक ही तो हैं तो दोनों की परेशानी भी तो एक ही हुई ना आप चिंता मत कीजिए देखते हैं क्या हो सकता है!" रमा बोली।
मैं पापा और माँ की बात दरवाजे की ओट से सुन रही थी असल में मैं पापा की आवाज़ सुन आई थी, पर उनकी बातें सुन अंदर ना जा सकी... अपनी दो बड़ी बहनों और एक छोटे भाई को जा मैंने सारी बात बताई.... हम सबने मिल कर एक प्लान बनाया ।
अगले दिन.....
"पापा देखो ना रीना दीदी मुझे अपना लाल सूट नहीं दे रही मेरा बहुत मन है इस दीवाली वो पहनने का " मैंने जाकर पापा से अपनी छोटी दीदी की शिकायत की।
"पापा मैंने भी मीना दीदी से उनका गुलाबी सूट माँगा मुझे वो बहुत पसंद है पर वो बोल रही तू कपड़े जल्दी फाड़ देती है! "
रीना दीदी ने मचलते हुए बोला।
"अरे! अरे इतनी बड़ी हो गई हो पर बचपना नहीं गया... माँ तुम्हें दीवाली के लिए नये कपड़े दिला लायेगी मैंने बोल दिया है " पापा ने हम दोनों से कहा।
" नहीं पापा हमें वही सूट पहनने हैं " हम दोनों बहने एक स्वर में बोली।
" अच्छा... अच्छा ठीक है।। मीना और रीना तुम दोनों अपने सूट लाओ..... लो शीना तुम अपना लाल सूट, लो रीना तुम अपना गुलाबी सूट... खुश अब । "
" मीना बेटा तुम और शौर्य दोनों माँ के साथ जा कपड़े ले आना और शौर्य तुम मेरे साथ चलना मैं पटाखे दिला दूँगा तुम्हें! " पापा बोले।
" पापा मेरी सहेली सिलाई सीख रही है उससे मैं अपनी पसंद का सूट सिलवा लूंगी जो कपड़ा बुआ राखी पर लाई थी उससे। माँ को बोलो बस शौर्य को कपड़े दिला लायें। मीना दीदी ने कहा...
" और पापा आप मुझे पटाखों के पैसे दे देना मैं दोस्तों के साथ जा के ले आऊँगा " शौर्य ने कहा।
" ठीक है बेटे लो 1000 रुपए ले आना पटाखे " पापा ने पैसे देते हुए कहा।
अगले दिन माँ शौर्य को कपड़े दिला लाई वो लेना नहीं चाहता था पर उसके पास कोई बहाना भी नहीं था... पापा मम्मी को शक ना हो इसलिए हमने ही उसे तैयार किया लेने को।
दीवाली वाले दिन हम सब तैयार हो पापा का इंतज़ार कर रहे थे... उनके आते ही हमने पापा को एक उपहार पकड़ाया।
"ये क्या है "
" पापा खोलो तो सही " हम चारों चिल्लाये मम्मी भी रसोई से बाहर आ गई उन्हें भी हमने एक उपहार दिया।
" ये क्या "
"अरे ये जैकेट और साड़ी???
" पापा ये आपके लिए हमारी तरफ से गिफ़्ट है " हम एक साथ बोले।
" पर तुम्हारे पास पैसे कहाँ से आये " पापा मम्मी एक साथ बोले।
" पापा 1000 रुपए आपने पटाखों को दिये बाकी हमने अपनी गुल्लक फोड़ दी " हमने ख़ुशी से मचलते हुए कहा।
" बेटा ये सब क्यों किया तुमने अपनी खुशियों को मार के हमारे लिए ये सब क्यों " पापा ने रोते हुए कहा।
" पापा हमने खुशियाँ नहीं मारी अपनी हमारी ख़ुशी तो आप हो जैसे हम आपकी हमें सब पता है फैक्टरी में नुकसान का हर बार आप हमारे लिए गिफ्ट लाते इस बार हम ले आए तो क्या हुआ हम एक परिवार ही तो हैं। " मीना दीदी ने धीरे से कहा।।
" वैसे भी पापा पटाखे से तो प्रदूषण ही होता है ना " मैं पापा के गले में बाहें डालते हुए बोली!
मम्मी पापा एक दूसरे का मुँह देखने लगे। " रमा देखो बच्चे कितने समझदार हो गए हमारे " पापा ने हमें गले लगा लिया।।
"ओहो अब ये इमोशनल ड्रामा बन्द करो मुझे रसगुल्ले खाने है जल्दी से पूजा करो अब। " अचानक से शौर्य बोला और सब हँस दिये।।
दोस्तों माँ - बाप तो अपने बच्चों की खुशी के लिए हमेशा से त्याग करते हैं... पर जब बच्चे माँ बाप के लिए कुछ करते तो बच्चों को अलग ही ख़ुशी मिलती है....
वैसे भी दीवाली तो पर्व ही खुशियों का है।
कैसा लगा आपको ये प्यारा सा परिवार...??
धन्यवाद